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Binayak Bhaiya

Chapter 4 अर्द्धनारीश्वर

अर्द्धनारीश्वर

अर्द्धनारीश्वर वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
दिनकर की कुरुक्षेत्र की रचना क्या है?
(क) काव्य
(ख) नाटक
(ग) निबंध
(घ) उपन्यास
उत्तर–
(क)

प्रश्न 2.
दिनकर की ‘संस्कृति के चार अध्याय’ किस विधा में है?
(क) उपन्यास
(ख) कहानी
(ग) गद्य–विद्या
(घ) काव्य
उत्तर–
(ग)

प्रश्न 3.
रामधारी सिंह दिनकर की रचना है
(क) अर्द्धनारीश्वर
(ख) रोज।
(ग) ओ सदानीरा
(घ) जूठन
उत्तर–
(क)

प्रश्न 4.
दिनकर जी किस सभा के सांसद थे?
(क) विधान सभा
(ख) विधान परिषद्
(ग) लोक सभा
(घ) राज्य सभा
उत्तर–
(घ)

प्रश्न 5.
दिनकर को कौन राष्ट्रीय सम्मान मिला था?
(क) पद्म श्री
(ख) भारत रत्न
(ग) पद्मभूषण
(घ) पद्मविभूष।
उत्तर–
(ग)

प्रश्न 6. ‘दिनकर कवि के साथ और क्या थे?
(क) नाटककार
(ख) उपन्यासकार
(ग) गद्यकार एकांकीकार
(घ) एकांकीकार
उत्तर–
(ग)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
रामधारी सिंह का ……….. उपनाम था।
उत्तर–
दिनकर

प्रश्न 2.
दिनकर का जन्म ……… गाँव में हुआ था।
उत्तर–
सिमरिया

Ardhnarishwar Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
दिनकर के पिता का नाम ………… था
उत्तर–
रवि सिंह

Ardhnarishwar Class 12 Bihar Board प्रश्न 4.
दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा ………. में हुई थी।
उत्तर–
गाँव

प्रश्न 5.
धर्मसाधक महात्मा और साधु ………. से भय खाते थे।
उत्तर–
नारियों

प्रश्न 6.
प्रेमचंद ने कहा है कि–”पुरुष जब नारी का गुण लेता है तब वह ……….. बन जाता है।
उत्तर–
देवता

प्रश्न 7.
‘उर्वशी’ काव्यकृति पर दिनकर को …………… पुरस्कार मिला।
उत्तर–
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला

अर्द्धनारीश्वर अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दिनकर किस युग के कवि हैं?
उत्तर–
छायावादोत्तर युग के।

प्रश्न 2.
रामधारी सिंह “दिनकर’ की रचना है :
उत्तर–
अर्द्धनारीश्वर।

प्रश्न 3.
अर्द्धनारीश्वर में किसके गुण का समन्वय है?
उत्तर–
पुरुष और नारी दोनों के।

प्रश्न 4.
‘अर्द्धनारीश्वर’ शीर्षक निबंध के निबंधकार कौन हैं?
उत्तर–
रामधारी सिंह दिनकर।

प्रश्न 5.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को किस कृति पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला?
उत्तर–
संस्कृति के चार अध्याय।

प्रश्न 6.
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म किस दिन हुआ?
उत्तर–
23 सितम्बर 1908

अर्द्धनारीश्वर पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत न मचता’। लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं? अपना पक्ष रखें
उत्तर–
रामधारी सिंह दिनकर लेखक नारी के गुण की चर्चा करते हुए कहते हैं कि दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता नारी के गुण है। इस गुण के कारण नारी विनम्र और दयावान होती है। इस गुण का अच्छा पक्ष यह है कि यदि पुरुष इन गुणों को अंगीकार कर ले तो अनावश्यक विनाश से बचा जा सकता है। पुरुष सदियों से अपने आपको शक्तिशाली मानता आया है। उसने नारियों को घर की चारदीवारी में सीमित किया। घर का जीवन सीमित और बाहर की जीवन असीमित, निस्सीम होता गया। पुरुष इतना कर्कश और कठोर हो उठा कि अपना रक्त बहाते समय कुछ नहीं सोचता कि क्या होनेवाला है। स्त्रियों के गुण दया, माया, सहिष्णु और भीरुता पुरुषों के गुण पौरुष, इत्यादि इनके विपरीत है। अतः लेखक कहता है कि यह वार्ता यदि कुंती और गांधारी के बीच हुई होती तो यह महाभारत न हुआ होता। पुरुष में क्रोधादि गुण होते हैं जिसमें समर्पण के बदले अहम का भाव अधिक होता है। दुर्योधन के अहम के कारण यह महाभारत हुआ।

प्रश्न 2.
अर्द्धनारीश्वर की कल्पना क्यों की गई होती? आज इसकी क्या सार्थकता है?
उत्तर–
अर्द्धनारीश्वर, शंकर और पार्वती का काल्पित रूप है। अर्द्धनारीश्वर के द्वारा स्त्री और पुरुष के गुणों को एक एक कर यह बताया गया है कि नर––नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। अर्थात् नरों में नारियों के गुण आए तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं बल्कि उनकी पूर्णता. में वृद्धि ही होती है। आज इसकी जरूरत इसलिए है कि पुरुष समाज वर्चस्ववादी है और उसने वह समझ रखा है कि पुरुष में स्त्रीयोचित गुण आ जाने पर स्त्रैण हो जाता है। उसी प्रकार स्त्री समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगता है।

इस प्रकार पुरुष के गुणों के बीच एक प्रकार का विभाजन हो गया है तथा विभाजन की रेखा को लाँघने में नर और नारी दोनों को भय लगता है। इसलिए अर्द्धनारीश्वर की जरूरत है। संसार में पुरुषों के समान ही स्त्रियाँ हैं। जिस प्रकार पुरुषों को सूर्य की धूप पर बराबर अधिकार है उसी तरह नारियों का भी यह अधिकार है। पुरुष ने नारी को षड्यंत्रों के जरिये उसे अपने अधीन कर रखा है। दिनकर इस पुरुष वर्ग एवं स्त्री वर्ग की समझाना चाहते हैं कि नारी–नर पूर्ण रूप से समान हैं। पुरुष यदि नारियों के कुछ गुण अपना ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है और नारी पुरुषों के गुण अपना ले तो भय से मुक्त हो सकती है। इसीलिए अर्द्धनारीश्वर की कल्पना की गई है।

प्रश्न 3.
रवीन्द्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचन्द के चिन्तन से दिनकर क्यों असन्तुष्ट हैं?
उत्तर–
रवीन्द्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचन्द के चिन्तन में दिनकर असन्तुष्ट इसलिए हैं कि वे अर्द्धनारीश्वर रूप उनके चिन्तन में कहीं प्रकट नहीं हुआ। बल्कि नारी को नीचा दिखाने, उसे अधीन करने की ही बात कही गयी है। दिनकर मानते हैं कि अर्द्धनारीश्वर की कल्पना से इस बात के संकेत हैं कि नर–नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। दिनकर पाते हैं कि यह दृष्टि रवीन्द्रनाथ के पास नहीं है। वे नारी के गुण यदि पुरुष में आ जाएँ तो उसको दोष मानते हैं। नारियों को कोमलता ही शोभा देती है। वे कहते हैं कि नारी यदि नारी हय की होइवे कर्म–कीर्ति, वीर्यबल, शिक्षा–दीक्षा तार? अर्थात् नारों की सार्थकता उसकी भंगिमा के मोहक और आकर्षक होने में है, केवल पृथ्वी की शोभा, केवल आलोक, केवल प्रेम की प्रतिमा बनने में हैं।

कर्मकीर्ति, वीर्यबल और शिक्षा–दीक्षा लेकर वह क्या करेगी? प्रेमचन्द ने कहा है कि “पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है, किन्तु नारी जब नर के गुण सीखती है तब वह राक्षसी हो जाती है।” इसी प्रकार प्रसाद जी इड़ा के विषय में यदि कहा जाय कि इड़ा वह नारी है जिसने पुरुषों के गुण सीखे हैं तो निष्कर्ष निकलेगा कि प्रसादजी भी नारी. की पुरुषों के क्षेत्र से अलग रखना चाहते हैं। नारियों के प्रति इस तरह के भाव तीन बड़े चिन्तकों को शोभा नहीं देता है। इसीलिए दिनकर इनके चिन्तन से दुखी है। नारी संसार में सर्वत्र नारी है और पुरुष पुरुष।

प्रश्न 4.
प्रवृत्तिमार्ग ओर निवृत्तिमार्ग क्या है?
उत्तर–
प्रवृत्तिमार्ग : प्रवृत्तिमार्ग को गृहस्थ जीवन की स्वीकृति का मार्ग है। दिनकरजी के अनुसार गृहस्थ जीवन में नारियों की मर्यादा बढ़ती है। जो पुरुष गृहस्थ जीवन को अच्छा मानते हैं उन्हें प्रवृत्तिमार्गी माना जाता है। जो प्रवृत्तिमार्गी हुए उन्होंने नारियों को गले से लगाया। नारियों का सम्मान दिया। प्रवृत्तिमार्गी जीवन में आनन्द चाहते थे और नारी आनन्द की खान है। वह ममता की प्रतिमूर्ति है। वह दया, माया, सहिष्णुता की भंडार है।

निवृत्तिमार्ग : निवृत्तिमार्ग गृहस्थ जीवन को अस्वीकार करनेवाला मार्ग है। गृहस्थ जीवन को अस्वीकार करना नारी को अस्वीकार करना है। निवृत्ति मार्ग से नारी की मान मर्यादा गिरती है। जो निवृत्तिमार्गी बने उन्होंने जीवन के साथ नारी को भी अलग ढकेल दिया क्योंकि वह उनके किसी काम की चीज नहीं थी। उनका विचार था कि नारी मोक्ष प्राप्ति में बाधक है। यही कारण था कि प्राचीन विश्व में जब वैयक्तिक मुक्ति की खोज मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना मानी जाने लगी, तब झुंड के झुंड विवाहित लोग संन्यास लेने लगे और उनकी अभागिन पत्नियों के .. सिर पर जीवित वैधव्य का पहाड़ टूटने लगा। बुद्ध, महावीर, कबीर आदि संत महात्मा निवृत्तिमार्ग के समर्थक थे।

प्रश्न 5.
बुद्ध ने आनन्द से क्या कहा?
उत्तर–
बुद्ध ने आनन्द से कहा कि आनंद ! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पाँच सहस्र वर्ष तक चलने वाला था, किन्तु अब वह केवल पाँच सौ वर्ष चलेगा, क्योंकि नारियों को मैंने भिक्षुणी . होने का अधिकार दे दिया है।

प्रश्न 6.
स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे क्या मंशा होती है, क्या ऐसा कहना उचित है?
उत्तर–
स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे पुरुष की मंशा खुद को श्रेष्ठ साबित करने की है। ऐसा करके पुरुष अपनी दुर्बलता को भी छिपाता है। साथ ही वह नारी को दबाकर रखने के लिए भी ऐसा करता है।

ऐसा कहना बिल्कुल भी उचित नहीं है क्योंकि इससे नारी के हृदय को ठेस पहुंचती है। वैसे भी नारी आदरणीय तथा श्रद्धा के योग्य है। समाज में उसका भी बराबर का स्थान है। इसलिए ऐसा कहना पूर्णतः गलत है।

प्रश्न 7.
नारी के पराधीनता कब से आरम्भ हुई?
उत्तर–
नारी की पराधीनता तब आरंभ हुई जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया, . . जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा। यहाँ से जिंदगी दो टुकड़ों में बँट गई। घर का जीवन सीमित और बाहर का जीवन विस्तृत होता गया, जिससे छोटी जिन्दगी बड़ी जिन्दगी के अधिकाधिक अधीन हो गई। नारी की पराधीनता का यह संक्षिप्त इतिहास है।

प्रश्न 8.
प्रसंग स्पष्ट करें–
(क) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है।
(ख) जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है।
उत्तर–
व्याख्या–
(क) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ रचित निबंध अर्द्धनारीश्वर से ली गयी है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह कहना चाहता है कि जिस तरह वृक्ष के अधीन उसकी लताएँ फलती–फूलती हैं उसी तरह पत्नी भी पुरुषों के अधीन है। वह पुरुष के पराधीन है। इस कारण नारी का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया। उसके सुख और दुख, प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा यहाँ तक कि जीवन और मरण भी पुरुष की मर्जी पर हो गये। उसका सारा मूल्य इस बात पर जा ठहरा है कि पुरुषों की इच्छा पर वह है। वृक्ष की लताएँ वृक्ष के चाहने पर ही अपना पर फैलाती है।

उसी प्रकार स्त्री ने भी अपने को आर्थिक पंगु मानकर पुरुष को अधीनता स्वीकार कर ली और यह कहने को विवश हो गयी कि पुरुष के अस्तित्व के कारण ही मेरा अस्तित्व है। इस परवशता के कारण उसकी सहज दृष्टि भी छिन गयी जिससे यह समझती कि वह नारी है। उसका अस्तित्व है। एक सोची–समझी साजिश के तहत पुरुषों द्वारा वह पंगु बना दी गई। इसीलिए वह सोचती है कि मेरा पति मेरा कर्णधार है मेरी नैया वही पार करा सकता है, मेरा अस्तित्व उसके होने के कारण को लेकर है। वृक्ष लता को अपनी जड़ों से सींचकर उसे सहारा देकर बढ़ने का मौका देता है और कभी दमन भी करता है। इसी तरह एक पत्नी भी इसी दृष्टि से अपने पति को देखती है।

(ख) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर के निबंध अर्द्धनारीश्वर से ली गयी है। निबन्धकार दिनकर कहते हैं कि नारी में दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता जैसे स्त्रियोचित गुण होते हैं। इन गुणों के कारण नारी विनाश से बची रहती है। यदि इन गुणों को पुरुष अंगीकार कर ले तो पुरुष के पौरुष में कोई दोष नहीं आता और पुरुष नारीत्व से पूर्ण हो जाता है। इसीलिए निबंधकार अर्द्धनारीश्वर की कल्पना करता है जिससे पुरुष स्त्री का गुण और स्त्री पुरुष का गुण लेकर महान बन सके। प्रकृति ने नर–नारी को सामान बनाया है पर गुणों में अंतर है। अत: निबन्ध कार नारीत्व के लिए एक महान पुरुष गाँधीजी का हवाला देता है कि गाँधीजी ने अन्तिम दिनों में नारीत्व की ही साधना की थी।

प्रश्न 9.
जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्म क्षेत्र है। कैसे?
उत्तर–
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने अपने निबन्ध ‘अर्द्धनारीश्वर’ में नर–नारी के . समान महत्व पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार नर–नारी एक–दूसरे के पूरक हैं। नर में नारीत्व का गुण एवं नारी में पौरुष का गुण सहज ही दृष्टिगोचर होता है।

इस संसार में नर और नारी दोनों का जीवनोद्देश्य एक है। परन्तु पुरुषों ने अन्याय से अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनमाने विस्तार का क्षेत्र अधिकृत कर लिया है। जीवन की प्रत्येक बड़ी घटना आज केवल पुरुष–प्रवृत्ति से संचालित होती हुई दिखाई देती है। इसीलिए उसमें कर्कशता अधिक और कोमलता कम दिखाई देती है। यदि इस नियंत्रण और संचालन में नारियों का हाथ हो तो मानवीय संबंधों में कोमलता की वृद्धि अवश्य होगी। जीवन यज्ञ में उसका भी अपना हिस्सा है और वह हिस्सा घर तक ही सीमित नहीं बाहर भी है। आज नारियों को हर क्षेत्र में कार्य मिल रहा है और उसे वे बड़ी समझदारी से उतनी ही मजबूती के साथ करती है जितने कि पुरुष। यदि पुरुष अपना वर्चस्ववादी रवैया कम करें तो यह संभव है। इस प्रकृति के द्वारा इनमें कोई विभेद नहीं किया गया है तो हम कौन होते हैं उनका विभेद करनेवाले। अतः पुरुष जिसे अपना कार्यक्षेत्र मानता है वह नारियों का भी कर्मक्षेत्र है।

प्रश्न 10.
‘अर्द्धनारीश्वर’ निबन्ध में दिनकरजी के व्यक्त विचारों का सार रूप प्रस्तुत करें।
उत्तर–
‘अर्द्धनारीश्वर’ निबंध के द्वारा ‘दिनकर’ यह विभेद मिटाना चाहते हैं कि नर–नारी दोनों अलग–अलग हैं। नर–नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। ‘दिनकर’ पुरुषों के वर्चस्ववादी रवैये से बाहर आकर नारी को समाज में प्रतिष्ठा दिलाना चाहते हैं जिसे पुरुषों से हीन समझा जाता है। दिनकर यह दिखलाना चाहते हैं नारी पुरुष से तनिक भी कमतर नहीं है। पुरुषों को भोगवादी दृष्टि छोड़नी होगी जो स्त्री को भोग्या मात्र समझता है। वे नारियों को भी कहते हैं कि उन्हें पुरुषों के कुछ गुण अंगीकार करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए और नहीं वह समझना चाहिए कि उनके नारीत्व को इससे बट्टा लगेगा या कमी आयेगी। पुरुषों को भी. स्त्रियोचित गुण अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराना नहीं चाहिए क्योंकि स्त्री के कुछ गुण शीलता, सहिष्णुता, भीरुता, पुरुषों द्वारा अंगीकार कर लेने पर वह महान बन जाता है।

दिनकर तीन भारतीय चिन्तकों का हवाला देते हुए उनकी चिन्तन की दृष्टि से दुखी होते हैं। दिनकर मानते हैं स्त्री भी पुरुष की तरह प्रकृति की बेमिसाल कृति है कि इसमें विभेद अच्छी बात नहीं। साथ ही नर–नारी दोनों का जीवनोद्देश्य एक है। जिसे पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। जीवन की प्रत्येक बड़ी घटना पुरुष प्रवृति द्वारा संचालित होने से पुरुष में कर्कशता अधिक कोमलता कम दिखाई देती है। यदि इस नियंत्रण में नारियों का हाथ हो तो मानवीय संबंधों में कोमलता की वृद्धि अवश्य होगी।

यही नहीं प्रत्येक नर को एक हद तक नारी ओर प्रत्येक नारी को एक हद तक नर बनाना आवश्यक है। दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता ये स्त्रियोचित गुण कहे जाते हैं। इसका अच्छा पक्ष है कि पुरुष इसे अंगीकार कर ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है। उसी प्रकार अध्यवसाय, साहस और शूरता का वरण करने से भी नारीत्व की मर्यादा नहीं घटती। दिनकर अर्द्धनारीश्वर के बारे में कहते हैं कि अर्द्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक है कि नारी और नर जब तक अलग है तब तक दोनों अधूरे हैं बल्कि इस बात से भी पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगे बल्कि यह प्रत्येक नारी में भी पौरुष का स्पष्ट आभास हो।

अर्द्धनारीश्वर भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित से संज्ञा बनाएँ कल्पित, शीतल, अवलम्बित, मोहक, आकर्षक, वैयक्तिक, विधवा, साहसी
उत्तर–

  • कल्पित – कल्पना
  • शीतल – शीत
  • अवलम्बित – अवलम्ब
  • मोहक – मोह
  • आकर्षक – आकर्षण
  • वैयक्तिक – व्यक्ति
  • विधवा – वैधन्य
  • साहसी – साहस

प्रश्न 2.
वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग–निर्णय करें। संन्यास, आयुष्मान, अंतर्मन, महौषधि, यथेष्ट, मनोविनोद।
उत्तर–
संन्यास (पु.)–रमण ने चौथेपन में संन्यास धारण कर लिया था।
आयुष्मान (पु.)–तुम आयुष्मान रहो।
अंतर्मन (पु.)–अपने अंतर्मन से पूछो।
महौषधि (स्त्री.)–लक्ष्मण को संजीवनी जैसी महौषधि की जरूरत पड़ी।
यथेष्ट (पु.)–उसने आपका यथेष्ट कार्य किया।
मनोविनोद (स्त्री.)–मनोविनोद अच्छा लगता है।

प्रश्न 3.
अर्थ की दृष्टि से नीचे लिखे वाक्यों की प्रकृति बताएँ।
(क) संसार में सर्वत्र पुरुष पुरुष हैं और स्त्री स्त्री।
(ख) किन्तु पुरुष और स्त्री में अर्द्धनारीश्वर का यह रूप आज कहीं भी देखने में नहीं आता।
(ग) कामिनी तो अपने साथ यामिनी की शांति लाती है। . (घ) यहाँ से जिन्दगी दो टुकड़ों में बँट गई।
(ङ) विचित्र बात तो यह है कि कई महात्माओं ने ब्याह भी किया और फिर नारियों . की निन्दा भी की।
उत्तर–
(क) विधिवाचक
(ख) निषेधात्मक
(ग) संकेतवाचक
(घ) विधिवाचक
(ङ) निषेधवाचक

प्रश्न 4.
बट्टा लगाना का क्या अर्थ है?
उत्तर–
घाटा देना।

अर्द्धनारीश्वर लेखक परिचय रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (1908–1974)

जीवन परिचय :
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितम्बर, 1908 ई. के दिन बिहार राज्य के बेगूसराय जिले के सिमरिया नामक स्थान पर हुआ। इनकी माता का नाम मनरूप देवी और पिता का नाम रवि सिंह था। इनकी पत्नी श्यामवती देवी थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा – गाँव और उसके आसपास के इलाके में हुई। इन्होंने सन् 1928 में मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिक पास किया और सन् 1932 में पटना कॉलेज से इतिहास विषय में बी.ए. (ऑनर्स) किया।

सन् 1925 में इनकी पहली कविता ‘छात्र सहोदय’ में प्रकाशित हुई। इसके अतिरिक्त भी इनकी कई रचनाएँ छात्र जीवन के दौरान ही प्रकाशित हो गई। 21 वर्ष की अवस्था में इनकी पहली कविता पुस्तक ‘प्रणभंग’ प्रकाशित हुई। अध्ययन प्राप्त करने के बाद इन्होंने एच. ई. स्कूल, . बरबीघा में प्रधानाध्यापक का पद ग्रहण किया। इसके बाद वे सब–रजिस्ट्रार नियुक्त किए गए और फिर जनसंपर्क विभाग एवं बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर बन गए। बाद में वे भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

वहीं इन्होंने हिन्दी सलाहकार के रूप में भी कार्य किया। वे राज्यसभा में सांसद भी रहे। इन्हें ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए साहित्य अकादमी एवं ‘उर्वशी’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वहीं इन्हें ‘पद्मभूषण’ एवं अन्य कई अलंकरणों से भी सम्मानित किया गया। इनकी श्रेष्ठ रचनाओं के कारण इन्हें राष्ट्रकवि कहा गया। साहित्य के इस पुरोध का निधन 24 अप्रैल, 1974 के दिन हुआ, जो साहित्य तथा देश के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।

रचनाएँ : रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

काव्य कृतियाँ–प्रणभंग (1929), रेणुका (1935), हुंकार (1938), रसवंती (1940), कुरुक्षेत्र (1946), रश्मिरथी (1952), नीलकुसुम (1954), उर्वशी (1961), परशुराम की प्रतीक्षा (1963), कोमलता और कवित्व (1964), हारे की हरिनाम (1970) आदि।

गद्य कृतियाँ–मिट्टी की ओर (1946), अर्धनारीश्वर (1952), संस्कृति के चार अध्याय (1956), काव्य की भूमिका (1958), वट पीपल (1961), शुद्ध कविता की खोज (1966), दिनकी की डायरी (1973) आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जितने बड़े कवि थे उतने ही श्रेष्ठ गद्यकार भी थे। उनके गद्य में भी काव्य के अनुरूप ही ओज, पौरुष तथा उत्साह दिखाई देता है। ये छायावादोत्तर युग के प्रमुख कवि थे। इन्होंने प्रबंध, मुक्तक, गीत–प्रगीत, काव्य–नाटक आदि अनेक काव्य–शैलियों में उत्कृष्ट रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।

२गद्य के क्षेत्र में दिनकर जी ने कई उल्लेखनीय कृतियाँ दी हैं जो उनके युग की उपलब्धि मानी जा सकती है। उनके गद्य में विषय–वस्तु और शैली की दृष्टि से पर्याप्त वैविध्य है। साथ ही उनके व्यक्तित्व का प्रभाव भी परिलक्षित होता है।

अर्द्धनारीश्वर पाठ के सारांश

राष्ट्रकवि दिनकर अर्द्धनारीश्वर निबंध के माध्यम से यह बताते हैं कि नर–नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। अर्थात् नरों में नारियों के गुण आए तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं होती बल्कि उसकी पूर्णता में वृद्धि होती है। दिनकर को यह रूप कहीं देखने को नहीं मिलता है। इसलिए वे क्षुब्ध हैं। उनका मानना है कि संसार में : सर्वत्र पुरुष और स्त्री हैं। वे कहते हैं कि नारी समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगेगा। इसी प्रकार पुरुष समझता है कि स्त्रियोचित गुण अपनाकर वह स्त्रैण . हो जायेगा। इस विभाजन से दिनकर दुखी है।

यही नहीं भारतीय समाज को जाननेवाले तीन बड़े चिन्तकों रवीन्द्रनाथ, प्रेमचन्द, प्रसाद के चिन्तन से भी दुखी हैं। दिनकर मानते हैं कि यदि ईश्वर ने आपस में धूप और चाँदनी का बँटवारा नहीं किया तो हम कौन होते हैं आपसी गुणों को बाँटने वाले। वे नारी के पराधीनता का संक्षिप्त इतिहास बताने के संदर्भ में कहते हैं कि पुरुष वर्चस्ववादी तरीके अपनाकर नारी को गुलाम बना लिया है। जब कृषि व्यवस्था का आविष्कार किया जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा। यहाँ से जिन्दगी दो टुकड़ों में बँट गई। नारी पराधीन होकर अपने समस्त मूल्य भूल गयी।

अपने अस्तित्व की अधिकारिणी भी नहीं रही। उसे यह लगने लगा कि मेरा अस्तित्व पुरुष को होने से है। समाज ने भी नारी को भोग्या समझकर उसका उपभोग खूब किया। वसुंधरा भोगियों ने नारी को आनन्द की खान मानकर उसका जी भर उपभोग किया। दिनकर मानते हैं कि नर और नारी एक ही द्रव्य की दली दो प्रतिभाएँ हैं। जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। अतः अर्द्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक नहीं है कि नारी और नर जब तक अलग हैं तब तक दोनों अधूरे हैं बल्कि इस बात का भी कि जिस पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगे; बल्कि यह कि प्रत्येक नारी में भी पौरुष का स्पष्ट आभास हो।

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