ओ सदानीरा
ऑब्जेक्टिव –
1. चंपारण में 12 वीं सदी में किस वंश का राज स्थापित हुआ ?
उत्तर- कर्णाट वंश
2. कर्णाट वंश के लोग भारत के किस हिस्से से चंपारण आए थे?
उत्तर- दक्षिण
3. मसान सिकराना पंडई ये सब क्या है ?
उत्तर- नदिया
1.चम्पारन क्षेत्र में बाढ़ की प्रचण्डता के बढ़ने के क्या कारण हैं?
उत्तर – वहाँ मध्य युग से ही, मुगलों के आगमन के साथ ही जंगल बेरहमी से काटे जाते रहे थे। वृक्ष पानी के बहाव को रोकते हैं और अपनी जड़ों में भी उसको समेटे रखते हैं। फलत: नदियाँ उन्मत्त यौवना की भाँति स्वच्छन्द नहीं हो पातीं। उत्ताल वृक्ष नदी की धाराओं की गति को भी सन्तुलित करने की भी क्षमता रखते हैं। बाढ़ के कारण ही नदी का उफान, जब उसमें समाया जल कगारों से बाहर बह उठता है – बाढ़ आ जाती है, पर जब बीच में अडिग गगनचुम्बी वन खड़े हों तो वे उसको ललकारते हैं-आगे मत बढ़ना। आज चम्पारण क्षेत्र वृक्षविहीन हो गया है, फिर कौन रोके सदानीरा के प्रचण्ड उन्मुक्त आवेग को। अपनी शक्ति के गर्व में डूबी, मदोन्मत्त वह सदानीरा निर्बाध गति से, जिधर चाहती है, उधर ही दौड़ जाती है और जलप्लावन का रूप बन जाती है। साथ ही उस ओर शासन का भी ध्यान नहीं गया है।
2.इतिहास की कीमिआई प्रक्रिया का क्या आशय है?
उत्तर- कीमिआई प्रक्रिया ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से पारे को सोने में बदला जाता है फिर पारे को कुछ विलेपनों के साथ उच्च ताप पर गर्म किया जाता है। पाठ के संदर्भ में लेखक कहना चाहता है कि जिस प्रकार पारा जब कुछ विलेपनों के साथ गर्म करके एक दूसरे प्रकार का पदार्थ बन जाता है, ठीक उसी प्रकार दक्षिण से आयी दसवीं संस्कृति और रक्त यहाँ आकर यहाँ की संस्कृति में घुल-मिल गया तथा एक मिश्रित संस्कृति का रूप लेकर एक नया आकार ले बैठी। यही है इतिहास की कीमि आई|
3.धांगड़ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर – यह ओरॉव भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है-भाड़े का मजदूर। यह धाँगड़ एक आदिवासी जाति भी है। इसको नीलहे अंग्रेज मजदूरी और नील की खेती करने हेतु, 18वीं शताब्दी में दक्षिणी बिहार के छोटा नागपुर पठार से यहाँ (चम्पारण) लाये थे। धाँगड़ जाति आदिवासी जातियों- ओरॉव, मुण्डा, लोहार इत्यादि के वंशज हैं, पर ये अपने आपको आदिवासी मानने को तैयार नहीं हैं। धाँगड़ जाति के व्यक्ति मिश्रित ओरॉव भाषा में ही बात करते हैं। निबन्ध के अनुसार धाँगड़ों का सामाजिक जीवन बेहद उल्लासपूर्ण है। इस जाति के नर-नारी संध्या के समय मन्द प्रकाश में सामूहिक नृत्यों का आयोजन भी करते हैं।
4.थारुओं की कला का परिचय पाठ के आधार पर दीजिये ।
उत्तर- थारुओं की कला मूलत: उनके दैनिक जीवन का अंग है। जिस पात्र में धान रखा जाता है, वह सींकों से बनाया जाता है, उसकी कई रंगों के द्वारा डिजाइन बनायी जाती है। सींक की रंग-बिरंगी टोकरियों के किनारे सीप की झालर लगी होती है। दीपक जो प्रकाश बिखेरता है उसकी आकृति भी कलापूर्ण होती है। शिकारी किसान के काम के लिये जो पदार्थ मूंज से बनाये जाते हैं, वहाँ भी सौन्दर्य और उपयोगिता का विलक्षण मिश्रण रहता है। उनके यहाँ नववधू जब प्रथम बार खेत पर खाना लेकर अपने पति के पास जाती है उस समय का दृश्य बड़ा कलात्मक होता है। वह अपने मस्तक पर एक पीढ़ा रखती है, जिसमें तीन लटें वेणियों की भाँति लटकी रहती हैं। प्रत्येक लट में धवल सीपों और एक बीज विशेष के सफेद दाने पिरोये रहते हैं। पीढे के ऊपर सींक की कलापूर्ण टोकरी में भोजन रहता है। टोकरी को दोनों हाथों से सँभाल, जब वह लाजभरी, सुहाग भरी धीरे-धीरे खेत की ओर पग बढ़ाती है, तो सीप की वेणियाँ रजत कंकण की भाँति झंकृत हो उठती हैं और सारे गाँव को पता चल जाता है-वधू अपने प्रियतम को कलेवा कराने जा रही है।
5.अंग्रेज नीलहे किसानों पर क्या अत्याचार करते थे?
उत्तर- अंग्रेजों द्वारा अमानवीय अत्याचार वहाँ के मजदूरों और किसानों पर किये गये थे। किसानों को विवश किया जाता था कि वे नील की खेती करें। प्रत्येक बीस कट्टा भूमि में तीन कट्टा की खेती करना प्रत्येक किसान हेतु अनिवार्य था । यह वहाँ तिनकठिया प्रथा कही जाती थी। जिस भूमि पर यह नील की खेती होती थी, उसकी उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती थी, भूमि बंजर हो जाती थी। जब केमिकल रंग बाजार में आ गये, तो नील उगाना बन्द हो गया। इस पर किसानों की तिनकठिया से मुक्ति पाने हेतु भारी रकम अंग्रेजों को देनी पड़ती थी। जिस मार्ग पर साहब की सवारी जाती थी उस पर भारतवासी अपने पशु तक नहीं ले जा सकते थे। साहब के यहाँ जो भी कार्यक्रम हो उसका सारा व्यय किसानों को ही उठाना पड़ता था । यह तो मात्र एक झलक भर है उनके अमानुषी अत्याचार बड़े बर्बर थे।
6. गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजों ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली ?
उत्तर– गंगा के पार बिहार का दक्षिणी क्षेत्र था। वहाँ अपेक्षाकृत अधिक जागृति थी साथ ही वहाँ अंग्रेजों के प्रति एक बगावत भी पनप रही थी । यदि गंगा पर पुल बन जाता तो दो स्थितियों के सामने आने की पूरी सम्भावना थी । चम्पारण में अंग्रेजों द्वारा अमानुषिक अत्याचार हो रहे थे। यदि पुल बन जाता तो इन अत्याचारों की गूँज बिहार के शेष भाग में फूट सकती थी और एक बगावत का रूप ले सकती थी । दोनों ओर से आवागमन प्रारम्भ हो जाता और दक्षिण का बागी स्वर चम्पारण के अत्याचारों का रक्षक बन जाता तो सारे बिहार में बगावत खड़ी हो सकती थी|
7.चम्पारण में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गाँधी जी ने क्या किया ?
उत्तर- गाँधीजी चम्पारण में कृषकों, मजदूरों की समस्याओं को दूर करने ही आये थे, वहाँ की दुखद स्थिति देखकर और अत्याचार देखकर उन्होंने निश्चय किया कि जब तक ग्रामीण बच्चों में शिक्षा की व्यवस्था नहीं होगी तब तक केवल आर्थिक समस्याओं को सुलझाने से काम नहीं चल सकेगा। थोड़े समय बाद उन्होंने तीन गाँवों में आश्रम विद्यालय स्थापित किए – बड़हरवा, मधुवन और भितिहरवा । तीनों स्थान पर निष्ठावान कार्यकर्ता तैनात किये गये थे, कार्यकर्ता गुजरात और महाराष्ट्र से आये थे। बड़हरवा विद्यालय विदेश में शिक्षा प्राप्त इंजीनियर श्री बवनजी गोखले और उनकी विदुषी पत्नी अवन्तिबाई गोखले ने सँभाला। इन विद्यालयों का क्या आदर्श था ? इसका अन्दाजा गाँधीजी के उस पत्र से चलता है जो उन्होंने चम्पारण के कलक्टर को लिखा था। वर्तमान शिक्षा पद्धति को तो मैं खौफनाक और हेय मानता हूँ। छोटे बच्चों के चरित्र और बुद्धि का विकास करने में यह पद्धति उन्हें बौना बनाती है। अपने प्रयोग में वर्तमान पद्धति के गुणों को ग्रहण करते हुए, मैं उन्हें दोषों से बचाने की चेष्टा करूँगा। यह भी उल्लेखनीय है कि गाँधी जी के पुत्र और स्वयं बा ने भी इस कार्य में काफी सहयोग दिया।
8.गाँधी जी के शिक्षा सम्बन्धी आदर्श क्या थे?
उत्तर- गाँधी जी तत्कालीन शिक्षा पद्धति से सहमत नहीं थे, उनका जो पत्र चम्पारण के कलक्टर के नाम था, उसी से उनके शिक्षा सम्बन्धी आदर्श स्पष्ट हो जाते हैं। गाँधी जी पुरानी लीक के पक्षपाती नहीं थे और वर्तमान शिक्षा पद्धति को बड़ा खौफनाक और हेय मानते थे। उनका आदर्श था बच्चों में चरित्र और बौद्धिक विकास- कारण वर्तमान पद्धति बच्चों को बौना बनाती है, उनका ध्येय था वर्तमान शिक्षा पद्धति के दोषों से बचकर मात्र उसके गुणों का ग्रहण । उनका उद्देश्य था बच्चे ऐसे पुरुष और महिलाओं के सम्पर्क में आये जो सुसंस्कृत हों, जिनका चरित्र निष्कलुष हो । गाँधी जी की वास्तविक शिक्षा यही थी – ज्ञान, चरित्र एवं बौद्धिक विकास। विद्यालयी शिक्षा तो उसका माध्यम मात्र है। जीविका हेतु जो बालक नए साधन सीखना चाहते हैं उनके लिए औद्योगिक शिक्षा की भी व्यवस्था रहेगी। यह भी नहीं है कि शिक्षा प्राप्ति के उपरान्त बालक अपने परम्परागत व्यवसाय का परित्याग कर दे। वे जो भी ज्ञान विद्यालय में प्राप्त करेंगे उसके माध्यम से ग्रामांचल में कृषि, व्यवसाय आदि को उन्नत बनाने का प्रयास करेंगे।
9.पुंडलीक जी कौन थे?
उत्तर – ये भितिहरवा विद्यालय में शिक्षक थे। सन् 1917 में इन्हीं पुंडलीक जी को गाँधी जी ने बेलगाँव से बुलाया था भितिहरवा आश्रम की व्यवस्था देखने और शिक्षा देने हेतु। उनको यह भी काम सौंपा गया था कि ग्रामवासियों के दिल से भय भी दूर किया जाये। वे वहाँ एक वर्ष रहे फिर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जिले से निर्वासित कर दिया। लेकिन इतना समय बीत जाने पर भी तीन साल में अपने पुराने स्थान को देखने को आ जाया करते थे। उनके शिष्य भी मौजूद थे, वृद्ध हो चले हैं। किन्तु पुंडलीक का तेजस्वी व्यक्तित्व, बलिष्ठ शरीर, दबंग आवाज थी। उनका समर्पण भी पूरा-पूरा था।
10.गाँधी जी के चम्पारण आन्दोलन की किन दो सीखों का उल्लेख लेखक ने किया है? इन सीखों को आज आप कितना उपयोगी मानते हैं?
उत्तर –चम्पारण आन्दोलन में गाँधी जी की दो सीख थीं-(1) निर्भीकता– निर्भीकता जीवन का बहुत बड़ा एवं महत्वपूर्ण आचरण है, जिसके अभाव में पशुता और मानवता में अन्तर करना कठिन जाता है। सत्य तभी जीवित रहेगा जब उसके पास निर्भीकता खड़ी रहेगी। अपनी सच्ची बात पर अडिग रहना, निर्भीक होना और उद्दण्ड होना अलग-अलग है। उद्दण्डता एक निषिद्ध आचरण है, जबकि निर्भीक होना महत्वपूर्ण और अति आवश्यक है। (2) सत्याचरण – सत्याचरण एक ऐसा तत्व है, जिसके अभाव में संसार का अस्तित्व ही संकट में पड़ सकता है, बिना तथ्य की जानकारी में कोई बात कहना, अफवाह उड़ाना भी असत्याचरण ही है। विश्वास की नींव, सत्याचरण पर ही टिकी है। गाँधीजी बिना कोई बात परखे सत्यता की जाँच को नहीं कहा करते थे। सत्य उनके जीवन का संबल था, यही हमारे जीवन का भी होना चाहिए क्योंकि इसके अभाव में हम मानव कहलाने का गौरव भी खो देते हैं और हमारा अस्तित्व जो विश्वास की बुनियाद पर खड़ा है, ढह जायेगा ।
10.यह पाठ आपके समक्ष कैसे प्रश्न खड़ा करता है?
उत्तर – यह पाठ हमारे सामने कई प्रश्न खड़े कर देता है- प्रकृति का दोहन, जंगल काटे गये, बेशुमार काटे गये और परिणाम सामने आया—बाढ़, दलदल और गाँवों की बर्बादी । मानव छोटे हित के सामने व्यापक हित कूड़ेदान में फेंक देता है और नीलक के अँग्रेजों और उनके भीषण अत्याचार सह गये क्यों ? मात्र स्वार्थ और संगठित शक्ति के अभाव में उन्होंने झोंपड़िया जला दीं लोभ के लिये और फिर उन्हीं की सेवा में जुट गये। गाँधी जी का आगमन एक वरदान बना और यह भी सत्य है कि यह चम्पारण ही था जिसने महात्मा गाँधी को गाँधी बना दिया और उनके सारे गुणों को उजागर कर उन्हें महात्मा गाँधी बना दिया। बौद्ध स्तूप, मठ हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है- हमारी सांस्कृतिक विरासत मिटती जा रही है। गंडक की तबाही भी हमें हिला देती है यह हमारी अकर्मण्यता का प्रतिफल है। सामूहिकता के अभाव का कुफल है। उसकी योजना बन सकती थी पर सोचा ही नहीं गया।
12.अर्थ स्पष्ट कीजिए – वसुन्धरा भोगी मानव और धर्मान्ध मानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
उत्तर – यह पंक्ति उस प्रसंग में आयी है जब जंगलों की कटाई डटकर हो रही थी। यह कितना विलक्षण है कि एक ओर मनुष्य जंगल काटे जा रहा है, खेतों, पशुओं और पक्षियों को नष्ट करता जा रहा है, नदियों पर बाँध बनाकर उनके अस्तित्व को नष्ट कर रहा है। धरती को भोगने की लालसा में मानव वसुन्धरा भोगी हो गया है, दूसरी ओर एक मानव है जो धर्मान्ध है वह गंगा को माता कहता है पर अपने घर की नाली का कूड़ा-करकट, पूजा सामग्री आदि गंगा में ही फेंक रहा है। दोनों ही प्रकृति का विनाश कर रहे हैं, फिर दोनों में अन्तर क्या है? वह प्रकृति का विनाश भोगार्थ करता है और यह प्रकृति का विनाश धर्मान्धता के कारण करता है।
13. कैसी है चम्पारण की यह भूमि, मानो विस्मृति के हाथों में अपनी बड़ी निधियों को सौंपने के लिए प्रस्तुत रहता है।
उत्तर – यह यहाँ का चित्र है पर है वास्तविक । यह यहाँ की विवशता भी है मुसलमान आक्रमणकारी आये और वहाँ आधिपत्य जमा बैठे। अंग्रेजों ने भूमि पर कब्जा किया और उसका तथा जनता का दोहन किया। पूर्वी बंगाल से भारी मात्रा में शरणार्थी आये, चम्पारण की भूमि ने सब को समेट लिया यह है उसकी उदारता ।
14.लेखक ने पाठ में विभिन्न जाति के लोगों के विभिन्न स्थानों से आकर चम्पारण और उसके आस-पास बसने का जिक्र किया है। वे कहाँ रहते थे और किसलिए वहाँ आकर बसे ?
उत्तर- इस प्रदेश में सर्वप्रथम कर्णाट वंश का प्रथम राजा नान्यदेव चालुक्य नृपति सोमेश्वर पुत्र विक्रमादित्य के सेनापति नेपाल और मिथिला की विजय यात्रा पर आए और यहीं बस गये। इस प्रकार सुदूर दक्षिण का रक्त और संस्कृति इस प्रदेश की निधि बना, उसके बाद गयासुद्दीन तुगलक आया। यहाँ आदिकाल से आने-जाने वालों का ताँता बँधा रहा। उसके बाद थारु और धांगड़ जातियाँ आयीं । थारु अपना सम्बन्ध (राजस्थान) से जोड़ते हैं। धांगड़ दक्षिण बिहार से आये, क्या उन्हें नील की खेती हेतु लाया गया था। उनका मूल छोटा नागपुर का पठार था। यहाँ की उर्वरा भूमि की सम्पदा प्राप्त करने में लालसा मन में समाये पछाँही जमींदार और गोरे साहब भी आये। गोरों ने अपना अलग ही साम्राज्य यहाँ बसा लिया। स्वतन्त्रता के बाद पूर्वी बंगाल के शरणार्थी भी आये, उनको भी बसाने का प्रयास किया गया।
15.पाठ में लेखक नारायण का रूपक रचता है और यह सांगरूपक है। रूपक का पूरा विवरण प्रस्तुत करिये ।
उत्तर – भैंसालोटन में गंडक घाटी योजना के अन्तर्गत एक बाँध बन रहा था, जिसमें उत्तर प्रदेश और बिहार का क्षेत्र सम्मिलित था। भारतीय इंजीनियर (मोटर बोट के माध्यम से) उसके लेखक को दिखा रहे थे, पर लेखक कुछ और ही सोच रहा था। युग-युग में होने वाली गज और ग्राह की लड़ाई का अन्त होने जा रहा है। यहाँ ग्राह है दैन्य और अभाव उसके विशाल मुख में फँसा है, जन-समुदाय । उसका संकट समाप्त करने अथवा उसका उद्धार एक अजेय पौरुष युक्त नारायण के विराट रूप का निर्माण हो रहा है। नहरें ही विराट नारायण की भुजाएँ हैं, बिजली के तार ही नारायण का त्राणकर्ता चक्र हैं। लेखक मन ही मन इंजीनियर महोदय को नमन करता है। विश्वकर्मा मजदूरों को नमन करता है, जो नारायण के नूतन विराट रूप के विधाता हैं। जिनकी बुद्धि और परिश्रम की गाथा कवि और कलाकार अंकित करते अथवा नहीं पर जिनके द्वारा बनाई मूर्तियों में प्राण का संचार होते ही सदियों से भग्न मन्दिर ज्योतित हो उठेगा।
16.नीलहे गोरों और गाँधी जी से जुड़े प्रसंगों को अपने शब्दों में लिखिये ।
उत्तर- अंग्रेज चम्पारण में आये और उन्होंने नील की खेती करना प्रारम्भ किया इसी कारण वे नीलहे कहे गये। बोतिया राज से बहुत कम धन में हजारों एकड़ भूमि इन ठेकेदारों ने ले ली, उस पर किसानों से बार-बार नील की खेती करायी गयी। हर बीस कट्ठा भूमि में से तीन कट्ठा भूमि पर नील की खेती करना आवश्यक था। महात्मा गाँधी ने यह सब देखा और नीलहे अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचार भी देखे उनसे संघर्ष करने का बीड़ा उठा लिया, उनका यह मत था कि जनता का शैक्षिक और सामाजिक स्तर सुधारे बिना यहाँ कुछ भी नहीं हो सकता और वहाँ विद्यालय स्थापित हुए। गाँधी जी ने अंग्रेजों को यह भी साफ बता दिया था (लिखित रूप में) शिक्षा की वर्तमान प्रणाली सर्वथा दोषपूर्ण है। गाँधीजी का व्यवहार बड़ा सन्तुलित रहा। गाँधी जी के पास नाना प्रकार के समाचार आते थे वे पहले समाचारों की छानबीन करते थे। फिर कुछ बोलते या लिखते थे। गाँधी के संघर्ष की कहानी काफी लम्बी है पर यहाँ उस पर प्रकाश नहीं डाला गया है।
17.चौर और मन किसे कहते हैं? वे कैसे बने और उनमें क्या अन्तर है? अथवा चौर और मन किसे कहते हैं
उत्तर – चम्पारण में गण्डक नदी के दोनों ओर विभिन्न आकृतियों के ताल बने हुए हैं। ये ताल कहीं उथले हैं और कहीं गहरे । ये सभी ताल टेढ़े-मेढ़े हैं। इन तालों में निर्मल जल भरा हुआ है। इन तालों को ही चौर और मन कहते हैं। जो उथले ताल होते हैं, उन्हें चौर कहा जाता है। चौरों में गर्मियों व सर्दियों में पानी कम हो जाता है। इसके विपरीत विशाल व गहरे तालों को मन कहा जाता है। इनके द्वारा खेती भी की जाती है।
18.कपिलवस्तु से मगध के जंगलों तक की यात्रा बुद्ध ने किस मार्ग से की थी ?
उत्तर –लौरिया नंदनगढ़ से एक नदी रामपुरवा और भितिहरवा होते हुए उत्तर में नेपाल के निकट मिखना थोरीतक जाती है।इस नदी का नाम है – पंईड | इसी पंईड नदी के सहारे – सहारे भगवान बुद्ध ने कपिलवस्तु से मगध के जंगलों तक यात्रा की थी।
ओ सदानीरा निबंध का सारांश
परतन्त्रता का काल, नीलहे अफसरों के अत्याचार, तिनकठिया प्रथा, महात्मा गाँधी जी का संघर्ष और बिहार की तत्कालीन स्थितियाँ, गरीबी, बँधुआ मजदूरी के हालात, साथ ही गंडक का ताण्डव और उसके किनारे बिखरी संस्कृति और जीवन प्रवाह पर बड़े विस्तार से यहाँ प्रकाश डाला गया है।
निबन्ध का प्रारम्भ चम्पारण के प्राकृतिक वातावरण से होता है, वहाँ का बड़ा ही प्रभावी और मनोहारी वर्णन हुआ है जो मानवीकरण का रूप भी लेता दिखायी देता है। दूर-दूर तक समतल की गई तराई, ट्रैक्टर की आतुर अँगुलियों ने मानो जिसे परिहत वसना कर दिया है। तभी तो लाज से सिकुड़ी-सी इन नदियों में जल नाममात्र को रह गया है। समाज की विषम स्थितियाँ और संस्कृति की मिटती आस्थाएँ भी व्यंजित हैं। नदी बाढ़ लाती है और वह सब कुछ करती है, जो उसको करना चाहिए, उसकी बाढ़ ऐसे प्रतीत होती है मानो उन्मत्त यौवना वीरांगना है अथवा कैकेयी का क्रोध हो । उनकी यह भी मान्यता है कि यह बाढ़ मानव की उच्छृंखलता का ही प्रतिफल है। चम्पारन के तट पर फैला महावन नहीं काटा गया होता तो यह विनाश लीला कुछ कम हो सकती थी। सामाजिक स्थितियों के आधार पर वह यह मानते हैं कि वसुन्धरा भोगी मानव और धर्मान्ध मानव दोनों एक ही श्रेणी के अराजक हैं, एक ने जंगल नष्ट किये दूसरे ने सड़ी-गली पूजा सामग्री नदी में फेंक दी मानो वह कोई घूरा हो ।
मध्यकालीन इतिहास पर भी उनकी दृष्टि गयी है। मुगलों ने अपना वर्चस्व स्थापित करने हेतु मीलों जंगल साफ कर दिया आक्रांता आर्य अपने साथ अपनी संस्कृति भी लाये, वे वहाँ बस भी गये। इस सबके द्वारा यहाँ की धरती की ओजोन का शोषण भी किया गया। तभी यहाँ मिश्रित संस्कृति फैली हुई है। चम्पारन इतिहास का एक महत्वपूर्ण बिन्दु है, जिसने महात्मा जी को महानेता बना दिया।
पाठ के साथ गंडक का महात्म्य भी कम नहीं है। शायद इसी कारण उसको सदानीरा भी कहा जाता है। उसके कई नामों की भी चर्चा है।