मेरे बिना तुम प्रभु
कविता के साथ
प्रश्न 1.
कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहा है ?
उत्तर-
कवि अपने को भगवान का भक्त मानता है। भक्त की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कवि भक्त को जलपात्र और मदिरा कहा है क्योंकि जलपात्र में जिस प्रकार जल संग्रहित होकर अपनी अस्मिता प्राप्त करता है, ‘जलपात्र के माध्यम से जल का उपभोग किया जा सकता है। जलपात्र जल के सानिध्य को प्राप्त करने में सहायक होता है उसी प्रकार भगवान के लिए भक्त है। इसी तरह मदिरा पान से मन मदमस्त हो जाता है, मदिरा आनंद की अनुभूति कराता है और भगवान भी भक्त से जल मिलते हैं तब प्रसन्न हो जाते हैं, भक्ति रस के निकट आकर इससे आहलादित हो जाते हैं, ऐसा लगता है कि भक्त के बिना रहना मुश्किल हो जाता है। भक्त ही भगवान की – पहचान है। इसलिए कवि अपने को जलपात्र एवं मदिरा की संज्ञा देते हैं।
प्रश्न 2.
आशय स्पष्ट कीजिए: “मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?”
उत्तर-
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भक्त को भगवान की अस्मिता माना है। भगवान का वास्तविक स्वर भक्त में है। भक्त भगवान का सब कुछ है। भगवान का रूप, वेश, रंग, कार्य सब भक्त में निहित है। भक्त के माध्यम से ही भगवान को जाना जा सकता है, उनके अस्तित्व की अनुभूति किया जा सकता है। कवि कहता है कि हे भगवन मेरा अस्तित्व ही तुम्हारी पहचान है। मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारी पहचान भी नहीं होगी। अर्थात् भक्त से अलग रहकर, भक्त को खोकर भगवान भी अपना अर्थ, अपना मतलब, अपनी पहचान खो देंगे। भक्त के बिना भगवान की कल्पना ही नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 3.
शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों ?
उत्तर-
कवि के अनुसार भगवत्-महिमा भक्त की आस्था में निहित होता है। भक्त, भगवान का दृढाधार होता है लेकिन जब भक्त रूपी आधार नहीं होगा तो स्वाभाविक है कि भगवान की पहचान भी मिट जाएगी। भगवान का लबादा अथवा चोगा गिर जाएगा। भक्त भगवान का कृपा पात्र होता है, भगवत कृपा दृष्टि भक्त पर पड़ती है। इतना ही नहीं भगवान अपने भक्तों पर गौरवान्वित होते हैं। भक्त की अस्मिता समाप्त होने से भगवान का गौरव भी मिट जाएगा। भक्त ही प्रभु का स्वरूप है।
प्रश्न 4.
कवि किसको कैसा सुख देता था?
उत्तर-
कवि भगवान की कृपा दृष्टि की शय्या है। कवि के नरम कपोलों पर जब भगवान की कृपा दृष्टि विश्राम लेती है, तब भगवान को सुख मिलता है आनंद मिलता है। अर्थात् भक्त भगवान का कृपा पात्र होता है और भक्तरूपी पात्र से भगवान भी सुखी होते हैं। भक्त के द्वारा भगवान हेतु प्रदत्त सुख की चर्चा कवि करते हैं। भक्त की प्रेम वाटिका की सुखद छाया में भगवान को जो सुख मिलता है वही सुख कवि भगवान को देता है।
प्रश्न 5.
कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि को आशंका है कि जब ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति करानेवाला प्रतीक आधार दर्शन है। हम नहीं समझना वा देना चाहिए। या भक्त नहीं होगा तब ईश्वर का पहचान किस रूप में होगा? प्राकृतिक छवि, मानव की हृदय का प्रेम, दया, भगवद् स्वरूप है। भक्ति की रसधारा ईश्वरीय सत्ता या परमानंद का वाहक है। सूर्य की लालिमा या सुनसान पर्वत पर ठंढी चट्टानें भगवान के स्वरूप का दर्शन कराता है। ये सब नहीं होगा तब उस परमात्मा का आश्रय क्या होगा मानव किस रूप में ईश्वर की जान सकेगा इस प्रश्न को लेकर कवि आशंकित है।
प्रश्न 6.
कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है? आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर-
कविता में कवि भक्त के रूप में भगवान को सम्बोधित करता है। इसमें भक्त अपने को भगवान का आश्रय, गृह स्वीकारता है। अपने में भगवान की छवि को देखता है और कहता है कि हे भगवान ! मैं भी तुम्हारे लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण हूँ जितना तुम मेरे लिए। तुम्हारे अस्तित्व का मैं वाहक हूँ। मैं तुम्हारा पहचान हूँ। मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारी भी कल्पना संभव नहीं है। मैं तुम्हारे लिए हूँ और तुम मेरे लिए। हम दोनों एक-दूसरे के चलते जाने जाते हैं।
कवि के इस विचार की हम पुष्टि करते हैं। हमारे विचार से भक्त ही भगवान का वास्तविक स्वरूप है। ईश्वरीय सत्ता अदृश्य है और उस अदृश्य शक्ति का दर्शन भक्त के माध्यम से संभव हो जाता है। नश्वर जीव की महत्ता कम नहीं है क्योंकि यह ईश्वरीय अंश है और व्यापक ईश्वर का साक्षात् दर्शन है। हमें भक्त और भगवान के इस संबंध को स्वीकारना चाहिए और इस यथार्थ को मानकर अपने को हीन नहीं समझना चाहिए बल्कि इस मानवीय जीवन के महत्त्व को समझते हुए इस बहुमूल्य जीवन को यों ही नहीं गवाँ देना चाहिए। इस अनमोल मानवीय जीवन को ईश्वरीय स्वरूप मानकर परमात्मा के सत्ता को स्थापित करने हेतु क्रियान्वित रहना चाहिए।
प्रश्न 7.
मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस कविता में कहा गया है कि मानव के अस्तित्व में ही ईश्वर का अस्तित्व है। मानवीय जीवन में ईश्वरीय अंश होता है। परमात्मा के अदृश्यता को जीवात्मा दृश्य करता है। ईश्वर की झलक जीव के माध्यम से देखी जाती है। इस कविता में जीव को ईश्वर का जलपात्र, मदिरा कहा गया है। साथ ही मनुष्य को भगवान का वेश, वृत्ति, शानदार लबादा कहकर मानव-जीवन की महत्ता को बढ़ाया गया है। यह जीवन नश्वर है, लघु है फिर भी गौरवपूर्ण है। इसकी महिमा ईश्वरतुल्य है, क्योंकि मनुष्य ही ईश्वरीय सत्ता का वाहक है। मनुष्य भक्त के स्वरूप में भगवान के गुणों को उजागर करता है और भगवद्-महिमा को स्थापित करता है। यहाँ तक कहा गया है कि मनुष्य रूप में भगवान का भक्त नहीं हो तो भगवान के भी होने की बात की कल्पना नहीं की जा सकती ।
प्रश्न 8.
कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कहा गया है कि बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय है। उनकी भगवत्ता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है। व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर है। भगवान जल हैं तो भक्त जलपात्र है। भगवान के लिए भक्त मदिरा है। बिना भक्त के भगवान रह ही नहीं सकते। भक्त ही भगवान का सब कुछ हैं और भक्त के लिए भगवान सबकुछ हैं। ब्रह्म को साकार करनेवाला जीव होता है और जीव जब ब्रह्ममय हो जाता है तब वह परमानंद में डूब जाता है। भक्त के भक्ति को पाकर परमात्मा आनंदित होता है और परमात्मा को प्राप्त करके भक्त परमानंद को प्राप्त करता है। यही अन्योन्याश्रय संबंध भक्त और भगवान में
प्रश्न 9.
“लौटकर आऊँगा फिर’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
मेरे बिना तुम प्रभु’ रिल्के की चर्चित कविता है। इस कविता में कवि ने बताया है कि भगवान् का अस्तित्व भक्त पर ही निर्भर है। भक्त के बिना भगवान एकांकी और निरूपाय है।
कवि कहता है कि हे प्रभु ! जंब मैं न रहूँगा तो तुम्हारा क्या होगा? तुम क्या करोगे मैं ही तो तुम्हारा जलपात्र हूँ, जिससे तुम पानी पीते हो। अगर टूट गया तो या तुम्हें जिसे नशा होता है, तो मेरे द्वारा उन्हें प्राप्त मदिरा सूख जाएगी अथवा स्वादहीन हो जाएगी दरअसल मैं ही तुम्हारा आवरण हूँ, वृत्ति हूँ। अगर नहीं रहा तो तुम्हारी महत्ता ही सामान्य हो जाएगी। मेरे प्रभु। मैं न रहा तो तुम्हारा मंदिर-मस्जिद-गिरजा कौन बनाएगा? तुम गृहहीन हो जाओगे? कौन करेगा तुम्हारी पूजा-अर्चना ? दरअसल, मैं ही तुम्हारी पादुम हूँ जिसके सहारे जहाँ जाता हूँ तुम जाते हो। अन्यथा तुम भटकोगे।
कवि पुनः कहता है कि मुझसे ही तुम्हारी शोभा है। मेरे बिना किस पर कृपा करोगे? कृपा करने का सुख कौन देगा? जानते हो प्रभु, यह-जो कहा जाता है कि सूरज का उमना-डूबना सब प्रभु की कृपा है, वह भी मैं कहता हूँ और इस प्रकार तुम्हें सृष्टिकर्ता बताने-बनाने का कार्य भी मेरा ही है। मुझे तो आशंका होता है कि मैं न रहा तो तुम क्या करोगे?
कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर को मनुष्य ने ही स्वरूप दिया है। महिमा-मंडित किया है, सर्वेसर्वा बनाया है। भगवान की भगवत्ता महत्ता तथा महानता मनुष्य पर आधारित है। कहने का अर्थ यह है कि विराट सत्य और मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
कविता से तत्सम शब्दों का चयन करें एवं उनका स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर-
जलपात्र – जलपात्र खो गया।
वृत्ति – भीख मांगना उसकी वृत्ति है।
गृहहीन – वह गृहहीन है।
निर्वासित – वह निर्वासित हो चुका है।
पादुका – पादुका नया है।
सूर्यास्त – सूर्यास्त हो गया।
प्रश्न 2.
कविता में प्रयुक्त क्रियाओं का स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर-
बिखर – उसकी स्वप्न बिखर गया।
सुखना – लकड़ी सूखी है।
खोकर – सब कुछ खोकर उसने संन्यास ले लिया।
भटकना – वह भटकता है।
गिरना – वह सीढी से गिर गया।
खोजन – नौकरी की खोज में राम खाक छानता है।
प्रश्न 3.
कविता से अव्यय पद चुनें।
उत्तर-
जब, तब, टूटक, बिना, दूर।
काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
1. जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे?
जब मैं – तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊंगा या स्वादहीन हो जाऊँगा?
मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?
मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे भटकेंगे लहूलुहान !
प्रश्न
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क.) कविता- मेरे बिना तुम प्रभु।
कवि-रेनर मारिया रिल्के।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि नश्वर मनुष्य की महत्ता को बताते हुए भक्त और भगवान के संबंध को प्रकाशित किया है। कवि अपने को भक्त मानते हुए कहते हैं कि मैं भगवान के लिए सब कुछ हूँ। भगवान का जलपात्र एवं मदिरा मैं ही हूँ। इस पद में कवि कहते हैं कि भक्त भगवान का निवास स्थान है। उनके पैरों की पादुका है जो उनके पैर में छाले पड़ने से बचाता है। भक्त के बिना प्रभु को कैसे रहेंगे यह आशंका से कवि ग्रसित है।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कवि कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं तुम्हें अपने अन्तरात्मा में रखने वाला भक्त हूँ और तुम्हारे लिए मेरी अति महत्ता है। अगर मेरा अस्तित्व नहीं रहेगा तो तुम्हारा भी अस्तित्व उजागर नहीं रहेगा। तुम अदृश्य हो और तुम्हारी सत्ता को साकार करने में तुम्हारी सत्ता को जग जाहिर करने में मेरी ही अहम भूमिका है।
अगर मैं नहीं रहूँगा तो तुम कहाँ रहोगे। मैं तुम्हारा जलपात्र हूँ मैं तुम्हारी मदिरा हूँ और यह जलपात्र अगर टूटकर बिखर जाएगा, मदिरा स्वादहीन हो जाएगा तो तुम बेचैन हो जाओगे, उस अवस्था तुम कहाँ कैसे रहोगे यह मेरे लिए चिन्ता का विषय है। आगे कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं तुम्हारा वेश, वृत्ति, गृह, पादुका सबकुछ हूँ। मेरे बिना तुम गृहहीन हो जाओगे। मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारा स्वागत कौन करेगा। मैं पादुका बनकर तुम्हारे पैर की रक्षा करता हूँ। इसके बिना तुम्हारे पैर में छाले पड़ जाएंगे। अर्थात् भगवान भक्त वत्सल है और भक्त के बिना नहीं रह सकते। भगवान का भक्त उनका अभिन्न अंग है।
(घ) प्रस्तुत कविता का भाव-सौंदर्य यह है कि भगवान और भक्त दोनों में घनिष्ठ संबंध है। भक्ति में भगवान के अस्तित्व के बिना भक्त का अस्तित्व जिस प्रकार शून्य है उसी प्रकार भक्त बिना भगवान की सत्ता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। भक्त की उपासना की जटिलता में ईश्वर का साक्षात्कार होना या गौण रूप से भक्ति की महत्ता को दर्शाना एक दूसरे पर आश्रित है। भक्त ही भगवान की सत्ता को स्वीकार करके सम्पूर्ण वातावरण में बिखेरता है।
(ङ) (i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(ii) जर्मन भाषा से हिन्दी भाषा में यह कविता रूपान्तरित है। इसमें तद्भव के साथ तत्सम और अरबी शब्दों का एक अनूठा प्रयोग है।
(ii) भक्ति धारा में प्रवाहित यहाँ शांत रस के साथ प्रसाद गुण की झलक है।
(iv) कविता मुक्त होते हुए भी कहीं-कहीं संगीतमयता रखती है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग पूर्ण सार्थक है।
2. तुम्हारा शानदार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपादृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था
दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख
प्रभु, प्रभुः मुझे आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या करोगे?
प्रश्न
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) दिये गये पद का सरलार्थ लिखें।
(ग) पद का प्रसंग लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-मेरे बिना तुम प्रभु।
कवि-रेनर मारिया रिल्के।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश में प्रभु की सत्ता को स्थापित करने का माध्यम भक्त को बताया गया है। भक्त स्वरूप मनुष्य पर भगवान गौरवान्वित होते हैं-भक्त विहीन होने से भगवान का शानदार चोगा (लबादा) गिर जाएगा। भक्त के कपोल भगवान के लिए नरम बिछावन के रूप में उनके कृपा दृष्टि को आश्रय देनेवाले हैं। भक्त अभाव में भगवद्-कृपा दृष्टि आश्रयविहीन हो जाएगा। भक्त से जो सुख भगवान को प्राप्त होता है अगर भक्त नहीं होगा तो सुख के बदले उन्हें निराशा हाथ लगेगी। कवि को आशंका होती है कि भक्त वत्सल भगवान भक्त से बिछुड़कर, भक्त के बिना कैसे रहेंगे? प्रभु और भक्त दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने नश्वर मनुष्य के जीवन की महिमा और गौरव का वर्णन किया है। यह लघु मानवीय जीवन इतना महत्त्वपूर्ण है कि इस पर भगवान भी गौरव करते हैं। यह ब्रह्म के अस्तित्व को कायम करने का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। यह शरीर भगवान का आश्रय है, उनके लिए सुखद है। प्रकृति के सानिध्य में रहनेवाला उनका ही एक स्वरूप है। मनुष्य के बिना, भक्त के बिना भगवान कैसे रहेंगे इसकी चिंता कवि को है और वह इन पंक्तियों के माध्यम से इसे अभिव्यक्त किया है।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में ईश्वर सत्ता की महत्ता को भक्त की भक्ति में जो समर्पण की जो भावना होती है उसी पर आश्रित है। मनुष्य के नश्वर जीवन और भक्ति की गौरव गाथा यहाँ गायी गई है। भगवान और भक्त में अन्योन्याश्रय संबंध है।
(ङ) (i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(i) इसमें तद्भव के साथ तत्सम और अरबी शब्दों का एक अनूठा प्रयोग है।
(iii)यहाँ भावबोध तथा संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से काफी प्रभावित किया गया है।
(iv)कविता की शैली गीतात्मक है और भाव बोध में रहस्योन्मुखता व्याप्त है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
I. सही विकल्प चुनें
प्रश्न 1.
रेनर मारिया रिल्के किस देश के कवि हैं ?
(क) इंगलैंड
(ख) जर्मनी
(ग) चीन
(घ) जापान
उत्तर-
(ख) जर्मनी
प्रश्न 2.
‘मेरे बिना तुम प्रभु’ किस कवि की रचना है ?
(क) जीवनानंद दास
(ख) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(ग) रेनर मारिया रिल्के
(घ) वीरेन डंगवाल
उत्तर-
(ग) रेनर मारिया रिल्के
प्रश्न 3.
कवि रिल्के के अनुसार मनुष्य के बिना किसका अस्तित्व न रहेगा?
(क) ईश्वर
(ख) पर्वत
(ग) प्रकृति
(घ) हवा
उत्तर-
(क) ईश्वर
प्रश्न 4.
कवि रिल्के के अनुसार ईश्वर को सर्वशक्तिमान के रूप में किसने प्रतिष्ठित किया है?
(क) ईश्वर ने
(ख) सृष्टि ने
(ग) मनुष्य ने
(घ) किसी ने नहीं
उत्तर-
(ग) मनुष्य ने
प्रश्न 5.
रिल्के की काव्य शैली कैसी है?
(क) गीतात्मक
(ख) प्रतीकात्मक
(ग) भावात्मक
(घ) कथात्मक
उत्तर
(क) गीतात्मक
प्रश्न 6.
रिल्के ने काव्य के अतिरिक्त और किन-किन विधाओं में रचना की है ?
(क) आलोचना और व्यंग्य
(ख) कहानी और उपन्यास
(ग) निबंध और नाटक
(घ) जीवनी और यात्रा वर्णन
उत्तर-
(ख) कहानी और उपन्यास
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1.
रेनर मारिया रिल्के ……. के निवासी थे।
उत्तर-
जर्मनी
प्रश्न 2.
रिल्के ने प्राग और …………. विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की।
उत्तर-
म्युनिख .
प्रश्न 3.
रिल्के ने ………. साहित्य को बहुत प्रभावित किया।
उत्तर-
यूरोपीय
प्रश्न 4.
मैं तुम्हारा वेश हूँ तुम्हारी ………….. हैं।
उत्तर-
वृत्ति
प्रश्न 5.
……… तुम्हारे चरणों में छाले पड़ जाएंगे।
उत्तर-
मेरे बिना
प्रश्न 6.
……. रिल्के का कहानी-संकलन है।
उत्तर-
टेल्स ऑफ आलमाइटी
प्रश्न 7.
……….. में रिल्के की मृत्यु हो गई।
उत्तर-
29 दिसम्बर, 1926 ई.
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
रेनर मारिया रिल्के कहाँ के निवासी थे ?
उत्तर-
रेनर मारिया रिल्के जर्मनी के रहनेवाले थे।
प्रश्न 2.
रिल्के ने किन क्षेत्रों में यूरोपीय साहित्य को प्रभावित किया?
उत्तर-
रिल्के की प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं-‘लाइफ एंड साँग्स’, ‘एडवेन्ट’ और ‘लॉरेंस सेक्रेफाइस’।
प्रश्न 3.
रिल्के के उपन्यास का क्या नाम है ?
उत्तर-
रिल्के के उपन्यास का नाम है-“द नोटबुक ऑफ माल्टै लॉरिड्स ब्रिजे”।
प्रश्न 4.
रिल्के कैसे कवि थे ?
उत्तर-
रिल्के मर्मज्ञ ईसाई कवियों जैसी पवित्र आस्था के कवि थे।
प्रश्न 5.
रिल्के की कविताएँ कैसी हैं ?
उत्तर-
रिल्के की कविताओं में रहस्यवाद के आधुनिक स्वर की झलक मिलती है।
प्रश्न 6.
‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का वर्ण्य-विषय क्या है ?
उत्तर-
मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का वर्ण्य-विषय है-विराट सत्य और मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर है।
व्याख्या खण्ड
प्रश्न 1.
जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे?
जब मैं-तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊँगा या स्वादहीन हो जाऊँगा ?
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग ईश्वर और कवि के बीच या ईश्वर और मनुष्य के बीच के संवाद से संबंधित है। कवि कहता है कि हे प्रभु ! जब मैं ही नहीं रहूँगा तब तुम क्या करोंगे?
मनुष्य के बिना ईश्वर का महत्त्व शून्य हो जाएगा। मनुष्य कहता है कि मैं जलपात्र हूँ और हे प्रभु ! तुम जल हो। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर जलपात्र नहीं रहे तो जल का अस्तित्व और स्थान कहाँ रहेगा। जल बिना जलपात्र का भी महत्त्व शून्य रहेगा। यहाँ भी दोनों एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं। मनुष्य ने स्वयं को मदिरा के रूप में व्यक्त किया है। अगर मदिरा सूख जाएगी या स्वादहीन हो जाएगा तब क्या होगा। कौन तुम्हारा नाम लेगा? उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में कवि ने मनुष्य और ईश्वर के बीच के अटूट संबंधों की व्याख्या करते हुए दोनों के अस्तित्व और महत्त्व को सिद्ध किया है। दोनों एक-दूसरे के लिए बने हैं। दोनों का संबंध अटूट और अनोखा है।
प्रश्न 2.
मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग ईश्वर और मनुष्य के बीच के संबंध से जुड़ा हुआ है। कवि कहता है कि हे प्रभु ! मैं तुम्हारा वेश हूँ। मैं तुम्हारी वृत्ति हूँ। कहने का अर्थ यह है कि ईश्वर का प्रतिरूप ही मनुष्य है और उसकी कृति का प्रतिरूप भी मनुष्य ही है।
अगर मनुष्य का अस्तित्व मिट गया तो ईश्वर का अर्थ भी नहीं रहेगा। बिना नर के नारायण का महत्त्व कहाँ ? इस प्रकार इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि ने मनुष्य और ईश्वर के बीच के अटूट और प्रगाढ़ संबंधों को रेखांकित किया है।
प्रश्न 3.
मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएंगे, वे भटकेंगे लहुलुहान!
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग ईश्वर और मनुष्य के बीच के संवाद से जुड़ा है।
कवि कहता है कि मनुष्य के बिना ईश्वर गृहविहीन हो जाएगा। उसे निर्वासित जीवन बिताना पड़ेगा। कोई उसका स्वागत करनेवाला नहीं रहेगा।
मनुष्य ईश्वर के चरणों की पादुका है। बिना पादुका के ईश्वर के पैरों में छाले पड़ जाएंगे। ईश्वर के पैर लहुलुहान होकर यत्र-तत्र भटकेंगे।
इन काव्य पंक्तियों में मनुष्य का ईश्वर के प्रति यथोचित सम्मान का भाव प्रदर्शित किया गया है। ईश्वर के प्रति मनुष्य की आस्था युगों-युगों से जुड़ी हुई है। मनुष्य ने ही ईश्वर को मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों में स्थापित किया है। उनकी पूजा-अभ्यर्थना एवं वंदना की है। उसने उनके पैरों को धोया है। चारों शीश को झुकाया है। अतः, बिना मनुष्य के ईश्वर का महत्त्व मिट जाएगा। कोई भी नाम लेनेवाला या पूजा-वंदना करनेवाला नहीं रहेगा। यहाँ मनुष्य और ईश्वर के बीच के अकाट्य संबंधों को दर्शाया गया है।
प्रश्न 4.
तुम्हारा शानदार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपादृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा मनुष्य और ईश्वर के बीच प्रगाढ़ संबंध को रेखांकित किया गया है।
कवि कहता है कि तुम्हारा नामरूपी शानदार लबादा सभी मनुष्यों ने धारण किया है वह गिर जाएगा। कहने का भाव यह है कि नाम लेनेवाला ही जब नहीं रहेगा तब तुम्हारा नाम स्वत: लुप्त हो जाएगा।
कवि कहता है कि ईश्वर की कृपादृष्टि सदैव मनुष्य को मिली है। उसके कपालों की नर्म : शय्या यानी कोमल मस्तिष्क में ईश्वर का नाम अंकित था। वह मस्तिष्क के भीतर विश्राम की अवस्था में विराजमान था। जब तुम्हारी कृपादृष्टि निराशा के कुहरे में ढंक जाएगी तब वह सुख के लिए व्यग्र हो उठेगी वह सुख अलभ्य हो जायेगा। कहने का मूल आशय यह है कि ईश्वर भक्ति में मनुष्य सृष्टिकाल से एकनिष्ठ भाव से लगा हुआ है। लेकिन यह भावना जब संशय के घेरे में फिर जायेगी तो क्या होगा? न ईश्वर रहेगा न मानव रहेगा। दोनों का अस्तित्व और महत्व समाप्त हो जायेगा।
कवि ने इन पंक्तियों में ईश्वर के नाम, उसकी कृपा दृष्टि और सुख-शांति के बीच जीने की ललक, चेष्टा को सूक्ष्मता से रेखांकित किया है।
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में मनुष्य और ईश्वर के बीच सूक्ष्म संबंधों को व्याख्यायित किया गया है। आत्मा और परमात्मा के बीच के सूक्ष्म तत्वों की अगर ध्यान आकृष्ट किया जाता है।
प्रश्न 5.
दूर की चट्टानों की ठण्डी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध कवि और प्रकृति के बीच के.सूक्ष्म संबंधों से है। कवि कहता है कि दूर-दूर तक चट्टानें जो पड़ी हुयी हैं वह गोद भी शीतलता से युक्त है। कहने का भाव यह है कि पत्थर भी पिघलकर तरलता में बदल सकते हैं और उनके भीतर संवेदना को जगाया जा सकता है। पाषाण में भी हृदय होता है। उनमें भी ऊष्मा और ठण्डापन विद्यमान रहता है।
सूर्यास्त के समय जो ललायी रहती उसके घुलनशील रूप का दर्शन मन मोह लेता है और एक अलग ही सुख प्रदान करता है। सूर्यास्त, सूर्य की ललिमायुक्त किरणों, पत्थरों में विद्यमान तरलता ईश्वर के रूप का दर्शन कराते हैं। इन चीजों में प्रकृति की मनोहर छवि का दर्शन होता है। यहाँ भी द्विअर्थी रूप दिखाई पड़ता है। अवसान के समय मनुष्य और ईश्वर दोनों का मिलन बिंदु ज्ञानवर्द्धक और यथार्थ का बोध कराता है। ठीक उसी प्रकार सूर्यास्त के समय प्रकाश की किरणें जो सुख देती हैं, वे चट्टानों में भी तरलता पैदा कर देती हैं। इन पंक्तियों में प्राकृतिक दृश्यों के सहारे मानवीय संवेदना, सुख, आनंद प्रकृति के साथ के संबंधों को उकेरा गया है।
प्रश्न 6.
प्रभु, प्रभु मुझे
आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या
करोगे?
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग प्रकृति और मनुष्य के बीच के अनन्य संघर्षों से है।
कवि कहता है कि हे प्रभु मेरे मन में संशय उठता है कि जब धरती पर इन्सान नहीं रहेगा तो तुम्हारी आवश्यकता रह जायेगी क्या? तुम्हारा महत्व घट जायेगा। मुझे तुम्हारे अस्तित्व पर संकट आ जाने के खतरे से घड़बड़ाहट हो रही है।
उपर्युक्त पाठ पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। जब मानव रहेगा तभी ईश्वर का भी नाम रहेगा। बिना सृष्टि के सृजनकर्ता का क्या महत्वा सृष्टि और सृजनकर्ता दोनों का रहना आवश्यक है, आत्मा को परमात्मा से अलग नहीं किया जा सकता है।
उक्त पंक्तियों में नर की महत्ता के साथ नारायण की महत्ता का भी उल्लेख किया गया है। धरती जबतक रहेगी तबतक नर रहेगा और नर रहेगा तभी नारायण भी रहेंगे।
मेरे बिना तुम प्रभु कवि परिचय
रेनर मारिया रिल्के का जन्म 4 दिसंबर 1875 ई० में प्राग, ऑस्ट्रिया (अब जर्मनी) में हुआ था । इनके पिता का नाम जोसेफ रिल्के और माता का नाम सोफिया था । इनकी शिक्षा-दीक्षा अनेक बाधाओं को पार करते हुए हुई । इन्होंने प्राग और म्यूनिख विश्वविद्यालयों में शिक्षा पायी । कला और साहित्य में आरंभ से ही इनकी गहरी अभिरुचि थी। संगीत, सिनेमा आदि अनेक कलाओं में इनकी गहरी पैठ थी । कविता के अतिरिक्त इन्होंने गद्य भी पर्याप्त लिखा । इनका एक उपन्यास ‘द नोटबुक ऑफ माल्टे लॉरिड्स ब्रिज’ और ‘टेल्स ऑफ आलमाइटी’ कहानी संग्रह प्रसिद्ध हैं। इनके प्रमुख कविता संकलन हैं – ‘लाइफ एण्ड सोंग्स’, ‘लॉरेस सेक्रिफाइस’, ‘एडवेन्ट’ आदि । इनका निधन 29 दिसंबर 1926 ई० में हुआ।
रिल्के का रचनात्मक अवदान बहुत बड़ा है । इन्होंने आधुनिक यूरोप के साहित्य को अपने गहरे भावबोध तथा संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से काफी प्रभावित किया। इनकी काव्य शैली गीतात्मक है और भावबोध में रहस्योन्मुखता है।
प्रसिद्ध हिंदी कविधर्मवीर भारती द्वारा भाषांतरित इस महान जन कवि की कविता यहाँ प्रस्तुत है । यह कविता विश्व कविता के भाषांतरित संकलन ‘देशांतर’ से ली गयी है । रिल्के का आधुनिक विश्व कविता पर प्रभाव बताया जाता है । रिल्के मर्मी इसाई कवियों जैसी पवित्र आस्था के आस्तिक कवि थे, जिनकी कविता में रहस्यवाद के आधुनिक स्वर सुने जाते हैं। प्रस्तुत कविता इस तथ्य की एक दुर्लभ साखी पेश करती है। बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय हैं। उनकी भगवत्ता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है । व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं । प्रेम के धरातल पर अत्यंत पावनतापूर्वक यह कविता इस सत्य को अभिव्यक्त करती है।
मेरे बिना तुम प्रभु
पाठ का अर्थ
पाश्चात्य कवियों में रेनर मारिया रिल्के’ का नाम आसानी से लिया जा सकता है। इन्होंने आधुनिक यूरोप के साहित्य को अपने गहरे भावबोध तथा संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से काफी प्रभावित किया है। इनकी काव्यशैली गीतात्मक है और भावबोध में रहस्योन्मुखता है।
यह कविता विश्व कविता के भाषांतरित संकलन ‘देशान्तर’ से ली गयी है। रिल्के का आधुनिक विश्व कविता पर प्रभाव बताया जाता है। भक्त और भगवान दोनों एक दूसरे का पूरक हैं। भक्त के बिना भगवान भी एकाकी और निरूपाय हैं। कवि कहना चाहता है कि भगवान की भगवता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है। भक्त ही ईश्वर की वृत्ति और वेश है। भक्त ही ईश्वर का चरण-पादुका है। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर है। प्रेम के धरातल पर अत्यन्तं पावनता पूर्वक यह कविता इस सत्य को
अभिव्यक्त करती है।
शब्दार्थ
जलपात्र : पानी रखने का बर्तन
वृत्ति : प्रवृत्ति, कर्म-स्वभाव
निर्वासित : बेघर
पढुका : चप्पल, जूते, खड़ाऊँ आदि
लबादा : चोगा
कपाल : गाल
शय्या : बिस्तर