Chapter 11 – लौटकर आऊँग फिर

लौटकर आऊँग फिर

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कवि किस तरह के बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात करता है?
उत्तर-
कवि प्राकृतिक छटा को बिखेरते हुए बंगाल में पुनः आने की बात करता है। जिस बंगाल में धान के खेत हैं, नदियाँ हैं, धान के फसल पर छाये हुए कोहरे एवं कटहल की छाया सुखद वातावरण उपस्थित करते हैं उस बंगाल में पुन: लौटकर आने की कवि की बलवती इच्छा है। बंगाल की घास के मैदान, कपास के पेड़, वनों में पक्षियों की चहचहाहट एवं सारस की शोभा अनुपम छवि निर्मित करते हैं। बंगाल की इस अनुपम, सुशोभित एवं रमणीय धरती पर कवि पुनर्जन्म लेने की बात करते हैं।

प्रश्न 2.
कवि अगले जीवन में क्या-क्या बनने की संभावना व्यक्त करता है और क्यों ?
उत्तर-
कवि को अपनी मातृभूमि से उत्कट प्रेम है। बंगाल की धरती से इतना स्नेह है कि वह अगले जन्म में किसी भी रूप में इस धरती पर आने के लिए तैयार हैं। प्रेम में विह्वल होकर वे चिड़ियाँ, कौवा, हंस, उल्लू, सारस बनकर पुनः बंगाल की धरती पर अवतरित होना चाहते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि भले ही मेरा स्वरूप बदला हुआ रहेगा किन्तु मातृभूमि की प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त रहने का अवसर उस बदले हुए रूप में भी मिलेगा।

प्रश्न 3.
अगले जन्मों में बंगाल में आने की क्या सिर्फ कवि की इच्छा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
अगले जन्मों में बंगाल में आने की प्रबल इच्छा तो कवि की ही है। लेकिन इसकी अपेक्षा जो बंगाल प्रेमी हैं, जिन्हें बंगाल की धरती के प्रति आस्था और विश्वास है कवि उन लोगों का भी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस कविता के माध्यम से कवि बंगाल की धरती के प्रति अपना उत्कट प्रेम प्रकट करने के बहाने बंगाल प्रेमियों की भावना को भी अभिव्यक्त किया है।

प्रश्न 4.
कवि किनके बीच अंधेरे में होने की बात करता है ? आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि सारस के बीच अंधेरे में होने की बात करता है। बंगाल के प्राकृतिक वातावरण में सारस खूबसूरत पक्षी है जो अनायास ही अपनी सुन्दरता के प्रति लोगों को आकर्षित करता है। विशेषकर संध्याकालीन जब ब्रह्मांड में अंधेरा का वातावरण उपस्थित होने लगता है उस समय : जब सारस के झुंड अपने घोंसलों की ओर लौटते हैं तो उनकी सुन्दरता मन को मोह लेती है। यह सुन्दरतम दृश्य कवि को भाता है और यह मनोरम छवि को वह अगले जन्म में भी देखते रहने की बात कहता है।

प्रश्न 5.
कविता की चित्रात्मकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता की भाषा शैली भी चित्रमयी हो गयी है, प्राकृतिक वर्णन में कहीं-कहीं अनायास ही चित्रात्मकता का प्रभाव देखा जा रहा है। खेतों में हरे-भरे, लहलहाते धान, कटहल की छाया, हवा के चलने से झमती हुई वृक्षों की टहनियाँ, झले के चित्र की रूपरेखा चित्रित है। आकाश में उड़ते हुए उल्लू और संध्याकालीन लौटते हुए सारस के झुंड के चित्र हमारे मन को । आकर्षित कर लेते हैं।

प्रश्न 6.
कविता में आए बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि प्राकृतिक सौंदर्य के वातावरण में बिम्बों को सौंदर्यपूर्ण चित्रमयी शैली में किये हैं। बंगाल की नवयुवतियों के रूप में अपने पैरों में घुघरू बाँधने का बिम्ब उपस्थित किये हैं। हवा का झोंका, वृक्षों की डाली को झूला के रूप में प्रदर्शित किया है। आकाश में हंसों का झुण्ड
अनुपम सौंदर्य लक्षित किया है।

प्रश्न 7.
कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यह स्पष्ट है कि साहित्य की चाहे जो भी विधा हो उस विधा के अंतर्गत जो भी रूप रेखा तैयार होती है उसके शीर्षक ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शीर्षक साहित्य विधा के सिर होते हैं। किसी भी कहानी, कविता, नाटक, उपन्यास आदि के शीर्षक में तीन बातें मुख्य रूप से बाती हैं। शीर्षक सार्थक समीचीन और लघु होना चाहिए। इस आधार पर ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता का यह शीर्षक भी पूर्ण सार्थक है। शीर्षक विषय-वस्तु, जीवनी, घटना या उद्देश्य के आधार पर रखा जाता है। यहाँ उद्देश्य के आधार पर शीर्षक रखा गया है। कवि की उत्कट इच्छा मातृभूमि पर पुनर्जन्म की है। इससे कवि के हृदय में मातृभूमि के प्रति प्रेम दिखाई पड़ता है। शीर्षक कविता के चतुर्दिक घूमती है। शीर्षक को केन्द्र में रखकर ही कविता की रचना हुई है। अत: इन तथ्यों के आधार पर शीर्षक पूर्ण सार्थक है।

प्रश्न 8.
कवि अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में क्यों संदेह करता है ? क्या कारण हो सकता है ?
उत्तर-
कवि को पुनर्जन्म में ‘मनुष्य’ होने में संशय होता है। मनुष्य जीवन ईर्ष्या, कटुता, आदि से पूर्ण होता है। लोगों की मानवता मर गई है। आपसी विद्वेष से जीवन अधोगति की ओर चला जाता है। पराधीन भारत की दुर्दशा से विक्षुब्ध स्वच्छंदतावाद को ही स्थान देता है। अतः वह पक्षिकुल को उत्तम मानता है।

प्रश्न 9.
व्याख्या करें :
(क) बनकर शायद हँस मैं किसी किशोरी का;
धुंघरू लाल पैरों में;
तैरता रहूँगा बल दिन-दिन भर पानी में-
गंध जहाँ होनी ही भरी, घास की।”
(ख)”खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारे फिर आऊँगा लौटकर
एक दिन-बंगाल में;
उत्तर-
(क) प्रस्तुत अवतरण बँग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि जीवनानंद दास द्वारा रचित “लौटकर आऊँगा फिर” कविता से उद्धत है। इस अंश में कवि बंगाल की भूमि पर बार-बार जन्म लेने की उत्कट इच्छा को अभिव्यक्त करता है। इससे कवि के हृदय में मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम का दर्शन होता है।

यहाँ कवि बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात कहता है। वह अगले जन्म में भी अपनी मातृभूमि बंगाल में ही जन्म लेने का विचार प्रकट करता है। वह हंस, किशोरी और धुंघरू के बिम्ब शैली में अपने आपको उपस्थित करता है। वह कहता है कि जहाँ की किशोरियाँ पैरों में घुघरू बाँधकर हंस के समान मधुर चाल में अपनी नाच से लोगों को आकर्षित करती हैं, वही रूप मैं भी धारण करना चाहता हूँ! यहाँ तक कि बंगाल की नदियों में तैरने का एक अलग आनंद की अनुभूति मिलती है। यहाँ के क्यारियों में उगने वाली घास के गंध कितनी मनमोहक होती है यह तो बंग प्रांतीय ही समझ सकते हैं। इस प्रकार पूर्ण अपनत्व की भावना में प्रवाहित होकर हार्दिक इच्छा को प्रकट करता है।

(ख) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्युपस्तक के “लौटकर आऊँगा फिर” शीर्षक से उद्धत हैं। इस अंश से पता चलता है कि कवि
अगले जन्म में भी अपनी मातृभूमि बंगाल में ही जन्म लेना चाहते हैं।

प्रस्तुत पद्यांश में कवि की मातृभूमि के प्रति उसका प्रेम दिखाई पड़ता है। कवि बंगाल के प्राकृतिक सौंदर्य के साथ वहाँ के खेतों में उगने वाली धान की फसलों का मनोहर चित्र खींचा है। कवि कहता है कि जिस बंगाल के खेतों में लहलहाती हुई धान की फसलें हैं वहाँ मैं फिर लौटकर आना चाहता हूँ। जहाँ कल-कल करती हुई नदी की धारा अनायास ही लोगों को आकर्षित कर लेती हैं वहाँ ही मैं जन्म लेना चाहता हूँ। यहाँ स्पष्ट है कि कवि अपनी भावना को स्वच्छंद स्वरूप प्रदान करता है।

प्रश्न 10.
‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
‘लौटकर आऊँगा फिर’ बाँग्ला साहित्य के चर्चित कवि जीवनानंद दास की बहुप्रचारित और लोकप्रिय कविता है जिसमें उनका मातृभूमि प्रेम और आधुनिक भाव-बोध प्रकट होता है। कवि ने बंगाल के प्राकृतिक सौंदर्य का सम्मोहक चित्र प्रस्तुत करते हुए बंगाल में ही पुनः जन्म लेने की इच्छा व्यक्त की है।

कवि कहता है कि धान की खेती वाले बंगाल में, बहती नदी के किनारे, मैं एक दिन लौटूंगा जरूर। हो सकता है, मनुष्य बनकर न लौ | अबाबील होकर या फिर कौआ होकर, भोर की फूटती किरण के साथ धान के खेतों पर छाए कुहासे में, पेंगें भरता हुआ कटहल पेड़ की छाया तले जरूर आऊँगा। किसी किशोरी का हंस बनकर, घुघरू-जैसे लाल-लाल पैरों से दिन-दिन भर हरी घास की गंध वाले पानी में, तैरता रहूँगा! बंगाल की मचलती नदियाँ, बंगाल के हरे-हरे मैदान, जिन नदियाँ धोती हैं, बुलाएँगे और मैं आऊँगा, उन्हीं सजल नदियों के तट पर।

हो सकता है, शाम की हवा में किसी उड़ते हुए उल्लू को देखो या फिर कपास के पेड़ से तुम्हें उसकी बोली सुनाई दे। हो सकता है, तुम किसी बालक को घास वाली जमीन पर मुट्ठी भर उबले चावल फेंकते देखो या फिर रुपसा नदी के मटमैले पानी में किसी लड़के को फटे-उड़ते पाल की नाव तेजी से ले जाते देखो या फिर रंगीन बदलों के सभ्य उड़ते सारस को देखो, अंधेरे में मैं उनके बीच ही होऊँगा। तुम देखना, मैं आऊँगा जरूर।

कवि ने बंगाल का जो दृश्य-चित्र इस कविता में उतारा है, वह तो मोहक है ही और गहरी छाप छोड़ता है। इसके साथ ही कवि ने ‘अंधेरे’ में साथ होने के उल्लेख द्वारा कविता को नयी ऊँचाई दी है। यह ‘अंधेरा’ है बंगाल का दुख-दर्द, गरीबी की पीड़ा। इस परिवेश में होने की बात से यह कविता बंगाल के दृश्य-चित्रों, कवि के मातृभूमि प्रेम और मानवीय भाव-बोध की अनूठी कृति बन गई है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्दों के लिंग-परिवर्तन करें। लिंग-परिवर्तन में आवश्यकता पड़ने पर समानार्थी शब्दों के भी प्रयोग करें-
नदी, कौआ, भोर, नयी, हंस, किशोरी, हवा, बच्चा, बादल, सारस।
उत्तर-
नदी – नद
कौआ – कौओ
भोर – सबह
नयी – नया
हँस – हँसी
किशोरी – किशोर
हवा – पवन
बच्चा – बच्ची
बादल – वर्षा
सारस – मादा सार

प्रश्न 2.
कविता से विशेषण चुनें और उनके लिए स्वतंत्र विशेष्य पद दें।
उत्तर-
बहती – नदी
नयी – फसल
गंदा – पानी
फटे – पाल
रंगीन – बादल

प्रश्न 3.
कविता में प्रयुक्त सर्वनाम चुनें और उनका प्रकार भी बताएँ।
उत्तर-
जो – संबंधवाचक
मैं – पुरूष वाचक
तुम – पुरूष वाचक
कोई – अनिश्चय वाचक उसकी
संबंध वाचक का कारकीय रूप

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारे फिर आऊँगा लौट कर
एक दिन-बंगाल में; नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील
या फिर कौवा उस भोर का-फूटेगा नयी
धान की फसल पर जो
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक ।
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन !
बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का;
घुघरू लाल पैरों में;
तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।
आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलायेंगे
मैं आऊँगा। जिसे नदी धोती ही रहती है पानी
से-इसी हरे सजल किनारे पर।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख)कविता का प्रसंग लिखें।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य लिखें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य लिखें।
उत्तर-
(क) कविता – लौटकर आऊंगा फिर।
कवि – जीवनानंद दास।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत कविता में बँगला साहित्य के सुप्रसिद्ध दास का प्रकृति के प्रति उत्कृष्ट प्रेम का वर्णन किया है। इस कविता से कवि की नैसर्गिक प्राकृतिक प्रेम और देश भक्ति प्रेम के चित्र स्पष्ट झलक पड़े हैं। स्वछंदतावादी विचारधारा के महान कवि ने अपनी भूमि बंगाल में फिर लौटकर आने की बात कहकर अपने आपको मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम दर्शा रहे हैं।

(ग) प्रस्तुत कविता में बँगला साहित्य के सर्वाधिक सम्मानित कवि जीवनानंद दास ने अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम का वर्णन किया है। यहाँ पर बंगाल के स्वाभाविक सम्मोहन प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्र खींचा गया है। कवि कहते हैं कि देश या विदेश के किसी कोने में रहूँ लेकिन एक बार मैं अपनी बंगाल की भूमि पर जरूर आऊँगा जहाँ हरे-भर धान के खेत हैं, उफनती हुई नदियाँ हैं तो उस नदी के किनारे फिर मैं लौटकर आऊँगा।

एक दिन ऐसा भी होगा कि बंगाल में कोई नहीं होगा सिर्फ एक छोटी चिड़िया रहेगी जो उजड़े और सुनसान मकानों को पसंद करती है या फिर सुबह में काँव-काँव करने वाला कौवा रहेगा तब पर भी मैं अपनी मातृभूमि को देखने के लिए जरूर आऊँगा। बंगाल की उपजाऊ मिट्टी पर जब धान की फसलों के ऊपर महीन-महीन कुहरे की बूंदें रहेंगी, कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक आनंद की झूला झूलते हुए मैं जरूर इस सुन्दर प्रकृति को देखने के लिए आऊँगा। कवि की इच्छा है कि जब भी मैं जन्म लूँ तो अपने बंगाल में ही, इसलिए बार-बार यहाँ जन्म लेना चाहते हैं।

शायद यह भी इच्छा है कि मैं हंस बनकर और किसी किशोरी के पैरों की सुन्दर घुघरू बनकर उसके पैरों की सुन्दरता में चार चाँद लगा दूँ जहाँ दिन-दिन भर मैं पानी में तैरता रहूँगा, जहाँ की प्रकृति में हरी-भरी घास होगी और गंध ही गंध होगी वहाँ मैं जरूर आऊँगा। मुझे विश्वास है कि अगले जन्म में भी बंगाल की नदियाँ और मैदान मुझे जरूर बुलाएँगे। मैं उस नदी पर आऊँगा जो अपने पवित्र जल से हमेशा अपने तटों को धोती रहती हैं।

(घ) भाव-सौंदर्य–प्रस्तुत कविता में कवि अपनी मातृभूमि के प्रति असीम आस्था एवं प्रेम का भाव बोधन किये हैं। कवि की इच्छा है कि अगले जन्म में भी मैं इसी मातृभूमि पर उत्पन्न लूँ और यहाँ के खेतों, खलिहानों, नदियों, सभ्यताओं और संस्कृतियों की धारा में उसी प्रकार समाहृत हो जाऊँ जहाँ आज हूँ।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) यह बैंग्ला भाषा की भाषांतरित कविता होने के कारण खड़ी बोली की समस्त रूप रेखा देखने को मिल रही है।
(ii) मूल रूप से तद्भव के प्रयोग के साथ देशज एवं विदेशज शब्दों का भी अच्छा प्रयोग है।
(ii) भाषा सरल, सुबोध एवं स्वाभाविक है।
(iv) कविता मुक्तक होते हुए भी कहीं-कहीं संगीतमयता का रूप धारण कर लिया है।
(v) भक्ति भावना की उत्कटता के कारण प्रसादगुण की अपेक्षा की गई है। कहीं-कहीं माधुर्य गुण की झलक प्रकृति प्रेम में दिखाई पड़ जाती है।

2. शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल
शायद कोई बच्चा – उबले हुए !
देखोगे, रूपसा के गंदले-से पानी में
नाव लिए जाते एक लड़के को-उड़ते फटे
पाल की नाव !
लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस
अँधेरे में होऊँगा मैं उनहीं के बीच में
देखना !
प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-लौटकर आऊँगा फिर।
कवि-जीवनानंद दास।

(ख) प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में बांग्ला साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि जीवनानंद दास ने अपनी बंगाल भूमि के प्रति अंगाध प्रेम का वर्णन किया है। कवि की उत्कट इच्छा है कि इस जीवन के बाद जब भी जन्म लूँ तो इसी मातृभूमि की गोद में, क्योंकि यहाँ की संस्कृति सभ्यता प्राकृतिक सौंदर्य के एक-एक अंश कवि के हृदय में समाहृत है। अतः अपनी मातृभूमि का वर्णन चित्रात्मक
शैली में किया गया है।

(ग) सरलार्थ पुनः कवि अपनी मातृभूमि के प्रति अपनी जिज्ञासां व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मैं उस मातृभूमि पर पुन: लौटकर आऊँगा, हे मानव जहाँ प्रकृति के अनुपम सौंदर्यमयी वस्तु हवा के साथ शाम के एक उल्लू के उड़ते हुए देखते हो। शायद कपास के पेड़ पर उसकी मधुर आवाज भी सुनोगे। हरी-भरी लहलहाती हुई घास की जमीन पर जब कोई बच्चा एक मुट्ठी चावल फेंकेगा तो उसे चुगने के लिए रंग-बिरंग के पक्षी वहाँ आएंगे, उबले हुए चावल भी वहाँ फेंके हुए मिल सकते हैं। जब तुम भी इस बंगाल की धरती पर पहँचोगे तो रूका गंदे पानी में नाव लिये जाते हुए उसी प्रकार देखोगे जैसे फटे हुए नाव की पाल उड़ते हुए जाते हैं। आकाश के स्थल पर रंगीन बादलों के बीच अनेक सारस संध्याकालीन लौटते हुए नजर आएंगे और उस समय आनंदमय अवस्था में अंधेरे में भी उनके साथ होऊँगा।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में मातृभूमि की सुंदरता एवं संभावना कवि के हृदय के कोने-कोने में समाहृत है। रंगीन बादलों की छटा स्वेत कपास की सुन्दरता, उफनती नदी की मोहकता का वर्णन बिम्ब-प्रतिबिम्बों के रूप में मुखरित हुआ है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य बांग्ला भाषा से खड़ी बोली में भाषांतरित होकर कविता पूर्ण । योग्यता में आ गई है। यहाँ सरल, सुबोध और नपे-तुले तद्भव शब्दों का प्रयोग मिल रहे हैं। कहीं-कहीं बांग्ला तद्भव के प्रयोग से भाव में सौंदर्य बोध स्पष्ट है। – यहाँ चित्रमयी शैली का प्रयोग भावानुसार पूर्ण सार्थक है।
कविता में बिम्ब-प्रतिबिम्बों का सौंदर्य अनायास ही पाठक को आकर्षित करता है और कविता मुक्तक होकर भी संगीतमयी है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें-

प्रश्न 1.
जीवनानंद दास बांगला के किस काल के प्रमुख कवि हैं
(क) आदिकाल
(ख) मध्यकाल
(ग) रवीन्द्रनाथ-काल
(घ) रवीन्द्रोत्तर-काल
उत्तर-
(घ) रवीन्द्रोत्तर-काल

प्रश्न 2.
कौन-सी कविता के रचयिता जीवनानंद दास हैं ?
(क) अक्षर ज्ञान
(ख) लौटकर आऊँगा फिर
(ग) हमारी नींद
(घ) भारतमाता
उत्तर-
(ख) लौटकर आऊँगा फिर

प्रश्न 3.
‘लौटकर आऊंगा फिर’ कविता में कवि का कौन-सा भाव प्रकट होता है ?
(क) मातृभूमि-प्रेम
(ख) धर्म-भाव
(ग) संसार की नश्वरता
(घ) मातृ-भाव
उत्तर-
(क) मातृभूमि-प्रेम

प्रश्न 4.
‘वनलता सेन’ किस कवि की श्रेष्ठ रचना है ?
(क) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(ख) जीवनानंद दास
(ग) नजरूल इस्लाम
(घ) जीवानंद
उत्तर-
(ख) जीवनानंद दास

प्रश्न 5.
‘लौटकर आऊँगा फिर का प्रमुख वर्ण्य-विषय क्या है ?
(क) बंगाल की प्रकृति
(ख) बंगाल की संस्कृति
(ग) बंग-संगीत
(घ) बंग-भंग
उत्तर-
(क) बंगाल की प्रकृति

प्रश्न 6.
जीवनानंद दास कैसे कवि हैं ?
(क) रीतिवादी
(ख) प्रगतिवादी
(ग) यथार्थवादी.
(घ) आधुनिक
उत्तर-
(ग) यथार्थवादी.

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
जीवनानंद दास ……….. साहित्य के चर्चित कवि हैं।
उत्तर-
बाँग्ला

प्रश्न 2.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का ………. अन्य कवियों के लिए चुनौती था।
उत्तर-
स्वछंदतावाद

प्रश्न 3.
‘वनलता सेन’ ………… युग की श्रेष्ठ कविता मानी जाती है।
उत्तर-
रवीन्द्रोनर – शुग

प्रश्न 4.
जीवनानंद दास ने काव्य के अतिरिक्त ………….. रचनाएँ भी की हैं।
उत्तर-
कहानियों और उपन्यासों को

प्रश्न 5.
जीवननांद दास का जन्म सन् ………….. ई. में हुआ।
उत्तर-
1899

प्रश्न 6.
‘लौटकर आऊंगा फिर’ जीवनानंद दास की …………. काव्य-रचना है।
उत्तर-
लोकप्रिय

अतिलघु उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवनानंद दास ने जिस समय बाँग्ला काला-जगत में प्रवेश किया, उस समय क्या स्थिति थी?
उत्तर-
जिस समय जीवनानंद दास ने बांग्ला काव्य-जगत में प्रवेश किया, उस समय रवीन्द्रनाथ ठाकुर शिखर पर विराजमान थे।

प्रश्न 2.
बाँग्ला काव्य को जीवनानंद दास की देन क्या है ?
उत्तर-
बाँग्ला काव्य को जीवनानंद दास की देन हैं-नयी भावभूमि, नयी दृष्टि और नयी शैली।

प्रश्न 3.
‘वनलता सेन’ को कब और क्यों पुरस्कृत किया गया?
उत्तर-
जीवनानंद दास की काव्य-कृति ‘वनलता सन्’ को श्रेष्ठ काव्य-ग्रंथ के रूप में सन् 1952 ई. में निखिल बंग रवीन्द्र साहित्य सम्मेलन द्वारा पुरस्कार दिया गया।

प्रश्न 4.
जीवनानंद दास के कुल कितने उपन्यास उपलब्ध हैं ?
उत्तर-
जीवनानंद दास के लिखे कुल तेरह उपन्यास उपलब्ध हैं।

प्रश्न 5.
बाँग्ला साहित्य में जीवनानंद दास की ‘वनलता सेन’ किस रूप में समाहित है ?
उत्तर-
बाँग्ला साहित्य में जीवनानंद दास की कृति रवीन्द्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम-कविता के रूप में समाहित हैं। यह कविता बहुआयामी भाव-व्यंजना का उत्कृष्ट उदाहरण है।

प्रश्न 6.
जीवनानंद दास ने कुल कितनी कहानियाँ लिखीं?
उत्तर-
जीवनानंद दास ने कुल सौ कहानियां लिखीं।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारें फिर आऊँगा लौटकर
एक दिन बंगाल में; नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील
या फिर कौवा उस भोर का- फूटेगा नयी
धान की फसल पर जो
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन !
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “लौटकर आऊँगा फिर” काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग कवि की बंगाल के प्रति अनुरक्ति से है।
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि बंगाल में एक दिन पुनः लोटकर मैं आऊंगा। नदी के किनारे जो धान के खेत हैं, उनका दर्शन करूंगा। संभव है उस समय मैं भले ही मनुष्य के रूप में नहीं, भले ही कौवा या अबाबील के रूप में ही सही बनकर आऊंगा। – उस भोर का मौसम कितना सुखद होगा जब नयी धान की फसल का दर्शन होगा? कुहरे के बीच कटहल की छाया तक कदमों को बढ़ाते हुए अवश्य आऊँगा। एक दिन अवश्य आऊँगा।

अपनी उपर्युक्त कविता में कवि ने बीते दिनों की स्मृति को याद किया है। संभव है—यह कविता बंगला-देश या बंगाल प्रांत बनने के क्रम में लिखी गयी हो। बंगाल में धान की खेती काफी होती है। कवि अतीत के भूले-बिसरे दिनों की यादकर प्रकृति के साथ अपना संबंध स्थापित करना चाहता है। कवि को नदी से प्रेम है, कवि को धान के खेतों से प्रेम है। कवि के भीतर जीवंतता विद्यमान है तभी तो वह कौवा जैसा उड़ना चाहता है। अबाबील बनना चाहता है उसे भोर प्रिय है। उसे नयी धान की फसलों से प्यार है। कुहरे के बीच वह हिम्मत नहीं हारता। कटहल की छाया यानी जीवन के अवसान काल तक भी वह हार नहीं मानना चाहता। बल्कि पेंग भरता, कदम बढ़ाता आने का वचन देता है। वह एक दिन पुनः अवश्य आएगा, मातृभूमि के प्रति प्रेम, प्रकृति के प्रति प्रेम, जीव-जंतुओं के प्रति प्रेमभाव इस कविता में वर्णित है। कवि अतीत के बीते दिनों की याद कर पुनः मातृभूमि का दर्शन करने के लिए आने का वचन देता है।

प्रश्न 2.
बनकर शायद हंस मैं किसी किशोरी का,
धुंघरू लाल पैरों में,
तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में-
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।
आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलाएँगे
मैं आऊंगा जिसे नदी धोती ही रहती है पानी
से-इसी हरे सजल किनारे पर।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘लौटकर आऊंगा फिर’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बंगाल भूमि, वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि मैं हंस बनकर बंगाल भूमि पर आऊँगा। वहाँ की किशोरियों के लाल-लाल गुलाबी पैरों में घुघरु की रून-झन आवाज को सुनूँगा, उनका दर्शन करूँगा। दिन-भर वहाँ की नदियों में हंस बनकर तैरूंगा। हरी-भरी घास जडित मैदानों के बीच विचरण करूंगा। वहाँ की धरती की गंध से स्वयं को सुवासित करूंगा। बंगाल की नदियाँ वहाँ के मैदान मुझे अवश्य बुलाएंगे। मैं भी उनका दर्शन करने अवश्य आऊंगा। नदी अपने स्वच्छ और निर्मल पानी से किनारे बसे हुए मैदानों, खेतों, पेड़ों को सींचती रहती है। उनके दु:ख-दर्द को धोती रहती है। नदी के किनारे बसे हुए गांव, वहाँ की सजल आँखों का भी दर्शन करूंगा।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ बंगाल भूमि के सौंदर्य, नदियों का, निवासियों का, घास के मैदानों का दर्शन करने एक न एक दिन कवि अवश्य आएंगा। कवि बंगाल भूमि के प्रति काफी संवेदना रखता है।

प्रश्न 3.
शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल
शायद कोई बच्चा-उबले हुए !
देखोगे, रूपसा के गंदले-से पानी में
नाव लिए जाते एक लड़के को-उड़ते
फटे पाल की नाव!
लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस
अंधेरे में होऊंगा मैं उन्हीं के बीच में
देखना!
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “लौटकर आऊंगा फिर” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बंगाल भूमि की प्राकृतिक सुषमाओं से जुड़ा हुआ है। कवि कहता है कि जब तुम बंगाल की भूमि पर उतरोगे तो शाम की हवा में उड़ते हुए उल्लू का दर्शन करोगे। संभव हो, तुम उल्लू की बोली भी कपास के पेड़ पर सुनोगे। वहाँ की घास से ढंकी हुई जमीन पर तब उबले हुए चावल के दाने कोई नन्हा बच्चा फेंकेगा।
कवि अपनी आँखों से देखता है कि उड़ते हुए फटे पाल की नाव के साथ गंदले पानी के रूप-रंग का एक लड़का नाव को नदी के बीच लिए जा रहा है।

कवि पुनः कहता है कि रंगीन बादलों के बीच से संध्याकाल में सारसों के झंड लौटते हुए दिखेंगे। अंधेरा होने को है। उसी बीच मैं भी मिलूंगा। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि बंगाल भूमि की, वहाँ के पक्षियों की, बादलों की, हवाओं नाव के गंदे लड़के की चर्चा कर एक ऐसा
दृश्य उपस्थित करता है जो मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कवि प्रकृति प्रेमी है। उसे प्रकृति से अटूट प्रेम है वह प्रकृति के बीच जीना चाहता है। वह प्रकृति की गोद में विचरण करना चाहता है।

लौटकर आऊँग फिर कवि परिचय

बाँग्ला के सर्वाधिक सम्मानित एवं चर्चित कवियों में से एक जीवनानंद दास का जन्म 1899 ई० में हुआ था । रवीन्द्रनाथ के बाद बाँग्ला साहित्य में आधुनिक काव्यांदोलन को जिन लोगों ने योग्य नेतृत्व प्रदान किया था, उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली एवं मौलिक कवि जीवनानंद दास ही हैं । इन कवियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में था रवीन्द्रनाथ का स्वच्छंदतावादी काव्य । स्वच्छंदतावाद से अलग हटकर कविता की नई यथार्थवादी भूमि तलाश करना सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था । इस कार्य में अग्रणी भूमिका जीवनानंद दास की रही । उन्होंने बंगाल के जीवन में रच-बसकर उसकी जड़ों को पहचाना और उसे अपनी कविता में स्वर दिया। उन्होंने भाषा, भाव एवं दृष्टिकोण में नई शैली, सोचं एवं जीवनदृष्टि को प्रतिष्ठित किया ।

सिर्फ पचपन साल की उम्र में जीवनानंद दास का निधन एक मर्मांतक दुर्घटना में हुआ, सन् 1954 में । तब तक उनके सिर्फ छह काव्य संकलन प्रकाशित हुए थे – ‘झरा पालक’, ‘धूसर पांडुलिपि’, ‘वनलता सेन’, ‘महापृथिवी’: ‘सातटि तागर तिमिर’ और ‘जीवनानंद दासेर श्रेष्ठ कचिता’ ! उनके अन्य काव्य संकलन ‘रूपसी बांग्ला’,’बला अबेला कालबेला’, ‘मनविहंगम’ और ‘आलोक पृथिवी’ निधन के बाद प्रकाशित हुए । उनके निधन के बाद लगभग एक सौ कहानियाँ और तेरह उपन्यास भी प्रकाशित किए गये ।

‘वनलता संन’ काव्यग्रंथ की ‘वनलता सेन’ शीर्षक कविता को प्रबुद्ध आलोचकों द्वारा रवींद्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम कविता की संज्ञा दी गयी है । वस्तुतः यह कविता बहुआयामी भाव-व्यंजना का उत्कृष्ट उदाहरण है । निखिल बंग रवींद्र साहित्य सम्मेलन के द्वारा ‘वनलता सेन’ को 1952 ई० में श्रेष्ठ काव्यग्रंथ का पुरस्कार दिया गया था ।

यहाँ समकालीन हिंदी कवि प्रयाग शक्ल द्वारा भाषांतरित जीवनानंद दास की कविता प्रस्तुत है। यह कवि की अत्यंत लोकप्रिय और बहुप्रचारित कविता है । कविता में कवि का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम अभिव्यक्त होता है। बंगाल अपने नैसर्गिक सम्मोहन के साथ चुनिंदा चित्रों में सांकेतिक रूप से कविता में विन्यस्त है । इस नश्वर जीवन के बाद भी इसी बंगाल में एक बार फिर आने की लालसा मातृभूमि के प्रति कवि के प्रेम की एक मोहक भंगिमा के रूप में सामने आती है।

लौटकर आऊँग फिर

पाठ का अर्थ

नई कविता काल के कवि प्रखर कवि जीवनानंद दास हिन्दी साहित्य में अपना एक अलग पहचान बनाये हुए हैं। रवीन्द्रनाथ के बाद बंगला साहित्य में आधुनिक काव्यांदोलन को जिन लोगों ने योग्य नेतृत्व प्रदान किया था उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली एवं मौलिक कवि जीवनानंद दास ही है। स्वच्छंदतावाद से अलग हटकर कविता की नई यथार्थवादी भूमि तलाश कर इन्होंने ने एक नया आयाम दिया।

प्रस्तुत कविता में कवि का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम अभिव्यक्त होता है। नश्वर शरीर त्यागने के बाद भी पुनः मनुष्य रूप में अवतरित होकर बंगाल को ही अपना जन्मभूमि चुनने के पीछे कवि की उत्कृष्टता देखने में बनती है। यदि मनुष्य में नहीं जन्म लूँ तो अबाबील, कौवा, हँस आदि में जन्म लेकर भी बंगाल की धरती पर ही विचरण करूँ। नदी की पानी, कपास के पेड़ों पर सुनाई पड़ने वाली बोली सभी में मेरा ही अंश हो’। नदी के वक्षस्थल पर तैरती हुए नौकाओं की पालों में भी हमारी’ उत्कंठा है। संध्याकालीन आकाश में रेंगने वाले पक्षिगणों के बीच हमारी उपस्थिति अनिवार्य होगी। वस्तुतः इस कविता में नश्वर जीवन के बाद भी इसी बंगाल में एक बार फिर आने की लालसा मातृभूमि के प्रति कवि के प्रेम की एक मोहक भंगिमा के रूप, में सामने आती है।

शब्दार्थ

अबाबील : एक प्रसिद्ध काली छोटी चिड़िया जो उजाड़ मकानों में रहती हैं, भांडकी
पेंग : झूले का दोलन
रूपसा : बंगाल की नदी विशेष
सारस : पक्षी विशेष, क्रौंच

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