Chapter 6 – बहादुर

बहादुर

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
लेखक को क्यों लगता है कि जैसे उस पर एक भारी दायित्व आ गया हो?
उत्तर-
लेखक महोदय की पत्नी दिन-रात ‘नौकर-चाकर’ की माला जपती थी। उनका साला नौकर को लाकर सामने खड़ा कर दिया था। अब लेखक महोदय के ऊपर एक भारी दायित्व आ गया था कि नौकर के साथ घर में अच्छा बवि हो। नौकर घर के अनुकुल ढल जाया और यहाँ टिक जाय।

प्रश्न 2.
अपने शब्दों में पहली बार दिखे बहादुर का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
नौकर यानी बहादुर का शरीर चौड़ा और कद छोटा था। गोरा रंग और मुँह चपटा था। वह उजला हाफ पैंट और सफेद कमीज, भूरे रंग का जूता और गले में रूमाल बंधा था।

प्रश्न 3.
लेखक को क्यों लगता है कि नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया था?
उत्तर-
लेखक महोदय के सभी भाई और रिश्तेदार ऊंचे पद पर थे। इसलिए उनलोगों के पास नौकर-चाकर था। जब उनकी बहन के विवाह में सभी रिश्तेदारों का मिलन हुआ तो लेखक महोदय की पत्नी नौकर को देखकर ईर्ष्यालु हो गई। इसके बाद से घर में नौकर रखने के लिए परेशान करने लगी। अब लेखक महोदय को नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया।

प्रश्न 4.
साले साहब से लेखक का कौन-सा किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा?
उत्तर-
लेखक को साले साहब से एक दुखी लड़का का किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा। किस्सा था कि वह एक नेपाली था, जिसका गाँव नेपाल और बिहार की सीमा पर था। उसका बाघ युद्ध में मारा गया था और उसकी माँ सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी। माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको बहुत मारती थी। माँ चाहती थी कि लड़का घर के काम-धाम में हाथ बँटाये, जबकि वह पहाड़ या जंगलों में निकल जाता और पेड़ों पर चढ़कर, चिड़ियों के घोंसलों में हाथ डालकर उनके बच्चे पकड़ता या फल तोड़-तोड़कर खाता। एक बार उसने भैंस की पिटाई की जिसके चलते माँ ने भी उसे खूब पीटा। अत्यधिक पिटाई के चलते लड़के का मन माँ से फट गया। रातभर जंगल में छिपा रहा, सुबह होने पर घर से राह खर्च के लिए चोरी से ‘कुछ रुपया लेकर भाग गया।

प्रश्न 5.
बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था?
उत्तर-
बहादुर कभी-कभी पशुओं को चराने के लिए ले जाता था। एक बार उसने अपनी माँ की प्यारी भैंस को बहुत मारा। मार खाने के उपरान्त भैंस उसकी मां के पास पहुंच जाती है। माँ को आभास होता है कि लड़के ने इसको काफी मारा है। माँ ने भैंस की मार का काल्पनिक अनुमान करके एक डंडे से उसकी दुगुनी पिटाई की। लड़के का मन माँ से फट गया और वह पूरी रात जंगल में छिपा रहा। अंततः सुबह में घर पहुंचकर चुपके से कुछ रुपया लिया और घर से भाग गया।

प्रश्न 6.
बहादुर के नाम से “दिल” शब्द क्यों उड़ा दिया गया ? विचार करें।
उत्तर-
प्रथम बार नाम पूछने में बहादुर ने अपना नाम दिलबहादुर बताया। यहां दिल शब्द का अभिप्राय भावात्मक परिवेश में है। उपदेश देने के दरम्यान उसे कहा जा रहा था कि किसी के साथ भावुकता से पेश नहीं होकर दिमाग से अधिक कार्य करना है। सामाजिक तो उदारता से .. दूर रहकर मन और मस्तिष्क से केवल अपने घर के कार्यों में लीन रहने का उपदेश दिया गया। इस प्रकार से निर्मला द्वारा उसके नाम से दिल शब्द उड़ा दिया गया।

प्रश्न 7.
व्याख्या करें –
(क) उसकी हँसी बड़ी कोमल और मीठी थी, जैसे फूल की पंखुड़िया बिखर गई हों।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के वहादुर’ शीर्षक कहानी से ली गई हैं। इन पक्तियों का संदर्भ बहादुर से जुड़ा हुआ है।
जब लेखक शाम को दफ्तर से घर आते थे तो बहादुर सहज भाव से उनके पास आता था और उन्हें एक बार देखकर सिर झुका लेता था तथा धीरे-धीरे मुस्कुराने लगता था। घर की मामूली-सी. घटनाओं को लेखक से सुनाया करता था। कभी कहता-बाबूजी, बहिनजी की सहेली आयीं थीं तो कभी कहता बाबूजी, भैया सिनेमा गया था। इसके बाद वह ऐसी हँसी हँसता था कि लगता था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा किस्सा कह दिया हो। उसके निश्छल, निष्कलुष हाव-भाव से प्रभावित होकर ही लेखक ने लिखा है-उसकी हंसी बड़ी कोमल थी और मीठी थी लगता था फूल की पंखड़ियों बिखरी हुई हों।

इस प्रकार उक्त पंक्तियों में लेखक ने बहादुर की निश्छलता, निर्मलता, ईमानदारी और आत्मीय व्यवहार का यथोचित रेखांकन किया है। बहादुर बच्चा था। उसके होठों पर कोमलता और मिठास थी, फूलों के खिलने जैसा उसकी खिलखिलाहट थी। इस प्रकार उक्त पंक्तियों में लेखक ने बहादुर के कोमल भावों व्यवहारों, ईमानदारी, आत्मीय । संबंधों का सटीक वर्णन किया है।

(ख) पर अब बहादुर से भूल-गलतियों अधिक होने लगी थीं।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ कहानी. पाठ से ली गयी हैं। इसका संदर्भ बहादुर से जुड़ा हुआ है।
बहादुर को लेखक का पुत्र किशोर बराबर पीट करता था। कुछ दिन बीतने पर लेखक की पत्नी भी बहादुर को मारने-डाँटने लगी थी। लेखक को ऐसा विश्वास था कि हो सकता है घर में मार खाने, गाली-सुनने के कारण बहादुर दुखी होकर रहने लगा था और इसी कारण उससे कई भूलें हो जाती होंगी। ऐसी स्थितियों को लेखक कभी-कभी रोकना चाहते थे। लेकिन बाद में चुप हो जाया करते थे क्योंकि उनके विचार में नौकर-चाकर तो मार-पीट खाते ही रहते हैं, ऐसा ही भाव था।

इस कारण वे भी बहादुर की मदद नहीं कर पाते थे और बहादुर दीन-हीन रूप में, असहाय – बनकर लेखक की पत्नी और पुत्र से डाँट-मारपीट खाता तो और सहता था।

इन पंक्तियों का मूल आशय यह है कि लेखक की मानसिकता भी दो तरह की थी। वे भी सबल. की आलोचना नहीं कर पाते हैं। गरीबों के प्रति नौकर के प्रति उनका भी भाव दोयम दर्जे का था। इसी कारण बहादुर की मानसिक स्थिति संतुलित नहीं रह पाती थी।

(ग) अगर वह कुछ चुराकर ले गया होता तो संतोष होता।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ कहानी पाठ से ली गयी हैं। इन . पंक्तियों का संबंध उस काल से है जब बहादुर चोरी के इल्जाम और मारपीट, गाली-गलौज से तंग आ चुका था। अचानक सिल उठाते वक्त वह गिर गया और दो टुकड़ा हो। अब क्या था बहादुर घर छोड़कर भाग गया। उसे खोजने के लिए लेखक के लड़के किशोर ने शहर का कोना-कोना छान डाला लेकिन बहादुर का कहीं अता-पता नहीं था।

वह बहादुर के लिए बहुत दुःखी था। वह उसके सुख-दुख को याद कर माँ से कह रहा था-माँ, अगर वह मिल जाता तो मैं उससे माफी मांग लेता किन्तु अब उसे नहीं मारता-पीटता, गालियाँ नहीं देता। उसने हमलोगों को बहुत सुख दिया। बहुत सेवा की। गलती हम लोगों से ही हुई। माँ अगर वह कुछ चुराकर भी ले गया होता तो हमलोगों को संतोष होता। लेकिन वह तो हमलोगों का क्या अपना भी सब ‘सामान छोड़ गया।
इन पंक्तियों से यही आशय निकलता है कि आदमी को सद्व्यवहार करना चाहिए। दुर्व्यवहार के कारण कष्ट भोगना पड़ता है।

(घ) यदि मैं न मारता, तो शायद वह न जाता।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ कहानी पाठ से ली गयी हैं। यह पंक्ति बहादुर से संबंधित है।
लेखक बहादुर के भाग जाने पर अफसोस करता है और कहता है कि अगर मैं, उसे नहीं मारता तो वह भागता नहीं, ऐसा मेरा विश्वास है। लेखक को अपने आप पर, अपने द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार पर खेद होता है।

जब निर्मला बहादुर के लिए रोने लगती है तब ये वाक्य लेखक उसी समय चारपाई पर बैठकर सिर झुकाकर कह रहे हैं। लेखक इस घटना पर रोना चाहता है किन्तु भीतर ही भीतर छटपटा कर रह जाता है। एक छोटी-सी भूल जीवन में कितना दुख दे जाती है-अब लेखक को समझ में बात आती है। वह पहले से सचेत रहता तो ऐसी घटना कभी नहीं घंटती।

इन पंक्तियों का आशय यह है कि आदमी के साथ सद्व्यवहार होना चाहिए। संदेह के बीज बड़े भयानक होते हैं। उनका प्रतिफल भी कष्टदायक होता है। आज बहादुर के साथ दुर्व्यवहार मारपीट चाहे गाली-गलौज नहीं किया जाता संदेह के आधार पर चोर नहीं ठहराया जाता तो वह नहीं भागता। अतः, संदेह और दुर्व्यवहार से इन्सान को बचना चाहिए।

प्रश्न 8.
काम-धाम के बाद रात को अपने बिस्तर पर गये बहादुर का लेखक किन शब्दों में चित्रण करता है?चित्र का आशय स्पष्ट करें?
उत्तर-
निर्मला ने बहादुर को एक फटी-पुरानी दरी दे दी थी। घर से वह एक चादर भी ले आया था। रात को काम-धाम करने के बाद वह भीतर के बरामदे में एक टूटी हुई बसखट पर अपना बिस्तर बिछाता था। वह बिस्तरे पर बैठ जाता और अपनी जेब में से कपड़े की एक गोल-सी नेपाली टोपी निकालकर पहन लेता, जो बाईं ओर काफी झुकी रहती थी। फिर वह छोटा-सा आइना निकालकर बन्दर की तरह उसमें अपना मुँह देखता था। वह बहुत ही प्रसन्न नजर आता था।

इसके बाद कुछ और भी चीजें जेब से निकालकर बिस्तर पर खेलता था। गीत गाता था। पुरानी स्मृतियों में खो जाता था। इससे उसके बाल मन की स्वाभाविकता की झलक मिलती है। उसके अंत:करण में निहित विरह का भाव गीत में मुखरित होता था। इसके माध्यम से लेखक ने बालसुलभ मनोदशा, स्वच्छंदता के आनंद की स्मृति का चित्रण किया है।

प्रश्न 9.
बहादुर के आने से लेखक के घर और परिवार के सदस्यों पर कैसा प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
बहादुर के आने से घर के सदस्यों को आराम मिल रहा था। घर खूब साफ और चिकना रहता। सभी कपड़े चमाचम सफेद दिखाई देते। निर्मला की तबीयत काफी सुधर गई। अब परिवार का कोई सदस्य एक भी काम स्वयं नहीं करता है। सभी बहादुर को आवाज देकर काम बताता था और उस कार्य को वह पूरा करता था। सभी रात में पहले ही सो जाते और सबेरे आठ, बजे से पहले न उठते थे।

प्रश्न 10.
किन कारणों से बहादुर ने एक दिन लेखक का घर छोड़ दिया ?
उत्तर-
लेखक के घर में प्रारंभ में बहादुर को अच्छा से रखा गया। धीरे-धीरे लेखक का लड़का उस पर दबाव डालकर काम करवाने लगा। कुछ समय पश्चात् पत्नी एवं पुत्र दोनों उसकी पिटाई बात-बात पर कर देते थे। एक रिश्तेदार लेखक के घर पर एक दिन आया और रुपये खो जाने की बात कहते हुए बहादुर पर चोरी का आरोप मढ़ दिया। उस दिन लेखक ने बहादुर की पिटाई कर दी। बार-बार प्रताड़ित होने से एवं मार खाने के कारण एक दिन अचानक बहादुर भाग गया।

प्रश्न 11.
बहादुर पर चोरी का आरोप क्यों लगाया जाता है और उस पर इस आरोप का क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-
प्रायः ऐसा देखा जाता है कि लोग घर के नौकर को हेय दृष्टि से देखते हैं। किसी मामले में उसे दोषी मान लेना आसान लगता है। रिश्तेदार ने सोचा कि नौकर पर आरोप लगाने से लोगों को लगेगा कि ऐसा हो सकता है। बहादुर इस आरोप से बहुत दुःखी होता है। उसके … अंतरात्मा पर गहरी चोट लगती है। उस दिन से वह उदास रहने लगता है। उस घटना के बाद से उसे अधिक फटकार का सामना करना पड़ता है। उसे काम में मन नहीं लगता है।

प्रश्न 12.
घर आये रिश्तेदारों ने कैसा प्रपंच रचा और उसका क्या परिणाम निकला?.
उत्तर-
लेखक के घर आए रिश्तेदारों ने अपनी झूठी प्रतिष्ठा कायम करने के लिए रुपया-चोरी का प्रपंच रचा। उनका कहना था कि मैं बच्चों के लिए मिठाई नहीं ला सका इसलिए मिठाई मंगाने के लिए कुछ रुपया निकालकर यहाँ रखा था। लेकिन बाद में हमलोग उलझे हुए रहे इसी दरम्यान रुपये की चोरी हो गई। उन्होंने बहादुर पर इस चोरी का दोषारोपण किया। इस आरोप से बहादुर को पिटाई लगी।

उस दिन से लोग उसे हर हमेशा फटकार लगाने लगे। वह उदास और अन्यमनस्क रूपं से रहकर काम करता था। अंतत: घर से अचानक चला गया। रिश्तेदार के प्रपंच के चलते लेखक के घर का काम करने वाले बहादुर के जाने की घटना घटी और घर अस्त-व्यस्त हो गया।

प्रश्न 13.
बहादुर के चले जाने पर सबको पछतावा क्यों होता है?
उत्तर-
बहादुर घर के सभी कार्य को कुशलतापूर्वक करता था। घर के सभी सदस्य को आराम मिलता था। किसी भी कार्य हेतु हर सदस्य बहादुर को पुकारते रहते थे। वह घर के कार्य से सभी
को मुक्त रखता था। साथ रहते-रहते सबसे हिलमिल गया था। डॉट-फटकार के बावजूद काम . करते रहता था। यही सब कारणों से उसके चले जाने पर सबको पछतावा होता है।

प्रश्न 14.
बहादुर, किशोर, निर्मला और कथावाचक का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-
बहादुर बहादुर लेखक महोदय का नौकर था। वह एक नेपाली था। उसके पिता का देहावसान युद्ध में हो गया था। माता जी घर चलाती थीं। एक दिन माँ ने बहादुर को बहुत मारा। बहादुर घर छोड़कर भाग गया। और लेखक महोदय के यहाँ नौकरी करने लगा।

किशोर-किशोर लेखक महोदय का लड़का था। जो अपना सारा काम बहादुर से ही करवाता था। धीरे-धीरे बहादुर पर हाथ भी छोड़ने लगा। बहादुर को घर छोड़कर भागने में किशोर का वर्ताव अधिक कारगर हुआ।

निर्मला – निर्मला लेखक महोदय की पत्नी थी। जिसे नौकर रखने का बहुत शौक था। पहले-पहल बहादुर के आने पर काफी लाड़-प्यार दिया। लेकिन धीरे-धीरे व्यवहार बदलने लगा। यहाँ तक की उसे मारने भी लगी। परिणाम हुआ बहादुर भाग गया। बहादुर के भाग जाने पर काफी विलाप की।

कथावाचक – कथावाचक लेखक महोदय का साला है। जो बहादुर के बारे में पूरी कहानी असाधारण विस्तार सुनाता है। बहादुर को लेकर कथावाचक ही आता है। वह अपनी बहन की नौकर रखने की इच्छा को पूरा करता है।

प्रश्न 15.
निर्मला को बहादुर के चले जाने पर किस बात का अफसोस हुआ।
उत्तर-
निर्मला एक भावुक महिला थी। बहादुर के रहने से उसे बहुत आराम मिला था। लेकिन लेखक का रिश्तेदार जब उनके घर में आया तब उसने रुपया चोरी का प्रपंच रचा जिसका शिकार बहादुर को बनाया। निर्मला को बहादुर पर गुस्सा आया और उसे पीट दिया। उसके बाद से कई बार उसे फटकारते रहती थी। अंत में जब रिश्तेदार की सच्चाई का आभास हुआ और यह बात समझ में आ गई कि बहादुर निर्दोष था और उसने रुपये की चोरी नहीं की थी तब उसे पश्चाताप हुआ। वह यह सोचकर अफसोस कर रही थी कि वह बिना बताये क्यों चला गया। वह अपने साथ कुछ लेकर भी नहीं गया था।
उसकी कर्मठता, ईमानदारी को याद करके निर्मला ने अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए अफसोस किया।

प्रश्न 16.
कहानी छोटा मुंह बड़ी बात कहती है। इस दृष्टि से ‘बहादुर’ कहानी पर विचार करें
उत्तर-
बहादुर कहानी में सबसे बड़ी बात होती है कि एक दिन बहादुर बिना कुछ कहे और बिना सामान लिये भाग गया। यह घटना तो छोटी थी लेकिन बहुत बड़ी-बड़ी बात कह गई। सभी को अपने व्यवहार पर पछतावा होने लगा। हर आदमी अपने-आप को नीचा अनुभव करने लगा। किशोर बहादुर के मिलने पर उससे माफी मांगने को भी तैयार था।

प्रश्न 17.
कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। लेखक ने इसका शीर्षक ‘नौकर’ क्यों नहीं रखा?
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में एक बालक का चित्रण किया गया है। बालक जो लेखक के घर में नौकर का काम करता है कहानी का मुख्य पात्र है। इसमें बहादुर नौकरी करने के पूर्व स्वच्छंद में था। वह माँ से मार खाने के बाद घर से भाग गया था। उसके बाद लेखक के घर काम करने के लिए रखा जाता है। यहाँ उसके नौकर के रूप में चित्रण के साथ-साथ उसके बाल-सुलभ मनोभाव का चित्रण भी किया गया है। ईमानदार, कर्मठ एवं सहनशील बालक के रूप में चित्रित है। प्रताड़ना, झूठा आरोप उसे पसंद नहीं था।

अंतत: फिर वह भागकर स्वछंदु हो जाता है। साथ ही लेखक के पूरे परिवार पर अपने अच्छे छवि का चित्र अंकित कर जाता है ऐसे में बहादुर ही इसका नायक कहा जा सकता है। इस कहानी के केन्द्र में बहादुर है। अत: यह शीर्षक सार्थक है। इसमें बालक को केवल नौकर की भूमिका में नहीं रखा गया है बल्कि उसमें विद्यमान अन्य गुणों की चर्चा की गई है। इसलिए नौकर शीर्षक नहीं रखा गया।

प्रश्न 18.
कहानी का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर-
उत्तर के लिए कहानी का सारांश देखें।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करते हुए अर्थ स्पष्ट करें
उत्तर-
मारते-मारते मुँह रंग देना- (बहुत मार मारना) निर्मला नौकर को मारते-मारते मुँह रंग दिया।
हुलिया टाइट करना- (बुरा हाल करना) किशोर नौकर को इतना मारता कि हुलिया टाइट हो जाता।
हाथ खुलना- (मारने की आदत होना) आजकल निर्मला का हाथ भी नौकर पर खुलने लगा है।
मजे में होना- (खशी में होना) दिन मजे में बीतने लगे।
बातों की जलेबी छनना– (लंबी-चौडी बातें होना) मोहन अपने दोस्तों के बीच बातों की जलेबी छानता है।
कहीं का न रहना- (बरे फंसना) बहादुर के भाग जाने पर निर्मला कहीं का न रही।
नौ दो ग्यारह होना- (भाग जाना) मौका मिलते ही नौकर नौ दो ग्यारह हो गया।
खाली हाथ जाना- (साथ में कुछ नहीं ले जाना) सोहन घर जाते वक्त खाली हाथ चला गया।
बुरे फंसना-(संकट में फंसना) यात्रा के बीच में बस खराब होने जाने से मैं बुरा फंस गया।
पेट में लबी दाढ़ी-(धूर्तता करना) मोहन के बातों पर मत जाओ उसके पेट में लंबी दाढ़ी है।
चहल-पहल मचना- (खशी होना) मामा जी के आते ही घर में चहल-पहल मच गया।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य में प्रयोग करते हुए लिंग-निर्देश करें
उत्तर-
रूमाल – रूमाल छोटा है।
ओहदा – ओहदा बड़ा है।
भरण – पोषण वह अपने बेटा का भरण-पोषण ठीक से नहीं करता है।
इज्जत – मेरे घर में नौकर को भी इज्जत से रखा जाता है।
झनझनाहट – उसके स्वर में एक मीठी झनझनाहट थी।
फरमाइश – बहादुर सबका फरमाइश पूरा करता था।
छेडखानी – छेड़खानी करना अच्छा नहीं है।
पुलई – वह पेड़ की पुलई पर नजर आता है।
फिक्र – फिक्र मत करो। चादर चादर परानी है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों की बनावटें बदलें-
(क) सहसा मैं काफी गंभीर हो गया था, जैसा की उस व्यक्ति को हो जाना चाहिए, : जिस पर एक भारी दायित्व आ गया हो। .
उत्तर-
सहसा भारी दायित्व आने के कारण मैं उस व्यक्ति की तरह गंभीर हो गया था।

(ख) माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको बहुत मारती थी।
उत्तर-
माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी इसलिए उसको बहुत मारती थी।

(ग) मार खाकर भैंसं मागी-मागी उसकी मां के पास चली गई, जो कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही थी।
उत्तर-
मार खाकर मैंस भागी-भागी उसकी माँ के पास चली गई। वह कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही थी।

(घ) मैं उससे बातचीत करना चाहता था, पर ऐसी इच्छा रहते हुए भी मैं जानबूझकर गंभीर हो जाता था और दूसरी ओर देखने लगता था।
उत्तर-
मैं उससे बातचीत करना चाहता लेकिन ऐसी इच्छा रहते हुए भी जानबूझकर गंभीर होकर दूसरी ओर देखने लगता था।

(ङ) मिला कमी-कभी उससे पूछती की बहादुर, तुमको अपनी मं की याद आती है।
उत्तर-
निर्मला कभी-कभी उससे पूछती थी कि बहादुर तुमको अपनी माँ की याद आती है।

प्रश्न 4.
अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित वाक्यों के प्रकार बताएँ
(क) वह मारता क्यों था।
(ख) वह कुछ देर तक उससे खेलता था।
(ग) दिन मजे में बीतने लगे।
(घ) इसी तरह की फरमाइशें।
(ङ) देख-बे मेरा काम सबसे पहले होना चाहिए।
(च) रास्ते में कोई ढंग की दुकान नहीं मिली थी, नहीं तो उधर से ही लाती।
उत्तर-
(क) प्रश्नवाचक वाक्य।
(ख) विधानवाचक वाक्य।
(ग) विधानवाचक वाक्य।
(घ) विधानवाचक वाक्य।
(ङ) आज्ञार्थक वाक्य।
(च) संकेतवाचक वाक्य।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सहसा मैं काफी गंभीर हो गया था, जैसा कि उस व्यक्ति को हो जाना चाहिए, जिस पर एक भारी दायित्व आ गया हो। वह सामने खड़ा था और आँखों को बुरी तरह मल रहा था। बारह-तेरह वर्ष की उम्र। ठिगना चकइठ शरीर, गोरा रंग और चपटा मुंह। वह सफेद नेकर, आधी बांह की ही सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बंधा था। उसको घेरकर परिवार के अन्य लोग खड़े थे। निर्मला चमकती दृष्टि से कभी लड़के को देखती और कभी मुझको और अपने भाई को। निश्चय ही वह पंच-बराबर हो गई थी।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है ? और इसके लेखक कौन हैं.?
(ख) परिवार के सभी सदस्य किसे घेरकर खड़े थे? और क्यों ?
(ग) नवागन्तुक कौन था? उसका संक्षिप्त चित्रण करें।
(घ) निर्मला कौन थी? और वह पंच-बराबर कैसे हो गई थी?
(ङ) लेखक गंभीर क्यों हो गया था?
उत्तर-
(क) प्रस्तुत गद्यांश ‘बहादुर’ पाठ से लिया गया है। इसके लेखक अमरकांत हैं।
(ख) परिवार के सभी सदस्य नवागन्तुक को घेरकर खड़े थे। यह नवागन्तुक घर के लिए नौकर बनने के लिए आया था। सभी सदस्य नौकर पाकर उस नवागन्तुक को देखने के लिए खड़े थे।
(ग) नवागन्तुक एक नेपाली युवक था। वह माँ द्वारा मार खाने के बाद अपने घर से भाग गया था। लेखक के साले साहब उस नौकर को लाये थे। उसकी अवस्था बारह-तेरह वर्ष की थी। उसका कद ठिगना और चकइठ था। गोरा रंग और चपटा मुंह वाला वह नवागन्तुक सफेद नेकर पहने हुआ था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बंधा हुआ था।
(घ) निर्मला लेखक की पत्नी थी। लेखक के सभी भाइयों के पास नौकर थे। अपनी गोतनियों एवं रिश्तेदारों की तरह उसे भी नौकर रखने की दिली इच्छा थी। नौकर पाकर वह भी उनके बराबर हो गई थी।
(ङ) घर के मुखिया होने के नाते नौकर को पाकर लेखक का गंभीर होना लाजिमी था। -घर गृहस्थी का निर्वहण करना मुखिया का परम कर्तव्य होता है। उसके ऊपर भी एक सदस्य का बोझ. पड़ गया था।

2. उसको लेकर मेरे साले साहब आए थे। नौकर रखना कई कारणों से बहुत जरूरी हो गया था। मेरे सभी भाई और रिश्तेदार अच्छे ओहदों पर थे और उन सभी के यहाँ नौकर थे। मैं जब बहन की शादी में घर गया तो वहाँ नौकरों का सुख देखा। मेरी दोनों भाभियाँ रानी की तरह बैठकर चारपाइयाँ तोड़ती थीं, जबकि निर्मला को सबेरै से लेकर रात तक खटना पड़ता था। मैं ईर्ष्या से जल गया। इसके बाद नौकरी पर वापस आया तो निर्मला दोनों जून ‘नौकर-चाकर’ की माला जपने लगी। उसकी तरह अभागिन और दुखिया स्त्री और भी कोई इस दुनिया में होगी? वे लोग दूसरे होते हैं, जिनके भाग्य में नौकर का सुख होता है ।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) नीकर को लेकर कौन आए थे?
(ग) लेखक ने कहाँ नौकरों का सुख देखा?
(घ) लेखक भाग्यशाली किसे मानते हैं?
(ङ) लेखक को ईर्ष्या क्यों होता है?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम बहादुर।
लेखक का नाम अमरकांत।
(ख) नौकर को लेकर लेखक के साले साहब आए थे।
(ग) लेखक जब बहन की शादी में घर गये तब उन्होंने वहाँ नौकरों का सुख देखा।
(घ) लेखक कहते हैं कि जिनको नौकर का सुख प्राप्त होता है वे भाग्यशाली होते हैं।
(ङ) लेखक की पत्नी निर्मला को रात-दिन खाना पकाना पड़ता था। उनकी भाभियों के यहाँ नौकर थे इसलिए उन्हें आराम था। अपने भाभी को रानी की तरह चारपाइयाँ तोड़ते देखकर लेखक ईर्ष्या से जल जाते हैं।

3. पहले साले साहब से असाधारण विस्तार से उसका किस्सा सुनना पड़ा। वह एक नेपाली था, जिसका गाँव नेपाल और बिहार की सीमा पर था। उसका बाप युद्ध में मारा गया था और उसकी. माँ सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी। माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको बहुत मारती थी। माँ चाहती थी कि लड़को घर के काम-धाम में हाथ बटाये, जबकि वह पहाड़ या .जंगलों में निकल जाता और पेड़ों.पर चढ़कर चिड़ियों के घोंसलों में हाथ डालकर उनके बच्चे पकड़ता या फल तोड़-तोड़कर खाता। कभी-कभी वह पशुओं को चराने के लिए ले जाता था।

उसने एक बार उस भैंस को बहुत मारा, जिसको उसकी माँ बहुत प्यार करती थी, और इसीलिए जिससे वह बहुत चिढ़ता था। मार खाकर भैंस भागी-भागी उसकी माँ के पास चली गई, जो कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही थी। माँ का माथा ठनका। बेचारा बेजुबान जानवर चरना छोड़कर वहाँ क्यों आएगा? जरूर लौंडे ने इसको काफी मारा है। वह गुस्से से पागल हो गई। जब लड़का आया तो माँ ने भैंस की मार का काल्पनिक अनुमान करके एक डंडे से उसकी दुगुनी पिटाई की और उसको वहीं कराहता हुआ छोड़कर घर लौट आई। लड़के का मन माँ से फट गया और वह रात भर जंगल में छिपा रहा।

जब सबेरा होने को आया तो वह घर पहुंचा और किसी तरह अन्दर चोरी-चुपके घुस गया। फिर उसने घी की हडिया में हाथ डालकर माँ के रखे रुपयों में से दो रुपये निकाल लिए। अन्त में नौ-दो ग्यारह हो गया। वहाँ से दस मील की दूरी पर बस-स्टेशन था, वहाँ गोरखपुर जानेवाली बस थी।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने किनसे और किसका किस्सा विस्तार से सुना?
(ग) नौकर की माँ कैसी थी और वह उसके प्रति क्या व्यवहार करती थी?
(घ) लड़के का मन मों से क्यों फट गया?
(ङ) लड़के ने माँ के रुपये में से कितना निकाल लिया और उसके बाद क्या किया?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम बहादुर।
लेखक का नाम अमरकांत।
(ख) लेखक ने अपने साले साहब से उनके द्वारा नौकर के रूप में लाये गये लड़कों की । कहानी विस्तार से सुनी।
(ग) नौकर की माँ गुस्सैल स्वभाव की थी। वह उसको बहुत मारती थी।
(घ) एक दिन भैंस को मारने के बदले माँ ने उस लड़का की खूब पिटाई की जिससे उसका मन माँ से फट गया।
(ङ) लड़के ने घी की हंडिया में हाथ डालकर माँ के रखे रुपयों में से दो रुपये निकाल लिये और अंततः वहाँ से भाग गया।

4. निर्मला ने उसको एक फटी-पुरानी दरी दे दी थी। घर से वह एक चादर भी ले आया था। रात को काम-धाम करने के बाद वह भीतर के बरामदे में एक टूटी हुई बँसखट पर अपना बिस्तर बिछाता था। वह बिस्तरे पर बैठ जाता और अपनी जेब में से कपड़े की एक गोल-सी नेपाली टोपी निकालकर पहन लेता, जो बाईं ओर काफी झुकी रहती थी। फिर वह एक छोटा-सा आईना निकालकर बन्दर की तरह उसमें अपना मुँह देखता था। वह बहुत ही प्रसन्न नजर आता था।

उसके बाद कुछ और भी चीजें उसकी जेब से निकलकर उसके बिस्तर पर सज जाती थीं कुछ गोलियाँ, पुराने ताश की एक गड्डी, कुछ खूबसूरत. पत्थर के टुकड़े, ब्लेड, कागज की नावें। वह कुछ देर तक उनसे खेलता था। उसके बाद वह धीमे-धीमे स्वर में गुनगुनाने लगता था। उन पहाड़ी गानों का अर्थ हम समझ नहीं पाते थे, पर उसकी मीठी उदासी सारे घर में फैल जाती, जैसे कोई पहाड़ की निर्जनता में अपने किसी बिछुड़े हुए साथी को बुला रहा हो।

प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिएँ।
(ख) निर्मला ने बहादुर को सोने के लिए क्या व्यवस्था दी थी?
(ग) रात को काम करने के बाद बहादुर कहाँ सोता था ?
(घ)बहादुर सोते समय अपनी जेब से क्या निकालता था और क्या-क्या करता था?
(ङ) बहादुर के गीत का लेखक के घर में क्या प्रभाव पड़ता था ?
उत्तर
(क) पाठ का नाम बहादर
लेखक का नाम अमरकांत।
(ख) निर्मला ने बहादुर को एक फटी-पुरानी दरी एवं एक टूटी हुई बँसखट सोने के लिए दी थी।
(ग) रात को काम करने के बाद वह भीतर के बरामदे में एक टूटी हुई बँसखट पर सोता था।
(घ) बहादुर रात को सोते समय बिस्तर पर बैठ जाता था और अपनी जेब में से कपड़े की एक गोल-सी नेपाली टोपी निकालकर पहन लेता। फिर एक छोटा-सा आइना निकालकर उसमें अपना मुँह देखता।
(ङ) जब वह रात में सोते समय गीत बजाता था जब पहाड़ी गीत की मीठी उदासी सारं घर में फैल जाती और लगता कि कोई पहाड़ निर्जनता में अपने किसी बिछड़े हुए साथी को बुला रहा है।

5. उसके स्वर में एक मीठी झनझनाहट थी। मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मैंने उसको क्या हिदायतें दी। शायद यह कि वह शरारतें छोड़कर ढंग से काम करे और घर को अपना घर समझे। इस घर में नौकर-चाकर को बहुत प्यार और इज्जत से रखा जाता है। जो सब खाते-पहनते हैं, वही नौकर-चाकर खाते-पहनते हैं। अगर वह यहाँ रह गया तो ढंग-शऊर सीख जाएगा, घर के और लड़कों की तरह पढ़-लिख जाएगा और उसकी जिंदगी सुधर जाएगी। निर्मला ने उसी समय कुछ व्यावहारिक उपदेश दे डाले थे। इस मुहल्ले में बहुत तुच्छ लोग रहते हैं, वह न किसी के यहाँ जाए और न किसी का काम करे। कोई बाजार से कुछ लाने की कहे तो वह ‘अभी आता ‘ हूँ’ कहकर अन्दर खिसक जाए। उसको घर के सभी लोगों से सम्मान और तमीज से बोलना चाहिए। और भी बहुत-सी बातें। अन्त में निर्मला ने बहुत ही उदारतापूर्वक लड़के के नाम में से ‘दिल’ शब्द उड़ा दिया।

प्रश्न
(क) लेखक ने दिलबहादुर को कौन-कौन सी हिदायतें दी थीं?
(ख) दिलबहादुर को पाकर लेखक के मन में उसके प्रति कौन-सी मनोदशाएँ जागृत हो गई?
(ग) निर्मला ने दिलबहादुर को कौन-कौन-सी व्यावहारिक शिक्षा दी?
(घ) निर्मला ने दिलबहादुर को बहादुर कैसे बना दिया ?
उत्तर-
(क) लेखक ने दिलबहादुर को हिदायत देते हुए कहा कि उसे शरारतें छोड़कर ठीक. ढंग से काम करना चाहिए। इस घर को अपना ही घर समझना चाहिए। जो हम खाते हैं वही नौकर भी खाते हैं। नौकर-चाकर भी परिवार का ही अंग होता है।
(ख) दिलबहादुर को पाकर लेखक का मन अन्दर ही अंन्दर प्रफुल्लित हो उठा। वह अपनी पत्नी की बात रखने में सफल हो गया था। लेखक अन्तर्मन से सोचने लगा कि यदि यह लड़का इस घर में टिक गया तो वह भी हमारे लड़कों की तरह पढ़-लिख जायेगा और उसकी जिन्दगी भी सुधर जायेगी।
(ग) निर्मला संभवतः व्यावहारिक शिक्षा देने में निपुण थी। उसने दिलबहादुर से कहा कि इस मुहल्ले में वह किसी के घर आना-जाना न करे। बाहर का कोई व्यक्ति कोई सामान लाने के लिए कहे तो अभी आया कहकर घर में घुस जाये। घर के सभी सदस्यों के साथ अच्छी तरह से व्यवहार करे।
(घ) निर्मला को दिलबहादुर कहने में अजीबोगरीब लगता था। व्यावहारिक कुशलता एवं अच्छा लगने के उद्देश्य से उसने दिलबहादुर के नाम से दिल को हटाकर बहादुर नाम दे डाला। दिलबहादुर से वह बहादुर बन गया।

6. दिन मजे में बीतने लगे। बरसात आ गई थी। पानी रुकता था और बरसता था। मैं अपने को बहुत ऊँचा महसूस करने लगा था। अपने परिवार और सम्बन्धियों के बड़प्पन तथा शान-बान पर मुझे सदा गर्व रहा है। अब मैं मुहल्ले के लोगों को पहले से भी तुच्छ समझने लगा। मैं किसी से सीधे मुँह बात नहीं करता। किसी की ओर ठीक से देखता भी नहीं था। दूसरों के बच्चों को मामूली-सी शरारत पर डाँट-डपट देता। कई बार पड़ोसियों को सुना चुका था जिसके पास कलेजा है, वही आजकल नौकर रख सकता है। घर के स्वांग की तरह रहता है। निर्मला भी सारे मुहल्ले में शुभ सूचना दे आई थी-आधी तनख्वाह तो नौकर पर ही खर्च हो रही है, पर रुपया-पैसा कमाया किसलिए जाता है ? वे तो कई बार कह ही चुके थे तुम्हारे लिए दुनिया के किसी कोने से नौकर जरूर लाऊँगा वही हुआ।

प्रश्न
(क) लेखक अपने को ऊँचा क्यों समझने लगा था ?
(ख) नौकर को पाकर लेखक के व्यवहार में कौन-सा परिवर्तन आ गया था? और क्यों?
(ग) लेखक की पत्नी निर्मला ने पड़ोसियों को क्या खबर सुनाई थी?
(घ) घर में नौकर किस तरह होता है ?
(ङ) रुपया-पैसा किसलिए कमाया जाता है ?
उत्तर-
(क) लेखक के भाइयों एवं रिश्तेदारों के घर में नौकर-चाकर थे। सर्वगुण सम्पन्न होने के बाद भी लेखक का घर नौकरविहीन था। बहादुर के आने के साथ ही लेखक भी अपने भाइयों एवं रिश्तेदारों के समतुल्य हो गया था। पड़ोसियों के घर में नौकर नहीं थे। आत्मबड़प्पन ‘ और ईर्ष्यावश ही लेखक अपने को ऊँचा समझने लगा था।
(ख) नौकर के आते ही लेखक के मन में विविध धारणाएँ उत्पन्न होने लगीं। पड़ोसी जीवनयापन करना नहीं जानते हैं ये ऐशोआराम से काफी दूर रहनेवाले हैं। मानव स्वभाववश ईर्षालु हो जाता है। लेखक भी अपने पड़ोसियों से जलने लगता है उनके बच्चों को डाँटने-झपटने लगता है। वह लोगों से कहने लगता है नौकर रखना सबके वश की बात नहीं है। लेखक के मन में ऐसे विचार उन्मादवश आने लगे। उन्माद में मनुष्य सही गलत का विचार छोड़ देता है। झूठी भावनाओं में मनुष्य बह जाता है।
(ग) नारी स्वभाव से आत्मप्रशंसक होती है। निर्मला भी इससे वंचित नहीं रह पाती है। वह पड़ोसियों के समक्ष अपनी बात सर्वोपरि रखना चाहती है। वह कहती है कि आधी कमाई तो नौकर पर ही खर्च हो जाती है।
(घ) घर में नौकर-स्वांग की तरह होता है।
(ङ) रुपया-पैसा अपनी मान-मर्यादा स्थापित करने के लिए कमाया जाता है। रुपये की सार्थकता मान-मर्यादा रखने में ही है। पत्नी की भंगिमाओं की पूर्ति करना पति का दायित्व होता है। लेखक की पत्नी को नौकर चाहिए बस उसने घर में नौकर रख लिया।

7. पर अब बहादुर से भूल-गलतियाँ अधिक होने लगी थीं। शायद इसका कारण मार-पीट और गाली-गलौज हो। मैं कभी-कभी इसको रोकना चाहता था, फिर यह सोचकर चुप लगा जाता कि नौकर-चाकर तो मार-पीट खाते ही रहते हैं।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें।
(ख)बहादुर से भूल-गलतियाँ क्यों होने लगी थीं?
(ग) लेखक द्वारा मार-पीट न रोकने से उसका कैसे स्वभाव का पता चलता है ?
(घ) नौकर के साथ मार-पीट क्या आप उचित मानते हैं ? अपने कथन के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर-
(क) पाठ-बहादुरा लेखक-अमरकांता .
(ख) अधिक मार-पीट और गाली-गलौज के कारण बहादुर का आत्म-विश्वास डिग गया था, वह अनमना-सा हो गया था, इसलिए उससे ज्यादा गलतियाँ होने लगी थीं।
(ग) लेखक द्वारा मार-पीट न रोकने से उसके दब्बू स्वभाव का पता चलता है।
(घ) नौकर के साथ मार-पीट करना उचित नहीं है। उन्हें प्यार से समझाना चाहिए क्योंकि वे भी इन्सान हैं।

8. यही तो अफसास है। कोई भी सामान नहीं ले गया है। उसके कपड़े, उसका बिस्तर, उसके जूते-सभी छोड़ गया है। पता नहीं उसने हमें क्या समझा? अगर वह कहता तो मैं उसे रोकती थोड़े ? बल्कि उसको खूब अच्छी तरह पहना-ओढ़ाकर भेजती, हाथ में उसकी तनख्वाह के रुपये रख देती। दो-चार रुपये और अधिक दे देती। पर वह तो कुछ ले नहीं गया”

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें।
(ख) प्रस्तुत कथन किसका है और उसे किस बात का अफसोस है? (ग) प्रस्तुत गद्यांश में मालकिन का कौन-सा भाव व्यक्त है ?
(घ) “पर वह तो कुछ ले नहीं गया’ कथन के पीछे कौन-सी कसक है?
उत्तर-
(क) पाठ-बहादुर। लेखक-अमरकात।
(ख) प्रस्तुत कथन मालकिन का है और उसे इस बात का आश्चर्य है कि बहादुर कुछ ले नहीं गया।
(ग) प्रस्तुत कथन से मालकिन का अपराध-बोध प्रकट होता है।.
(घ) दरअसल, बहादुर पर मेहमानों ने चोरी का इल्जाम लगाया और मालकिन और लेखक ‘ने भी डाँटा और पीटा था। किन्तु बहादुर घर छोड़ते हुए कुछ लेकर नहीं गया, अपितु अपने कपड़े आदि भी छोड़ गया। ‘पर वह कुछ ले ही नहीं गया’ कथन के पीछे बहादुर को झूठ-मूठ चोर समझने की कसक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें –

प्रश्न 1.
‘बहादुर’ के कहानीकार कौन हैं ?
(क) नलिन विलोचन शर्मा
(ख) अमरकांत
(ग) विनोद कुमार शुक्ल
(घ) अशोक वाजपेयी
उत्तर-
(ख) अमरकांत

प्रश्न 2.
‘बहादुर’ कैसी कहानी है ?
(क) ऐतिहासिक
(ख) मनोवैज्ञानिक
(ग) सामाजिक
(घ) वैज्ञानिक
उत्तर-
(ग) सामाजिक

प्रश्न 3.
बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था?
(क) गरीबी के कारण
(ख) माँ की मार के कारण
(ग) शहर घूमने के लिए
(घ) भ्रमवश
उत्तर-
(ख) माँ की मार के कारण

प्रश्न 4.
निर्मला’ कौन थी?
(क) शिक्षिका
(ख) बहादुर की माँ
(ग) कथाकार की पत्नी
(घ) कथाकार की पड़ोसन
उत्तर-
(ग) कथाकार की पत्नी

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति ।

प्रश्न 1.
बहादुर को लेकर…………साहब आए थे।
उत्तर-
साले

प्रश्न 2.
………का कर्जा तो जन्म भर भरा जाता है।
उत्तर-
माँ-बाप

प्रश्न 3.
बहादुर घर में……..की तरह नाचता था।
उत्तर-
फिरकी

प्रश्न 4. ………खाकर वह गिरते-गिरते बचा।
उत्तर-तमाचा

प्रश्न 5.
मुझे एक अजीव-सी…….का अनुभव होने लगा।
उत्तर-
लघुता

अतिलघु उत्तरीय प्रश्व

प्रश्न 1.
बहादुर का अपने घर से भागने का कारण क्या था ?
उत्तर-
बहादुर की माँ उसे हमेशा काफी मारा-पीटा करती थी। अतः एक दिन बुरी तरह पीटे जाने पर वह घर से भाग गया।

प्रश्न 2.
लेखक ने बहादुर को पहले दिन क्या हिदायत दी ?
उत्तर-
उना लेखक ने उसे हिदायत दी कि वह शरारतें छोड़कर ढंग से काम करे और घर को अपना घर समझे।

प्रश्न 3.
बहादर का व्यवहार लेखक के परिवार के प्रति कैसा था?
उत्तर-
बहादुर का व्यवहार लेखक के परिवार के प्रति अत्यन्त शालीनतापूर्ण था, वह बहुत हँसमुख तथा मेहनती था।

प्रश्न 4.
निर्मला ने बहादुर को क्या उपदेश दे डाले थे?
उत्तर-
निमला ने बहादुर को समझाया था कि वह मुहल्ले के लोगों से हेल-मेल नहीं बढावे. उनका कोई काम न करे तथा किसी के घर आना-जाना न करे।

प्रश्न 5.
किशोर का व्यवहार बहादुर के प्रति कैसा था? .
उत्तर-
किशोर के सभी काम बहादुर द्वारा किए जाने पर भी किशोर उसके साथ दुर्व्यवहार करता तथा अक्सर मारा पीटा करता था।

प्रश्न 6.
घर में नौकर किस तरह होता है ?
उत्तर-
घर में नौकर “स्वांग” की तरह होता है।

प्रश्न 7.
बहादुर से भूल-गलतियाँ क्यों होने लगी थीं ?
उत्तर-
अधिक मीरपीट और गाली गलौज के कारण बहादुर का आत्म विश्वास डिग गया था, वह अनमना सा हो गया था। इसलिए उससे ज्यादा गलतियाँ होने लगी थीं।

बहादुर लेखक परिचय

हिन्दी के सशक्त कथाकार अमरकांत का जन्म जलाई 1925 ई० में नागरा, बलिया (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। उन्होंने गवर्नमेंट हाईस्कूल, बलिया से हाईस्कूल की शिक्षा पायी । कुछ समय तक उन्होंने गोरखपुर और इलाहाबाद में इंटरमीडिएट की पढ़ाई की, जो 1942 के स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने से अधूरी रह गयी, और अंततः 1946 ई० में सतीशचंद्र कॉलेज बलिया से इंटरमीडिएट किया। उन्होंने 1947 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० किया और 1948 ई० में आगरा के दैनिक पत्र ‘सैनिक’ के संपादकीय विभाग में नौकरी कर ली।

आगरा में ही वे ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ में शामिल हुए और वहीं से कहानी लेखन की शुरुआत की। बाद में वे दैनिक अमृत. पत्रिका इलाहाबाद, दैनिक ‘भारत’ इलाहाबाद, मासिक पत्रिका ‘कहानी’ इलाहाबाद तथा ‘मनोरमा’ इलाहाबाद के भी संपादकीय विभागों से सम्बद्ध रहें । अखिल भारतीय कहानी.प्रतियोगिता में उनकी कहानी ‘डिप्टी कलक्टरी’ पुरस्कृत हुई थी। उन्हें कथा लेखन के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ भी प्राप्त हो चुका है।

आजादी के बाद के हिंदी कथा साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथाकार अमरकांत की कहानियों में मध्यवर्ग, विशेषकर निम्न मध्यवर्ग के जीवनानुभवों और जिजीविषा का बेहद प्रभावशाली और अंतरंग चित्रण मिलता है। अक्सर सपाट नजर आनेवाले कथनों में भी वे अपने जीवंत मानवीय संस्पर्श के कारण अनोखी आभा पैदा कर देते हैं। अमरकांत के व्यक्तित्व की तरह उनकी भाषा में भी एक खास किस्म का फक्कड़पन है । लोकजीवन के मुहावरों और देशज शब्दों के प्रयोग से उनकी भाषा में एक ऐसी चमक पैदा हो जाती है जो पाठकों को निजी लोक में ले जाती है।

अमरकांत के कई कहानी संग्रह और उपन्यास हैं। ‘जिंदगी और जोंक’, ‘देश के लोग’, ‘मौत का नगर’, ‘मित्र-मिलन’, ‘कुहासा’ आदि उनके कहानी संग्रह हैं और सूखा पत्ता’, ‘आकाशपक्षी’, – ‘काले उजले दिन’, “सुखजीवी’, “बीच की दीवार’, ‘ग्राम सेविका आदि उपन्यास हैं। उन्होंने ‘वानर सेना नामक एक बाल उपन्यास भी लिखा है।

अमरकांतकी प्रस्तुत कहानी में मंझोले शहर के नौकर की लालसा वाले एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में काम करनेवाले बहादुर की कहानी है – एक नेपाली गवई गोरखे की । परिवार का नौकरी-पेशा मुखिया तटस्थ स्वर में बहादुर के आने और अपने स्वच्छंद निश्छल स्वभाव की आत्मीयता के साथ नौकर के रूप में अपनी सेवाएं देने के बाद एक दिन स्वभाव की उसी स्वच्छंदता के साथ हर हृदय में एक कसकती अंतर्व्यथा देकर चले जाने की कहानी कहता है। . लेखक घर के भीतर और बाहर के यथार्थ को बिना बनाई-सँवारी सहज परिपक्व भाषा में पूरी कहानी बयान करता है । हिंदी कहानी में एक नये नायक को यह कहानी प्रतिष्ठित करती है।

बहादुर

पाठ का सारांश

सहसा मैं काफी गंभीर हो गया था, जैसा कि उस व्यक्ति की हो जाना चाहिए, जिस पर एक भारी दायित्व आ गया हो। वह सामने खड़ा था और आँखों को बुरी तरह मलका रहा था। बारह-तेरह वर्ष की उम्रा ठिगना चकइरु शरीर, गोरा रंग और चपटा मुँह। वह सफेद नेकर, आधी बांह की. ही सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले स्काउटों की तरह एक रूमाल बंधा था। उसको घेरकर परिवार के अन्य लोग खड़े थे। निर्मला चमकती दृष्टि से कभी लड़के को देखती और कभी मुझको और अपने भाई को। निश्चय ही वह पंच-बराबर हो .. गई थी।

निर्मला को अपने भाभियों के पास नौकर को देखकर नौकर रखने की इच्छा बहुत प्रबल हो गई थी। उसका भाई एक नौकर लाकर बहन के यहाँ रख देता है। पहले उसके बारे में पूरी कहानी असाधारण विस्तार से बताता है। दिलबहादुर नाम का यह नेपाली गँवइ गोरखा है। उसका पिता युद्ध में मारा गया था। माता जी घर चलाती थी। एक दिन माता जी ने शरारत करने पर दिलबहादुर को बहुत मार मारा। वह वहाँ से भाग गया और लेखक. महोदय के यहाँ नौकरी करने के लिए आ गया। वह मेहनती और भोला-भाला लड़का था। उसके आने पर घर के सभी लोग बहुत स्वागत किया।

निर्मला प्रेम से बहादुर कहने लगी। घर के कामों में वह सहयोग देने लगा। वह घर की सफाई करता, कमरों में पोंछा लगाता, अंगीठी जलाता, चाय बनाता और पिलाता। दोपहर में कपड़े धोता और बर्तन मलता। वह रसोई बनाने की भी जिद करता, पर निर्मला स्वयं सब्जी और रोटी बनाती। निर्मला को उसकी बहुत फिक्र रहती। दिन मजे से बीतने लगे। निस्संदेह बहादुर की वजह से सबको खूब आराम मिल रहा था।

घर खूब साफ और चिकना रहता। कपड़े चमाचम सफेदा निर्मला की तबीयत भी काफी सुधर गई। अब कोई एक खेर भी न टसकाता था। किसी को मामूली से मामूली काम करना होता, तो वह बहादुर को आवाज देता। ‘बहादुर एक गिलास पानी।”बहादुर, पेन्सिल नीचे गिरी है, उठाना।’ इसी तरह की फरमाइशें। बहादुर घर में फिरकी की तरह नाचता रहता। सभी रात में पहले ही सो जाते थे और सबेरे, आठ बजे के पहले न उठते थे।

किशोर अपना सारा काम बहादुर से करवाता। जूते में पॉलिश, साइकिल की सफाई, कपड़ो की धुलाई और इस्त्री भी। इतने सारी फरमाइशों में कोई गड़बड़ी हो गई तो बुरी-बुरी गाली देना, मार-पीट, गर्जन-तर्जन आदि चालू हो गया। धीरे-धीरे निर्मला का हाथ भी खुल गया। अब बहादुर को मारनेवाला दो लोग हो गये। कभी-कभी एक गलती पर दोनों लोग मारते थे।

एक दिन रविवार को निर्मला के रिश्तेदार घर पर मिलने के लिए आये। घर में बड़ी चहल-पहल मच गई। नाश्ता पानी के बाद बातों की जलेबी छनने लगी। इसी समय एक घटना हो गई। अचानक रिश्तेदार की पत्नी ने चोरी इलजाम नौकर पर लगा दिया। सबलोगों ने बारी-बारी से पूछा। लेकिन बहादुर नही-नहीं कहता रहा। पहले लेखक महोदय ने बहादुर को मारा। फिर बाद में निर्मला ने भी बहादुर को मारा। इस घटना के बाद बहादुर काफी डॉट-मार खाने लगा। वह . उदास रहने लगा और काम में लापरवाही करने लगा।

एक दिन मैं दफ्तर से विलम्ब से आया। निर्मला आँगन में चुपचाप सिर पर हाथ रखकर . बैठी थी। अन्यं लड़कों का पता नहीं था, केवल लड़की अपनी माँ के पास खड़ी थी। अंगीठी अभी नहीं जली थी। आँगन गंदा पड़ा था, बर्तन बिना मले हुए रखे थे। सारा घर जैसे काट रहा था।

क्या बात है ?- मैंने पूछा – बहादुर भाग गया। -भाग गया! क्यों ? पता नहीं।
निर्मला आँखों पर आँचल रखकर रोने लगी। मुझे क्रोध आया। मैं चिल्लाना चाहता था, पर भीतर-ही-भीतर कलेजा जैसे बैठ रहा हो। मैं वहीं चारपाई पर सिर झुकाकर बैठ गया। मुझे एक अजीब-सी लघुता का अनुभव हो रहा था। यदि मैं न मारता, तो शायद वह न जाता।

शब्दार्थ

पंच-बराबर : दो पक्षों के बीच निर्णायक की तरह, होना, पंच की तरह
ओहदा : पद
जन : वक्त
बंजुबान : मूक, भाषाविहीन
हिदायत : चेतावनी, सावधानी
शरारत : चंचलता, बदमाशी
शऊर : ढंग, शिष्टाचार, सलीका
तुच्छ : नगण्य, क्षुद्र
फरमाइश : आग्रह, निवेदन
नेकर : पैंट
पुलई : पेड़ की सबसे ऊंची शाखा
सवांग : सगा, परिवार का सदस्य
फिरकी : नाचने वाली घिरनी .
कायल : आकांक्षी, अभ्यस्त, आदी
दायित्व : जिम्मेदारी
दर्पण : आईना
खूँट : साड़ी के आँचल से बंधी हुई गाँठ.
घाघ : घुटा हुआ, चतुर
होडना : मंथना, मॅथाना
अलगनी : कपड़े डालने के लिए बंधी लंबी रस्सी, खूँटी

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