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Binayak Bhaiya

Chapter 1 बातचीत

बातचीत

बातचीत अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बातचीत’ शीर्षक निबन्ध के निबंधकार हैं :
उत्तर-
बालकृष्ण भट्ट।

प्रश्न 2.
बालकृष्ण भट्ट किस युग के रचनाकार हैं?
उत्तर-
भारतेन्दु युग।

प्रश्न 3.
‘सौ अज्ञान एक सुजान’ उपन्यास के लेखक कौन हैं :
उत्तर-
बालकृष्ण भट्ट।

प्रश्न 4.
आर्ट ऑफ कनवरसेशन कहाँ के लोगों में सर्वाधिक प्रचलित है?
उत्तर-
यूरोप के।

प्रश्न 5.
बालकृष्ण भट्ट ने किस पत्रिका का संपादन किया था?
उत्तर-
प्रदीप।

प्रश्न 6.
बातचीत के माध्यम से बालकृष्ण भट्ट क्या बतलाना चाहते हैं?
उत्तर-
बातचीत की शैली।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से बालकृष्ण भट्ट का निवास स्थान कौन-सा है?
उत्तर-
इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश।

प्रश्न 8.
बालकृष्ण भट्ट द्वारा कौन-सा उपन्यास रचित है?
उत्तर-
अपने-अपने अजनबी।

बातचीत वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
बालकृष्ण भट्ट के पिता कौन थे?
(क) बेनी प्रसाद भट्ट
(ख) रामप्रसाद भट्ट
(ग) शिवप्रसाद भट्ट
(घ) गौरीशंकर भट्ट
उत्तर-
(क)

प्रश्न 2.
बालकृष्ण भट्ट का जन्म कब हुआ था?।
(क) 23 जून, 1844
(ख) 12 अप्रैल, 1805
(ग) 21 मई, 1812
(घ) 15 जनवरी, 1806
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
बालकृष्ण भट्ट की मृत्यु कब हुई थी?
(क) 20 जुलाई, 1914
(ख) 10 जून, 1905
(ग) 15 मार्च, 1909.
(घ) 20 सितम्बर, 1917
उत्तर-
(क)

प्रश्न 4.
बालकृष्ण भट्ट की माँ का क्या नाम था?
(क) सावित्री देवी
(ख) पार्वती देवी
(ग) राधिका देवी
(घ) श्यामा देवी
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 5.
बालकृष्ण भट्ट जी ने किस शब्द कोष का संपादन किया?
(क) अंग्रेजी शब्दकोश
(ख) उर्दू शब्दकोश
(ग) संस्कृत शब्दकोश
(घ) हिन्दी शब्दकोश
उत्तर-
(घ)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
मनुष्यों में …………. न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूंगी सृष्टि का क्या हाल होता।
उत्तर-
वाशक्ति

प्रश्न 2.
घरेलू बातचीत …………. का ढंग है।
उत्तर-
मन रमाने

प्रश्न 3.
सच है, जबतक मनुष्य बोलता नहीं तबतक उसका ……… प्रकट नहीं होता।
उत्तर-
गुण-दोष

प्रश्न 4.
बेन जॉन्सन के अनुसार बोलने से ही मनुष्य के रूप का ……… होता है।
उत्तर-
साक्षात्कार

प्रश्न 5.
…….. यहाँ तक बढ़ा है कि स्पीच और लेख दोनों इसे नहीं पाते।
उत्तर-
आर्ट ऑफ कनवरसेशन

बातचीत पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अगर हममें वाशक्ति न होती तो क्या होता?
उत्तर-
अगर हममें वाशक्ति न होती तो यह समस्त सृष्टि गूंगी प्रतीत होती। सभी लोग चुपचाप बैठे रहते और हम जो बोलकर एक-दूसरे के सुख-दुख का अनुभव करते हैं वाशक्ति न होने के कारण एक-दूसरे से कह-सुन. भी नहीं पाते और न ही अनुभव कर पाते।

प्रश्न 2.
बातचीत के संबंध में वेन जॉनसन और एडीसन के क्या विचार हैं?
उत्तर-
बातचीत के संबंध में वेन जॉनसन का मत है कि बोलने से ही मनुष्य के सही रूप का साक्षात्कार होता है। यह बहुत ही उचित जान पड़ता है।।

एडीसन का मत है कि असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है जिसका तात्पर्य हुआ जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल एक-दूसरे के सामने खोलते हैं। जब तीन हुए तब वह दो बात कोसों दूर गई। कहा भी है कि छह कानों में पड़ी बात खुल जाती है। दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते ही या तो वे दोनों अपनी बातचीत से निरस्त हो बैठेंगे या उसे निपट मूर्ख अज्ञानी, समझा बना लेंगे। जैसे गरम दूध और ठंडे पानी के दो बर्तन पास-पास असर होगा ३ आर्ट ऑफ कनवरशन बातचीत करने की एकमा काव्यकला प्रवीण मिलता गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट सेटा के रखे जाएँ तो एक का असर दूसरे में पहुँच जाता है अर्थात् दूध ठंडा हो जाता है और पानी गरम। वैसे ही दो आदमी आपस पास बैठे हों तो एक का गुप्त असर दूसरे पर पहुँच जाता है। चाहे एक दूसरे को देखें भी नहीं। तब बोलने को कौन कहे एक के शरीर की विद्युत दूसरे में प्रवेश करने लगती है। जब पास बैठने का इतना असर होता है तब बातचीत में कितना अधिक असर होगा इसे कौन नहीं स्वीकार करेगा।

प्रश्न 3.
‘आर्ट ऑफ कनवरशेसन’ क्या है?
उत्तर-
‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ बातचीत करने की एक कला (प्रविधि) है जो योरप के लोगों में ज्यादा प्रचलित है। इस बातचीत की प्रविधि की पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वमंडली में है। ऐसी चतुराई के साथ इसमें प्रसंग छोड़े जाते हैं कि जिन्हें सुन कान को अत्यन्त सुख मिलता है। साथ ही इसका अन्य नाम शुद्ध गोष्ठी है। शुद्ध गोष्ठी की बातचीत को यह तारीफ है कि बात करनेवालों की जानकारी अथवा पंडिताई का अभिमान या कपट कहीं एक बात में ही प्रकट नहीं होता वरन् कर्ण रसाभास पैदा करने वाले शब्दों को बरकते हुए चतुर सयाने अपने बातचीत को सरस रखते हैं। दयनीय स्थिति यह है कि हमारे यहाँ के पंडित आधुनिक शुष्क बातचीत में जिसे शास्त्रार्थ कहते हैं, वैसा रस नहीं घोल सकते।

इस प्रकार आर्ट ऑफ कनवरशेसन मनुष्य के द्वारा आपस में बातचीत करने की उत्तम कला है जिसके द्वारा मनुष्य बातचीत को हमेशा आनंदमय बनाये रखता है।

प्रश्न 4.
मनुष्य की बातचीत का उत्तम तरीका क्या हो सकता है? इसके द्वारा वह कैसे अपने लिए सर्वथा नवीन संसार की रचना कर सकता है?
उत्तर-
मनुष्य में बातचीत का सबसे उत्तम तरीका उसका आत्मवार्तालाप है। मनुष्य अपने अन्दर ऐसी शक्ति विकसित करे जिसके कारण वह अपने आप से बात कर लिया करे। आत्मवार्तालाप से तात्पर्य क्रोध पर नियंत्रण है जिसके कारण अन्य किसी व्यक्ति को कष्ट न पहुँचे। क्योंकि हमारी भीतरी मनोवृति प्रशिक्षण नए-नए रंग दिखाया करती है। वह हमेशा बदलती रहती है। लेखक बालकृष्ण भट्टजी इस मन को प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा आइना के रूप में देखते हैं जिसमें जैसा चाहो वैसी सूरत देख लेना कोई असंभव बात नहीं। अतः मनुष्य को चाहिए कि मन के चित्त को एकाग्र कर मनोवृत्ति स्थिर कर अपने आप से बातचीत करना सीखें। इससे आत्मचेतना का विकास होगा। उसी वाणी पर नियंत्रण हो जायेगा जिसके कारण दुनिया से किसी से न बैर रहेगा और बिना प्रयास के हम बड़े-बड़े अजेय शत्रु पर भी विजय पा सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो हम सर्वथा एक नवीन संसार की रचना कर सकते हैं। इससे हमारी वाशक्ति का दमन भी नहीं होगा। अत: व्यक्ति को चाहिए कि अपनी जिह्वा को काबू में रखकर मधुरता से भरी वाणी बोले। जिससे न किसी से कटुता रहेगी न बैर। इससे दुनिया खूबसूरत हो जायेगी। मनुष्य के बातचीत करने का यही सबसे उत्तम तरीका है।

प्रश्न 5.
व्याख्या करें :
(क) हमारी भीतरी मनोवृत्ति प्रतिक्षण नए-नए रंग दिखाया करती है। वह प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आइना है, जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख लेना कोई दुर्घट बात नहीं है।
(ख) सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं होता।
उत्तर-
व्याख्या-
(क) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग-2 के महान् विद्वान लेखक बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित ‘बातचीत’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। इन पंक्तियों में लेखक ने लिखा है कि जब मनुष्य समाज में रहता है तो समाज से ही भाषा सीखता है। भाषा उसके विचार अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाती है। परन्तु उसके अन्दर की मनोवृत्ति स्थिर नहीं रहती है। कहा भी गया है कि चित्त बड़ा चंचल होता है। इसकी चंचलता के कारण एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को दोस्त और दुश्मन मान लेता है। वह कभी क्रोध कर बैठता है, कभी-कभी मीठी बातें करता है। इस द्वन्द्व स्थिति में मनुष्य की असली चरित्र का पता नहीं चलता। मनुष्य के मन की स्थिति गिरगिट के रंग बदलने जैसी होती है। इसी स्थिति के कारण लेखक इस मन के प्रपंचों को जड़ मानता है। वह कहता है कि यह आइना के समान है। इस संसर में छल-प्रपंच झूठ फरेब सब होते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण मन की चंचलता ही है। विद्वान लेखक इस दुर्गुण को दूर करने के लिए सलाह भी देता है कि इससे बचने के लिए अपनी जिह्वा (मन) पर नियंत्रण रखना होगा। अपने चित्त को एकाग्र करना होगा। माना कि हमारी जिह्वा स्वच्छन्द चला करती है परन्तु उस पर यदि हमारा नियंत्रण हो गया तो बड़े-बड़े क्रोधादिक अजेय शत्रु को बिना प्रयास अपने वश में कर लेंगे।

अतः हमारी मनोवृत्ति पर नियंत्रण करना होगा जिससे हमें न किसी से वैर-झगड़ा शत्रुता होगी और हम अपने नवीन संसार की रचना कर सकेंगे तथा साथ ही बातचीत के माध्यम से जीवन
का रस ले सकेंगे।

(ख) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के बालकृष्ण भट्ट रचित निबन्ध ‘बातचीत’ से ली गयी हैं लेखक इस निबन्ध के माध्यम से यह बताना चाहता है कि बातचीत ही एक विशेष तरीका होता है जिसके कारण मनुष्य आपस में प्रेम से बातें कर उसका आनन्द उठाते हैं। परन्तु मनुष्य जब वाचाल हो जाता है अथवा बातचीत के दौरान अपने आप पर काबू नहीं रख पाता है तो वह ‘दोष’ है, परन्तु जब वह बड़ी सजींदगी से सलीके से बातचीत करता है तो वह गुण है। मनुष्य के मूक रहने के कारण उसको चरित्र का कुछ पता नहीं चलता है परन्तु वह जैसे ही कुछ बोलता है तो उसकी वाणी के माध्यम से गुण-दोष प्रकट होने लगते हैं। जब दो आदमी साथ बातचीत करते हैं तो दोनों अपने दिल एक-दूसरे के सामने खोलते हैं। इस खुलेपन में किसी की शिकायत, किसी की अच्छाई किसी की बुराई होती है और इससे व्यक्ति का गुण-दोष प्रकट हो जाता है। वेन जॉनसन इस संदर्भ में कहते हैं कि बोलने से मनुष्य का साक्षात्कार होता है, उसकी पहचान सामने आती है। यहाँ आदमी की अपनी जिन्दगी मजेदार बनाने के लिए खाने-पीने चलने-फिरने आदि की जरूरत होती है। वहाँ बातचीत की अत्यन्त आवश्यकता है जहाँ कुछ मवाद (गंदगी) या धुआँ जमा रहता है। यह बातचीत के जरिए भाप बनकर बाहर निकल पड़ता है। कहने का आशय यह है कि मनुष्य के मन के अन्दर बहुत भी परतें जमी रहती हैं जिनमें कुछ अच्छी और कुछ बुरी होती हैं और यह बातचीत के दौरान हमारी जिह्वा (विचार) से प्रकट हो जाता है। अत: बोलने से ही मनुष्य के गुण-दोष की पहचान होती है।

प्रश्न 6.
इस निबन्ध की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर-
इस निबंध (बातचीत) के माध्यम से विद्वान निबंधकार ने बातचीत करने के लिए ईश्वर द्वारा दी गई वाक्शक्ति को अनमोल बताया है और कहा है कि मनुष्य इसी शक्ति के कारण पशुओं से अलग है, बढ़कर है। बातचीत के विभिन्न तरीके जैसे आर्ट ऑफ कनवरसेशन, हृदय गोष्ठी आदि के बारे में बताया गया है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से उत्तम तरीके से बातचीत करता हुआ उनकस आनन्द ले सकता है। इस निबंध में दो विदेशी निबन्धकारों का एडीसन एवं वेन जॉनसन मत दिया गया है जिसमें एडीसन ने यह कहा है कि जब तक मनुष्य बोलना नहीं बोलता उसके गुण-दोष नहीं प्रकट होते। वेन जॉनसन का मत है कि बोलने से ही मनुष्य के सही रूप का साक्षात्कार होता है। निबंध में यह भी बताया गया है कि मनुष्य को अपने हृदयं (मन) पर काबू रखकर बोलना या बातचीत करनी चाहिए। यदि ऐसा हो तो वह सर्वथा नवीन संसार की रचना कर सकता है। उसे कोई दु:ख विषाद नहीं झेलना पड़ेगा। बातचीत मनुष्य को अपनी जिन्दगी मजेदार बनाने का एक जरिया भी है। लोग यदि बातचीत के दौरान चुकीली बात कह दें तो लोग हँसने लगते हैं जिससे प्रच्छन्न सुख भाव का बोध होता है। बातचीत मन बहलाव का माध्यम तो है ही, उत्तम बातचीत मनुष्य के व्यक्तित्व के विकसित करने का एक माध्यम भी है जिसके कारण व्यक्ति लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध हो जाता है।

बातचीत भाषा की बात

प्रश्न 1.
‘राम-रमौवल’ का क्या अर्थ है? इसका वाक्य में प्रयोग करें।
उत्तर-
राम-रमौवल-चार से अधिक व्यक्तियों की बातचीत राम-रमौवल कहलाती है। ‘राम-श्याम मोहन और सोहन रेलगाड़ी में राम-रमौवल कर रहे थे।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए वाक्यों में सर्वनाम छाँटें और बताएं कि वे सर्वनाम के किस भेद के अन्तर्गत आते हैं?
(क) कोई चुटीली बात आ गई हँस पड़े।
उत्तर-
कोई-अनिश्चयवाचक सर्वनाम

(ख) इसे कौन न स्वीकार करेगा।
उत्तर-
कौन-प्रश्नवाचक सर्वनाम

(ग) इसकी पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वमंडली में है।
उत्तर-
इसकी-निश्चयवाचक

(घ) वह प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आईना है।
उत्तर-
वह-निश्चवाचक

(ङ) हम दो आदमी प्रेमपूर्वक संलाप कर रहे हैं।
उत्तर-
हम-पुरुषवाचक सर्वनाम।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्द संज्ञा के किन भेदों के अन्तर्गत आते हैं धुआँ, आदमी, त्रिकोण, कान, शेक्सपीयर, देश मीटिंग, पत्र, संसार, मुर्गा, मन्दिर।
उत्तर-

  • धुआँ – भाववाचक
  • आदमी – जातिवाचक
  • त्रिकोण – जातिवाचक
  • कान – जातिवाचक
  • शेक्सपीयर – व्यक्तिवाचक
  • देश – जातिवाचक
  • मीटिंग – समूहवाचक।
  • पत्र – भाववाचक संसार
  • संसार – जातिवाचक
  • मुर्गा – जातिवाचक
  • मन्दिर – जातिवाचक

प्रश्न 4.
वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय करें शक्ति, उद्देश्य, बात, लत, नग, अनुभव, प्रकाश, रंग, विवाह, दाँत।
उत्तर-
शक्ति (स्त्री.)-ईश्वर की शक्ति अपरम्पार है।
उद्देश्य (पु.)-आपका उद्देश्य महान होना चाहिए।
बात (स्त्री.)-हमें संजीदगी से बात करनी चाहिए।
लत (पु.)-उसे शराब की लत पड़ गयी।
नग (पु.)-राम की अंगूठी में नग चमकता है।
अनुभव (स्त्री.)-ईश्वर का अनुभव करो।
प्रकाश (पु.)-सूर्य का प्रकाश बड़ा तीक्ष्ण था।
रंग (पु.)-उसका रंग काला है।।
विवाह (पु.)-राम-सीता का विवाह हुआ।
दाँत (पु.)-उसका दाँत टूट गया।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों से विशेषण चुनें।
(क) हम दो आदमी प्रेमपूर्वक संलाप कर रहे हैं।
उत्तर-
हम दो-संख्यावाचक विशेषण

(ख) इसकी पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वानमंडली में है।
उत्तर-
इसकी-सार्वजनिक विशेषण

(ग) सुस्त और बोदा हुआ तो दबी बिल्ली का सा स्कूल भर को अपना गुरु ही मानेगा।
उत्तर-
सुस्त, बोदा, दबी-गुणवाचक विशेषण।

बातचीत लेखक परिचय बालकृष्ण भट्ट (1844-1914)

जीवन-परिचय :
हिन्दी के प्रारंभिक युग के प्रमुख पत्रकार, निबन्धकार तथा हिन्दी के आधुनिक आलोचना के प्रवर्तकों में अग्रगण्य बालकृष्ण भट्ट का जन्म 23 जून, सन 1844 ई. के दिन हुआ इनके पिता का नाम बेनी प्रसाद भट्ट था जो एक व्यापारी थे तथा माता का नाम पार्वती देवी था जो एक सुसंकृत महिला थी। इन्होंने ही बालकृष्ण भट्ट के मन में अध्ययन की रुचि जगाई। भट्ट जी का निवास स्थान इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश था। इन्होंने प्रारंभ में संस्कृत का अध्ययन किया तथा सन् 1867 में प्रयाग के मिशन स्कूल में एंट्रेंस की परीक्षा दी। ये सन् 1869 से 1875 तक प्रयाग के मिशन स्कूल में अध्यापन में कार्यरत रहे।

सन् 1885 में प्रयाग के सी.ए, वी. स्कूल में संस्कृत का अध्यापन किया। सन् 1888 में प्रयाग की कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज में अध्यापक नियुक्त हुए, किन्तु अपने उग्र स्वभाव के कारण इन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी और फिर ये लेखन कार्य में लग गए। पिता के निधनोपरांत इन्हें विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। इन्होंने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रेरणा से सन् 1877 में ‘हिन्दी प्रदीप’ नामक मासिक पत्रिका निकालनी प्रारंभ की और इसे 33 वर्षों तक निकालते रहे। इन्होंने घोर आर्थिक संकटों से जूझते हुए हिम्मत से काम लिया और साहित्य के बालकृष्ण भट्ट का निधन 20 जुलाई, सन् 1914 के दिन हुआ, जो कि हिन्दी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।

रचनाएँ :
बालकृष्ण भट्ट की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

उपन्यास-
रहस्य कथा, नूतन ब्रह्मचारी, गुप्त वैरी, सौ अजान एक सुजान, रसातल यात्रा, उचित दक्षिणा, हमारी घड़ी, सद्भाव का अभाव। .

नाटक-
पद्मावती, किरातार्जुनीय, वेणी संहार, शिशुपाल वध, नल दमयंती या दमयंती स्वयंवर, शिक्षादान, चन्द्रसेन, सीता वनवास, पतित पंचम, मेघनाद वध, वृहन्नला, इंग्लैंडेश्वरी और भारत जननी, कट्टर सूम की एक नकल, भारतवर्ष और कलि, दो दूरदेशी, एक रोगी और एक वैद्य, बाल विवाह, रेल का विकट खेल आदि।

प्रहसन-
जैसा काम वैसा परिणाम, नई रोशनी का विषय, आचार विडंबन आदि। निबंध-लगभग 1000 निबन्ध जो कि हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर है। ‘भट्ट निबन्ध माला’ नाम से दो खंडों में प्रकाशित एक संग्रह।

इसके अतिरिक्त सन् 1881 में की गई वेदों की युक्तिपूर्ण समीक्षा तथा सन् 1886 में लाला श्रीनिवास दास के ‘संयोगिता स्वयंवर’ की आलोचना।

साहित्यिक विशेषताएँ :
बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु युग के प्रमुख सहित्यकारों में से एक है। इन्होंने आधुनिक हिन्दी साहित्य को अपने जनधर्मी व्यक्तित्व और लेखन से एक नवीन धरातल, दिशा तथा रंग-रूप प्रदान किया। ये अपने युग के सर्वाधिक मुखर, तेजस्वी तथा सक्रिय गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट सौहित्यकार रहे। इन्होंने बाल विवाह, स्त्री शिक्षा, महिला स्वातंत्र्य, कृषकों की पीड़ा, अंग्रेजी शिक्षा, देश प्रेम अंधविश्वास आदि सामाजिक विषयों पर खुलकर साहित्य सृजन किया।

बातचीत पाठ के सारांश

प्रस्तुत कहानी ‘बातचीत’ के लेखक महान् पत्रकार बालकृष्ण भट्ट हैं : बालकृष्ण भट्ट आधुनिक हिन्दी गद्य के आदि निर्माताओं और उन्नायक रचनाकारों में एक हैं। बालकृष्ण भट्ट जी बातचीत निबन्ध के माध्यम से मनुष्य की ईश्वर द्वारा दी गई अनमोल वस्तु वाकशक्ति का सही इस्तेमाल करने को बताते हैं। महान् लेखक बताते हैं कि यदि मनुष्य में वाक्शक्ति न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूंगी सृष्टि का क्या हाल होता। सबलोग मानों लुंज-पुंज अवस्था में एक कोने में बैठा दिए गए होते। लेखक बातचीत के विभिन्न तरीके भी बताते हैं। यथा घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग है। वे बताते हैं कि जहाँ आदमी की अपनी जिन्दगी मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने आदि की जरूरत है, उसी प्रकार बातचीत की भी अत्यन्त आपयकता है। हमारे मन में जो कुछ मवाद (गंदगी) या धुआँ जमा रहता है वह बातचीत के जरिए भाप बनकर हमारे मन में बाहर निकल पड़ता है।

इससे हमारा चित्त हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में मग्न हो जाता है। हमारे जीवन में बातचीत का भी एक खास तरह का मजा होता है। यही नहीं, भट्टजी बतलाते हैं कि जब तक मनुष्य बोलता नहीं तबतक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं होता। महान् विद्वान वेन जानसन का कहना है कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का सही साक्षात्कार हो पाता है। वे कहते हैं कि चार से अधिक की बातचीत तो केवल राम-रमौवल कहलाएगी। योरप (यूरोप) के लोगों से बातचीत का हुनर है जिसे आर्ट ऑफ कनवरसेशन कहते हैं। इस प्रसंग में ऐसे चतुराई से प्रसंग छोड़े जाते हैं कि जिन्हें कान को सुन अत्यन्त सुख मिलता है। हिन्दी में इसका नाम सुहृद गोष्ठी है। बालकृष्ण भट्ट बातचीत का उत्तम तरीका यह मानते हैं कि हम वह शक्ति पैदा करें कि अपने आप बात कर लिया करें। इस प्रकार आर्ट ऑफ कनवरसेशन मनुष्य के द्वारा आपस में बातचीत की उत्तम कला है जिसके द्वारा बातचीत को हमेशा आनन्दमय बनाए रहते हैं।

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