Binayak Bhaiya

Chapter 12 तिरिछ

तिरिछ

तिरिछ वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
उदय प्रकाश का जन्म हुआ था।
(क) 1 जनवरी, 1952 ई.
(ख) 5 जनवरी, 1950 ई.
(ग) 2 मार्च, 1940 ई.
(घ) 5 जनवरी, 1955 ई.
उत्तर-
(क)

प्रश्न 2.
सुनो कारीगर, अबूतर-कबूतर, रात में हारमोनियम उदय प्रकाश की कैसी कृतियाँ हैं?
(क) कविता-संग्रह
(ख) नाटक-संग्रह
(ग) एकांकी-संग्रह
(घ) निबंध-संग्रह
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
“तिरछी’ लेख का संबंध किनसे है?
(क) लेखक के पिताजी से
(ख) लेखक के मित्र से
(ग) लेखक के बेटे से
(घ) लेखक की पत्नी से
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
उदय प्रकाश जी किस पत्रिका का सहायक संपादक थे?
(क) संडेमेल (नई दिल्ली)
(ख) इंडिया टूड़े
(ग) फिल्म-स्टार
(घ) अमरकांत
उत्तर-
(क)

प्रश्न 5.
जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग में उदय प्रकाश ने क्या किया?
(क) अध्ययन
(ख) अध्यापन
(ग) लिपिकीय कार्य
(घ) शोध-कार्य
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 6.
दरियाई घोड़ा, तिरिछ, पीली छतरी वाली लड़की किनकी कृतियाँ हैं?
(क) मोहन राकेश
(ख) रांगेय राघव
(ग) उदय प्रकाश
(घ) अमरकांत
उत्तर-
(ग)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
उदय प्रकाश का जन्म ………… अनूपपुर म. प्र. में हुआ था।
उत्तर-
सीतापुर

प्रश्न 2.
उदय प्रकाश के पिताजी …….. थे।
उत्तर-
प्रेमकुमार सिंह

प्रश्न 3.
उदय प्रकाश की माताजी …… थीं।
उत्तर-
गंगादेवी

प्रश्न 4.
उदय प्रकाश का जन्म 1 जनवरी ………. को हुआ था।
उत्तर-
1952 ई.

प्रश्न 5.
‘तिरछी’ के लेखक ………… हैं।
उत्तर-
उदय प्रकाश

प्रश्न 6.
‘तिरछी’ एकबार मैंने ………… था।
उत्तर-
देखा

तिरिछ अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तिरिछ’ क्या है?
उत्तर-
छिपकली प्रजाति का विषैला जीव।

प्रश्न 2.
‘तिरिछ’ के लेखक कौन हैं :
उत्तर-
उदय प्रकाश।

प्रश्न 3.
“तिरिछ’ किसका पर्याय बनकर उभरा है?
उत्तर-
आतंक का।

प्रश्न 4.
“तिरिछ’ कहानी किस शैली में लिखी गई है?
उत्तर-
आत्मकथात्मक शैली।।

प्रश्न 5.
उदय प्रकाश ने किस पत्रिका के संपादन विभाग में काम किया?
उत्तर-
दिनमान।

प्रश्न 6.
‘अमेद्य’ शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर-
जिसे भेदा न जा सके।

तिरिछ पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
लेखक के पिता के चरित्र का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
लेखक उदय प्रकाश के पिता अन्तर्मुखी और ग्रामीण संवेदना के व्यक्ति हैं। उनकी मितभाषिता व गंभीरता उन्हें एक रहस्य-पुरुष की छवि प्रदान करती है। उनकी संतान कम से कम उन्हें इसी रूप में देखती है। पिता शहर से आतंकित हैं। भरसक वे शहर जाने से कतराते हैं। अपनी सहजता, गंभीरता और गँवईपन के बावजूद बच्चों के लिए वे अभ्यारण्य हैं। आधुनिकता के उपकरण सहज जीवन बोध पर किस तरह हावी हो गये हैं इसका पता ‘तिरिछ’ कहानी में मिलता है। लेखक के पिता अपने स्वभाव के अनुरूप स्वयं ही लाचार और दयनीय बन जाते हैं।

आज की जटिल जीवन की स्थितियों में सहजता कितनी खतरनाक हो सकती है लेखक के पिता इससे अनभिज्ञ हैं। अस्तित्व की रक्षा के लिए दृढ़ता आवश्यक है। लेखक के पिता की सहजता उन्हें किसी तरह के प्रतिरोध करने से रोकती है। उन्हें जब धतूरे का काढ़ा दिया जाता है तो वे उसे सहज स्वीकार कर लेते हैं। शायद यह जानते हुए भी कि धतूरा घातक नशीला पदार्थ होता है। लेखक के पिता एक प्रतीकात्मक भूमिका अदा करते हैं।

वे कहानीकार के हाथ में एक औजार के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, जिसके माध्यम से वह न्याय व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था में व्यक्त अमानवीयता को उद्घाटित करता है। लेखक के पिता नयी परस्थितियों और जीवन-मूल्यों से परिचित नहीं लगते हैं। अतः वे इससे आक्रांत होते हैं। वे मितभाषी व गंभीर तो हैं पर दृढ़ नहीं हैं। उनके स्वभाव में आक्रामकता नहीं है। शहर में उनके साथ जो कुछ भी अमानवीय व्यवहार होता है इससे उनकी दयनीयता ही प्रकट होती है।

प्रश्न 2.
तिरिछ क्या है? कहानी में यह किसका प्रतीक है?
उत्तर-
तिरिछ एक बेहद जहरीला जीव है जिसके काटने से व्यक्ति का बचना नामुमकिन हो जाता है। यह जैसे ही आदमी को काटता है, वैसे ही वहाँ से भागकर किसी जगह पेशाब करता है और उस पेशाब में लेट जाता है। अगर तिरिछ ऐसा कर दे तो आदमी बच नहीं सकता। वहीं तिरिछ काटने के लिए तभी दौड़ता है जब उससे नजर टकरा जाए। कहानी में तिरिछ मृत्यु का प्रतीक है। जिस भीषण यथार्थ के शिकार बाबूजी बनते हैं, बेटे के सपने में तिरिछ बनकर प्रकट होता है।

प्रश्न 3.
अगर तिरिछ को देखो तो उससे कभी आँख मत मिलाओ। आँख मिलते ही वह आदमी की गंध पहचान लेता है और फिर पीछे लग जाता है। फिर तो आदमी चाहे पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा ले, तिरिछ पीछे-पीछे आता है। क्या यहाँ तिरिछ केवल जानवर भर है? यदि नहीं, तो उससे आँख क्यों नहीं मिलानी चाहिए?
उत्तर-
इस पाठ में वर्णित “तिरिछ” संभवतः एक विषैला जन्तु नहीं, अपितु मानव की हिंसात्मक पाशविक प्रवृत्तियाँ प्रतीत होती हैं। यद्यपि तिरिछ एक खतरनाक विषैला जानवर होता है जिसके काटने से मनुष्य की प्रायः मृत्यु हो जाती है। किन्तु मानव की हिंसक तथा दानवी गतिविधियाँ उससे अधिक, अत्यन्त घातक तथा मर्मान्तक (असह्य) पीड़ादायी होती हैं। उससे मनुष्य घुल-घुलकर मौत के मुँह में चला जाता है। कथाकार ने तिरिछ से आँख नहीं मिलाने का परामर्श दिया है, क्योंकि तिरिछ की प्रकृति है, परस्पर आँखें मिल जाने पर वह अपने शिकार पर आक्रमण कर देता है तथा अपने विषैले दाँत उसके शरीर में गड़ा देता है।

यहाँ पर कहानीकार दुर्जन एवं तिरिछ के समान खतरनाक व्यक्तियों से आँखें नहीं मिलाने के लिए कहता है। इसका निहितार्थ यह है कि हमें ऐसे व्यक्तियों से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिए तथा उनसे किसी प्रकार का पंगा भी नहीं लेना चाहिए। उनसे दूर ही रहना चाहिए। अवांछनीय व्यक्तियों से ना तो मित्रता अच्छी होती है और ना ही शत्रुता। उनसे आँखें मिलाना श्रेयस्कर नहीं।

प्रश्न 4.
“तिरिछ’ लेखक के सपने में आया था और वह इतनी परिचित आँखों से देखता था कि लेखक अपने आपको रोक नहीं पाता था। यहाँ परिचित आँखों से क्या आशय है?
उत्तर-
“तिरिछ लेखक के सपने में आता था”-सपना मनुष्य नींद में देखता है, जाग्रतावस्था में सपने नहीं आते, कल्पनाएँ आती हैं, भाव आते हैं। कुछ सपने हमारे जीवन में घटित घटनाओं पर आधारित होते हैं तो कुछ कल्पना की उड़ान अथवा आधारहीन होते हैं। लेखक द्वारा कही गई इस उक्ति में संभवतः वैसे मानवीय चेहरों का वर्णन है जो तिरिछ की तरह ही क्रूर है। वह उसे परिचित-सा प्रतीत होता है अर्थात् वह इस प्रकार देखता है मानों वह उसकी परिचित तथा घनिष्ठ संपर्क वाला व्यक्ति है। अतः लेखक का स्वयं को नहीं रोक पाना स्वाभाविक है। लेखक को उसकी वास्तविकता का ज्ञान नहीं है, उसकी हिंसक प्रवृत्ति की जानकारी नहीं है।

परिचित आँखों का अर्थ है कि वह व्यक्ति मानो परिचित हो। यह मानवीय दुर्बलता है कि यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार आत्मीयता से देखता हो जैसे वह हमारे निकट संपर्क वाला व्यक्ति है तो स्वभावतः हम उस ओर आकर्षित हो जाते हैं। अतः, जब तिरिछ को स्वप्न में परिचित आँखों से देखता था तो लेखक उसमें अपनत्व पाता था तथा उस ओर आकृष्ट हो जाता था।

प्रश्न 5.
व्याख्या करें :
(क) वैसे, धीरे-धीरे मैंने अनुभवों से यह जान लिया था कि आवाज ही ऐसे मौके पर मेरा सबसे बड़ा अस्त्र है।
(ख) जैसे जब मेरी फीस की बात आई थी, उस समय हमारे पास आखिरी गिलास भी गुम हो गया था और सब लोग लोटे में पानी पीते थे।
(ग) आश्चर्य था कि इतने लम्बे अर्से से उसके अड्डे को इतनी अच्छी तरह से जानने के बावजूद कभी दिन में आकर मैंने उसे मारने की कोई कोशिश नहीं की थी।
(घ) मुझे यह सोचकर एक अजीब-सी राहत मिलती है और मेरी फंसती हुई साँसें फिर से ठीक हो जाती हैं कि इस समय पिताजी को कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी से ली गई है। इसके लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में विद्वान लेखक ने अपने मन की व्यथा व्यक्त की है।

कहानी में तिरिछ आतंक का पर्याय बनकर आया है। उसी के कारण लेखक के डरावने सपने आते हैं। यह आतंक शहरी आधुनिकता एवं जीवन दृष्टि का और सत्ता की निरंकुशता का। एक तरफ आतंक और यंत्रणा से उपजी बेचैनी है, तनाव और असहायता का भाव निहित है तो दूसरी ओर शहरी या कहें आधुनिक मनुष्य की संवेदनहीनता और अमानवीयता छिपी हुई है। यहीं मूल्यों का संक्रमण सर्वाधिक दृष्टिगोचर होता है। परंपरा ओर आधुनिकता अथवा पुराने और नए द्वन्द्व से जहाँ नवीन भावबोध का सृजन हुआ वहीं कुछ विकृतियों ने भी जन्म लिया।

संवेदना का क्षरण हुआ। इस क्षरण ने अजनबीपन, अकेलापन, घुटन और संत्रास जैसे भावबोध दिए। दूसरे भावबोध के कारण लेखक हमेशा डरा हुआ महसूस करता। उसे डरावने सपने आते। जब सपने में मृत्यु के करीब होता तो वह जोर-जोर से बोलने लगता और दूसरी आवाज के सहारे सपने से बाहर निकलता। इस पूरी दुनिया में उसकी आवाज ही अपनी थी जो उसे मृत्यु के मुँह में जाने स बचा लेती है।

(ख) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी से ली गई है। इसके लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में विद्वान लेखक ने अपने मन की व्यथा व्यक्त की हे।

उपर्युक्त सन्दर्भ में लेखक के घर की और अपनी जीवन की बहुत-सी समस्याओं का अंत पिताजी ही करते थे। यह उद्धरण लेखक की आर्थिक समस्याओं को उठाता है। जैसा कि हमारे समाज में होता है कि घर की सारी समस्याओं का निपटारा घर के मुखिया पिताजी द्वारा ही होता हो गर्व की बात है। परला तरह पिता ने अपने दायित्व फीस मिलना पुत्र कलर की बदहाली है।

आर्थिक कमी को ही व्यजित करती है। साथ ही गिलास के गुम होने पर लोटे में पानी पीना आर्थिक तंगी का ही बयान करता है। एक रिटायर्ड हेडमास्टर की चुप्पी उसके घर की बदहाली का ही संकेत देती है परन्तु पुनः दो-तीन दिन के बाद फीस मिलना पुत्र के लिए गर्व की बात बन जाती है। आखिर किसी तरह पिता ने अपने दायित्व का निर्वाह किया। यह दायित्व का निर्वहन ही गर्व की बात है। परन्तु लेखक द्वारा कहा गया कथन मध्यवर्गीय ग्रामीण जीवन की आर्थिक बदहाली की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करता है।

(ग) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी का एक अंश है। इस सारगर्भित कहानी के लेखक उदय प्रकाश हैं।

लेखक को सपने में तिरिछ आते रहने के कारण कहीं न कहीं उनमें भय घर कर गया था। इसी कारण इतने लम्बे अर्से से उसके अड्डे को इतनी अच्छी तरह जानने के बावजूद कभी दिन में आकर मारने की कोई कोशिश नहीं की। यह ‘आश्चर्य’ डर का प्रतिरूप था। हमारे जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जो हमारे मन में घर कर जाती हैं जिसके कारण हम हमेशा डरे से रहते हैं। यही डर हमें उससे अलगाती है। यही वजह थी कि सबकुछ जानने के बाद भी उसने मारने की कोशिश नहीं की। जब वही सपने उसे आने बंद हो गये तो उसने जाकर ‘तिरिछ’ को जलाया और अपने को विजित महसूस करने लगा।

(घ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी का एक अंश है। इस सारगर्भित कहानी के लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में लेखक अपने पिताजी के विषय में वर्णन कर रहा है। उसके पिताजी शहर में जाकर विभिन्न स्थानों पर वहाँ के लोगों (निवासियों) की हिंसक कारवाईयों के शिकार हो जाते हैं। उनको काफी चोटें आती हैं और वे मरनासन्न हो जाते हैं। उन स्थितियों में भी लेखक एक अजीब-सी राहत महसूस करता है तथा उसकी फंसती हुई सांसें सामान्य हो जाती हैं। वह ऐसा अनुभव करता है कि उसके पिताजी को अब कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा।

वह ऐसा इसलिए सोचता है कि अब उनके पिताजी को ऐसा विश्वास होने लगा होगा कि उनके साथ जो कुछ भी हुआ वह एक सपना था। उनकी नींद खुलते ही सब ठीक हो जाएगा। पुनः वह यह भी आशा व्यक्त करता है कि उसके पिताजी फर्श पर सोते हुए उसे और उसकी छोटी बहन को भी देख सकेंगे। लेखक की इस उक्ति में अजीब विरोधाभास है। लेखक के पिता बुरी तरह घायल हो गए हैं। उनकी स्थिति चिन्ताजनक हो गई है। फिर भी वह आशा करता है कि वे स्वस्थ हो जाएँगें, उन्हें कोई दर्द महसूस नहीं होगा और वे लेखक तथा उसकी छोटी बहन को फर्श पर लेटे हुए देखेंगे।

यहाँ भी लेखक के प्रतीकात्मक भाषा-शैली का प्रयोग किया है। संभवतः हिंसात्मक, भीड़ द्वारा उनके पिताजी की बेरहमी से पिटाई तथा उनका सख्त घायल होना, उनकी विपन्नता, प्रताड़ना तथा त्रासदपूर्ण स्थिति को इंगित करता है। प्रतीकात्मक भाषा द्वारा लेखक ने अपने विचारों को प्रकट किया है ऐसा अनुभव होता है। लेखक का इस क्रम में आगे चलकर यह कहना कि “और जैसे ही वे जागेंगे सब ठीक हो जाएगा या नीचे फर्श पर सोते हुए मैं और छोटी बहन दिख जाएंगे” लेखक के पिताजी एवं परिवार की सोचनीय आर्थिक दशा का सजीव वर्णन मालूम पड़ता है।।

प्रश्न 6.
तिरिछ को जलाने गए लेखक को पूरा जंगल परिचित लगता है, क्यों?
उत्तर-
लेखक को पूरा जंगल परिचित इसलिए लगता है कि इसी जगह से कई बार सपने में तिरिछ से बचने के लिए भागा था। लेखक गौर से हर तरफ देखता है कि और उसने सपने के बाद थानू को बताया भी था कि एक सँकरा-सा नाला इस जगह बहता है। नाले के ऊपर .. जहाँ बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं वहीं कीकर का एक बहुत पुराना पेड़ है, जिस पर बड़े मधुमक्खी के छत्ते हैं। लेखक को एक भूरा रंग का चट्टान मिलता है जो बरसात भर नाले के पानी में आधी डूबी रहती थी। लेखक को उसी जगह तिरिछ की लाश भी मिल जाती है। सपने में आयी बातों का सच होना लेखक को जंगल से परिचित कराता है। इसीलिए लेखक को जंगल परिचित लगता है। क्योंकि इन सब चीजों को वह सपने में देख चुका था।

प्रश्न 7.
‘इस घटना का संबंध पिताजी से है। मेरे सपने से है और शहर से भी है। शहर के प्रति जो एक जन्मजात भय होता है, उससे भी है।’ यह भय क्यों है?
उत्तर-
‘तिरिछ’ कहानी के लेखक के पिता को शहर इतना आतंकित करता है कि वे शहर जाने से बार-बार कतराते हैं, नहीं जाने के बहाने ढूँढ़ते हैं। शहर की संवेदनशीलता उसके भय का कारण है। कहानी में वर्णित शहर में जब पिता डरते-डरते शहर जाते हैं तो उनके साथ हुए अमानवीय व्यवहार से लगता है कि शहर की संवेदना मर गई है। शहर का प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थ से ओत-प्रोत है। नयी पीढ़ी अराजक एवं हिंसक हो गयी है। शहर की आत्मीयता सिमट गयी है इसलिए पिता की सहायता के लिए आगे कोई नहीं बढ़ता बल्कि उसकी स्थितियों से मुँह चुरा लेता है। आधुनिकता की यह विडम्बना शहर के भयावह रूप को रेखांकित करती है।

इस प्रकार एक ठेठ ग्रामीण संवेदना का व्यक्ति शहरी वातावरण में किस तरह से खुद को अजनबी असहाय और अकेला. महसूस करता है उपर्युक्त दृष्टांत इसका परिचय देते हैं।

प्रश्न 8.
कहानी में वर्णित ‘शहर’ के चरित्र से आप कितना सहमत हैं?
उत्तर-
कहानी में शहर का अत्यन्त सजीव तथा रोमांचकारी वर्णन किया गया है। शहरी जीवन की विसंगतियों तथा विकृतियों का भी इसमें सफल निरूपण है। शहर में आधुनिकता से उपजा द्वन्द्व भीषण और यथार्थ है।

लेखक के पिताजी सुदूर गाँव में रहते थे तथा ग्रामीण परिवेश में ही उनकी शैली है। शहर की आधुनिकता से वे कटे-से हैं, अनभिज्ञ-से हैं। यदा-कदा किसी कार्यवश वे शहर जाते हैं एवं कार्य सम्पादित होने के बाद लौट आते हैं। शहर की संस्कृति उन्हें रास नहीं आती है।

एक बार वे कचहरी के काम से शहर आते हैं। उनके साथ कठिनाई यह थी कि शहर। की सड़कों को वे भूल जाते थे। इसी क्रम में वे भटकते हुए कई स्थानों में चले जाते हैं। उस क्रम में उनके प्रति लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। उनकी गवई वेष-भूषा और चाल-ढाल से शहर के उन इलाकों के लोग उनके प्रति गलत धारणा बना लेते हैं जिनकी परिणति एक त्रासदी में होता है। उनके ऊपर अनेक प्रकार के जुल्म ढाए जाते हैं। उन्हें अपमान, तिरस्कार तथा प्रताड़ना का चूंट पीना पड़ता है।

वे सबसे पहले स्टेट बैंक की एक शाखा में जाते हैं। वहाँ के कर्मचारी उन्हें शराबी, पागल और बाद में डकैत (अपराधी) समझ बैठते हैं, तथा उनकी जमकर पिटाई करते हैं। उनके कागजात एवं रुपए-पैसे छीन लेते हैं। किसी तरह वहाँ से निकलकर वे पुलिस थाना पहुँचे। कमीज नदारत थी, पैंट फटी थी। दारोगा ने उन्हें पागल समझकर सिपाही. द्वारा घसीटवाकर थाने से बाहर करवाया।

वहाँ से वे इतवारी कॉलोनी आए, धोती भी उस समय तक उतर चुकी होती है केवल चड्डी शेष बची थी। इसके बाद इतवारी कॉलोनी तथा नेशरनल रेस्टोरेन्ट में भी उन्हें पागल या चोर-उचक्का समझा गया तथा वहाँ पत्थर मारकर मरनासन्न कर दिया गया। अन्त में सिविल लाइन्स में मोचियों की गुमटी के पास पहुंचे तथा एक मोची की गुमटी में घुस गए। वह उनके गाँव के पासवाले टोले का था। उसने उन्हें पहचान लिया। कुछ ही क्षणों में उनकी मृत्यु हो जाती है।

इस प्रकार स्टेट बैंक, पुलिस थाना, एतवारी कॉलोनी तथा नेशनल रेस्टोरेन्ट इन सभी स्थानों में जब लेखक के पिताजी जाते हैं, तो उन्हें डकैत, अपराधी, शराबी, पागल आदि समझकर उनपर निर्मम प्रहार किया गया। कपड़े फाड़ दिए गए, अथवा उतरवा लिए गए। बेरहमी से पिटाई की परिणति उनकी.दुःखद मृत्यु में हुई। अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में वे मोचियों की कॉलोनी में पहुँचते हैं। केवल वहीं कुछ सहानुभूति की झलक मिलती है।

इस प्रकार शहरी तथा ग्रामीण जीवन के बीच उपजी खाई का इसमें चित्रण है। शहर की आधुनिक संस्कृति से उपजी विकृति तथा द्वन्द्व का ज्वलन्त उदाहरण है लेखक के पिताजी की करुण-गाथा। लेखक से तिरिछ जैसे विषैले जन्तु को प्रतीक स्वरूप कहानी में प्रतिस्थापित किया है। कहानी में वर्णित शहर का चरित्र पूर्णतया उचित एवं निर्विवाद रूप से सत्य है।

प्रश्न 9.
लेखक के पिता के साथ एक दिक्कत यह भी थी कि गाँव या जंगल की पगडंडियाँ तो उन्हें याद रहती थीं, शहर की सड़कों को वे भूल जाते थे। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? आप क्या सोचते हैं? लिखें।
उत्तर-
लेखक के पिताजी का सम्पूर्ण जीवन गाँव में बीता। वह ग्रामीण जीवन शैली के अभ्यस्त थे। शहर केवल आवश्यक कार्य पड़ने पर ही आते थे तथा कार्य सम्पादित कर फौरन वापिस चले जाते थे। यह स्वाभाविक है कि जिससे हमारा लगाव रहता है, उस स्थान से हम पूर्ण परिचित हो जाते हैं तथा पूर्णतया जुड़ जाते हैं।

लेखक के पिताजी गाँव में रहते थे। स्वभावतः वे प्रकृति-प्रेमी थे। पहाड़, वन, नदी, झरना आदि प्रकृति की अमूल्य धरोहर के प्रति उनका स्वाभाविक आकर्षण था। प्रतिदिन वे पहाड़ एवं जंगल की ओर टहलने निकल जाते थे। शहर से उनका संबंध सीमित था। यदा-कदा आवश्यक कार्यवश जाते थे तथा कार्य करके फौरन वापस लौट आते थे। शहरी जीवन से भी उनका लगाव नहीं था। अतः उन्हें शहर की सड़कों की जानकारी नहीं थी तथा वे सड़कों को प्रायः भूल जाते थे।

यहाँ निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य को जो वस्तु प्रिय होती है उसकी उसे विस्तृत जानकारी रहती है। उसी प्रकार जिसके प्रति उसे कोई अभिरूचि नहीं होती उसके प्रति उत्सुकता भी नहीं होती तथा वहाँ पर वह भटक जाता है।

प्रश्न 10.
स्टेट बैंक के कैशियर अग्निहोत्री, नेपाली चौकीदार थापा, असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता, थाने के एस. एच. ओ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह के चरित्र का परिचय अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर-
कैशियर अग्निहोत्री-कैशियर अग्निहोत्री, शहर के देशबन्धु मार्ग पर स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कैशियर है। वे डरपोक चरित्र के व्यक्ति इसलिए हो गये थे कि आए दिन बैंकों में लूट-डकैती होती रहती थी। इसलिए उन्हें हर व्यक्ति लुटेरा के रूप में नजर आता था। इस बात का पता इस तरह से हो सकता है कि जिस समय लेखक के पिता कैशियर अग्निहोत्री के पास पहुँचते हैं कैशियर डर कर घंटी बजा देता है। यह कथन वर्तमान समाज में पुलिस तंत्र की कलई भी खोलता है। हर व्यक्ति अपने को असुरक्षित महसूस करता है।

नेपाली चौकीदार थापा-लेखक के पिता को चौकीदार थापा द्वारा दबोचे जाने से यही लगता है कि वह छोटा चौकीदार अपने काम के प्रति बहुत सजग है, परन्तु पिता को बिना सोचे-समझे पीटना उसकी मानसिक कमजोरी का द्योतक है। अपने काम के प्रति सजग रहने का मतलब यह नहीं है कि बिना सोचे-समझे अधिकारियों के कहने पर किसी दूसरे को जान तक ले ले। यह चौकीदार के लुच्चेपन का प्रतीक है।

असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता : मेहता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर पद पर थे। मैनेजर मेहता थोड़ी सूझ-बूझ वाले व्यक्ति नजर आते हैं, क्योंकि जब पिता को मारा-पीटा जा रहा था तब मेहता ने दरियादिली दिखाते हुए तलाशी लेकर बाहर निकाल देने को कहा।

थाने के एस. एच. ओ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह : राघवेन्द्र प्रताप सिंह शहर के थाने में एस. एच. ओ. थे। उनमें भोजन पसंदी से तो यही लगता है कि वह कडुवे चीज को नापसंद करते थे। परन्तु उनकी पत्नी द्वारा 13 साल में रहने के बावजूद पत्नी को राघवेन्द्र प्रताप सिंह के भोजन का स्वाद पता नहीं चला था। इसका अर्थ है राघवेन्द्र प्रताप विभिन्न स्वादों के आकांक्षी व्यक्ति हैं। इससे दूसरा अर्थ यह भी ध्वनित होता है कि वे अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी के साथ नहीं निभाते हैं। करेले की वजह से उनका मूड ऑफ हो जाता है। यह गैरजिम्दाराना व्यक्तित्व है।

प्रश्न 11.
लेखक के पिता अपना परिचय हमेशा, “राम स्वारथ प्रसाद ……… एक्स स्कूल हेडमास्टर ……….. एंड विलेज हेड ऑफ बकेली के रूप में देते थे, ऐसा क्यों? स्कूलऔर गाँव के बिना वे अपना परिचय क्यों नहीं देते?
उत्तर-
एक ग्रामीण संवेदना का व्यक्ति शहरी वातावरण में अपने को असुरक्षित पाता है। शहर का अजनबीपन, कुंठा, संत्रास, आधुनिकता की बौखलाहट, नयी पीढ़ी की जल्दीबाजी, शहर की संवेदनहीनता, संकुचित दृष्टि, व्यक्तिवादिता जैसे प्रवृत्तियाँ। कमोवेश व्यक्ति को अपने अस्तित्व और पहचान के लिए पद और व्यक्ति जहाँ से गुजरता है उसका परिचय देना पड़ता है। नयी पीढ़ी इतनी संवेदनहीन हो गयी है कि जल्दीबाजी के कारण पिता की कोई बात पूरी नहीं सुनता और उसके परिणाम का निर्णय ले लेती है।

अतः पिता को अपनी अस्तित्व और पहचान के लिए गाँव का परिचय देना पड़ता है। उनकी संवेदनहीनता को समझकर ही गाँव का परिचय जोर-जोर से आवाज में देते हैं। कोई उनके दुख को सुनने-समझने के प्रयास नहीं करता। यहाँ शिक्षित मध्यवर्ग एवं बौद्धिक वर्ग की स्वार्थपरता एवं उपभोक्तावादी मूल्यों के बढ़ते प्रभाव व्यक्ति की पहचान का संकेत देते हैं।

प्रश्न 12.
हालाँकि थान कहता है कि अब तो यह तय हो गया कि तिरिछ के जहर से कोई नहीं बच सकता। ठीक चौबीस घंटे बाद उसने अपना करिश्मा दिखाया और पिताजी की मृत्यु हुई। इस अवतरण का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक के दोस्त थानू को पिता की मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं होने के कारण प्रचलित विश्वास कि तिरिछ के जहर से कोई बच नहीं सकता, पुष्ट करता है। और ये जड़ीभूत मान्यताएँ पुष्ट होकर परंपरा बनती हैं। ये हमारा तब तक पीछा नहीं छोड़ती जब तक कि उससे न बचा जाए।.वे हमें समय से बहुत पीछे खींच ले जाती है। यह एक तरह से समय का समय से टकराव है। एक ही समय में दो भिन्न प्रकार के सत्य अपने अस्तित्व का आभास देते हैं। इस प्रकार ऐसी मान्यताओं से पुराने विश्वास को बल मिलता है और वे जड़ीभूत हो जाती है।

पिता को तिरिछ काटने के बाद धतूरा का काढ़ा पिलाना क्या है? पिता इस विश्वास का खंडन भी नहीं कर पाता और शहर जाने से पहले ही त्रासदी का शिकार हो जाता है। उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ हो जाता है और उन्हें पागल घोषित कर शहरी युवकों, लोगों द्वारा पीट-पीट कर मार दिया जाता है। यदि इन प्रचलित विश्वासों को न माना जाता तो शायद पिता बच सकते थे।

ठीक चौबीस घंटे बाद पिता की मृत्यु शहर की अमानवीयता और क्रूरता को प्रकट करती है। समय और समाज का अतिक्रमण व्यक्ति को मृत्यु के निकट पहुँचा देता है।

प्रश्न 13.
लेखक को अब तिरिछ का सपना नहीं आता, क्यों?
उत्तर-
लेखक उदय प्रकाश को अब तिरिछ का सपना नहीं आने का कारण लेखक को सपना सत्य प्रतीत होना था। परन्तु अब लेखक विश्वास करता है कि यह सब सपना है। अभी आँख खोलते ही सब ठीक हो जायेगा।

इससे पहले लेखक को सपने की बात प्रचलित विश्वास सपने सच हुआ करते सत्य प्रतीत होती थी। लेखक फैंटेसी में जीता था परन्तु अनुभव से यह जान गया कि सपना बस सपना भर हैं।

लेखक ने जटिल यथार्थ को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए दुःस्वप्न का प्रयोग किया है। परन्तु जैसे ही लेखक का भ्रम टूटता है तो उसे डर नहीं लगता और तिरिछ के सपने नहीं
आते।

तिरिछ भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में कौन-सा समास है
जन्मजात, भारी-भरकम, संवाददाता, बीचो-बीच, नीलकंठ, चौराहा, टेढ़ा-मेढ़ा, इधर-उधर, चुंगीनाका।
उत्तर-

  • जन्मजात – जन्म से जुड़ा हुआ-तत्पुरुष
  • भारी-भरकम – भारी और भरकम-द्वन्द्व
  • संवाददाता – संवाद का दाता-तत्पुरुष
  • बीचोबीच बीच और बीच-द्वन्द्व
  • नीलकण्ठ – कंठ है नीला जिसका-बहुब्रीहि
  • चौराहा – चार राहों का समाहार-द्विगु
  • टेढ़ा-मेढ़ा – टेढ़ा और मेढ़ा-द्वन्द्व
  • इधर-उधर – इधर या उधर-वैकल्पिक द्वन्द्व
  • चुंगीनाका – चुंगी के लिए नाका-तत्पुरुष

प्रश्न 2.
कहानी से व्यक्तिवाचक संज्ञा को चुनें।
उत्तर-
व्यक्तिवाचक संज्ञा-थापा, थपियाल साहब, एस. एच. ओ राघवेन्द्र प्रताप सिंह, अग्निहोत्री, मैनेजर मेहता।

प्रश्न 3.
कहानी के शिल्प पर अपने शिक्षक से चर्चा करें और एक संक्षिप्त टिप्पणी लिख।
उत्तर-
कहानी जिस. विशेषता के बल पर टिकी होती है उसे कहानी का शिल्प कहते हैं। इसके अन्तर्गत भाषा, शैली और संवाद आते हैं।

भाषा-कहानीकार की रचना की सारी विशेषताएँ भाषा के माध्यम से ही हमारे सामने आती है। इसलिए कहानी की संरचना का प्राण भाषा को कहा जाता है। शब्दों के द्वारा ही कथा में रोचकता, पात्रों में सजीवता और परिवेश में स्वाभाविकता आती है। रचनात्मक का भाषा पर जितना अधिक अधिकार होगा, उसकी रचना उतनी ही उत्कृष्ट होगी।

शैली-कहानी चाहे घटनाप्रधान हो या चरित्र प्रधान, उसकी विषयवस्तु ऐतिहासिक हो या समकालीन, चाहे वह जिस दृष्टि या उद्देश्य से लिखी गयी हो, प्रत्येक कहानीकार का लिखने का अपना अंदाज होता और कहानीकार इसी कारण विशिष्ट होता है। कहानी लिखने की कई शैलियाँ प्रचलित हैं। घटनाप्रधान कहानियाँ प्रायः वर्णात्मक शैली में लिखी जाती हैं जिसमें लेखक घटनाओं का वर्णन करता है। चरित्रप्रधान कहानियों में लेखक मनोविश्लेषणात्मक का प्रयोग करता है और पात्रों के अंतर्द्वन्द्व को प्रस्तुत करता है। कथानक आवश्यकतानुसार आत्मकथात्मक शैली का पूर्वदीप्ति शैली, फंतासी शैली, भी प्रयोग करता है।

संवाद-कहानी के विभिन्न पात्र आपस में बातचीत करते हैं, उन्हें ही हम संवाद कहते हैं। संवादों से कहानी आगे बढ़ती है। विभिन्न पात्रों के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है। संवाद के द्वारा कथनी में नाटकीयता लायी जा सकती है और लम्बे चौड़े वर्णन से बचा जा सकता है। ‘तिरिछ’ कहानी आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है। इसमें जादुई यथार्थवाद का प्रयोग किया गया है जो एक पद्धति भी है और शिल्प का नया प्रयोग भी। मिथकों, विश्वासों, धारणाओं और मान्यताओं का सहारा लेकर एक रचनाकार यथार्थ को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है। आज के जटिल यथार्थ को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए जादुई यथार्थवाद का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
नीचे लिखे वाक्यों से संज्ञा एवं सर्वनाम चुनें
(क) लेकिन बहुत जल्द हमें वह नाला मिल गया।
(ख) तिरिछ उसमें जल रहा था।
(ग) मेरा अनुमान है कि उस समय पिताजी को बहुत प्यास लगी होगी।
(घ) उसने घंटी भी बजा दी।
उत्तर-
संज्ञा-नाला, तिरिछ, घंटी, पिताजी।
सर्वनाम-प्यास, वह, हमें, उसने, मेरा।

तिरिछ लेखक परिचय उदय प्रकाश (1952)

जीवन-परिचय-
समसामयिक हिन्दी लेखन में अग्रणी एवं महत्वपूर्ण लेखक उदय प्रकाश का जन्म 1 जनवारी, 1952 के दिन अनूपपुर, मध्यप्रदेश में स्थित सीतापुर नामक स्थान पर हुआ। इनकी माता का नाम गंगा देवी और पिता का नाम प्रेम कुमार सिंह था। इन्होंने बी.एस-सी. करने के उपरांत सागर विश्वविद्यालय, सागर मध्यप्रदेश से हिन्दी में एम.ए. किया। इन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के भारतीय भाषा विभाग में कुछ समय तक अध्यापन भी किया। इसके बाद मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग में विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे।

इन्होंने ‘दिनमान’ के संपादन विभाग में भी कार्य किया। नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले ‘संडेमेल’ में सहायक संपादक भी रहे। वहीं प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के टेलीविजन विभाग में विचार और पटकथा प्रमुख भी रहे। साथ ही इन्होंने टाइम्स रिसर्च फाउंडेशन में पत्रकारिता का अध्यापन भी किया। उदय प्रकाश जी निरंतर स्वतंत्र लेखन, फिल्म निर्माण और अखबारों तथा फिल्मों के लिए लेखन में रत हैं। पिछले दो दशकों में समसामयिक हिन्दी लेखन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे निरंतर लेखन कार्य में रत हैं।

रचनाएँ-उदय प्रकाश जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
कहानी-दरियाई घोड़ा, तिरिछ और अंत में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरी वाली लड़की, दत्तात्रेय के दुख, अरेबा-परेबा, मोहनदास, मेंगोसिल आदि।
कविता संग्रह-सुनो कारीगर, अबूतर-कबूतर, रात में हारमोनियम आदि। निबंध-आलोचना-ईश्वर की आँख।
अनुवाद-कला-अनुभव, इन्दिरा गाँधी की आखिरी लड़ाई, लाल घास पर नीले घोड़े, रोम्याँ का भारत।
फिल्म-टी.वी.-इन्होंने अनेक धारावाहिकों तथा फिल्मों के स्क्रिप्ट लिखे हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ-उदय प्रकाश जी ने अपने विषय-चयन, सीधी-सादी भाषा, ताजगी भरे मुहावरों और अनौपचारिक संवेदना के कारण पाठकों को आकृष्ट किया। कविता, कहानी, निबन्ध, लेख-टिप्पणियाँ, आलोचना और टेलीविजन फिल्म आदि के लिए लेखन के तमाम क्षेत्रों में इन्होंने नवीन प्रयोग किए। पिछले बीस वर्षों की श्रेष्ठ हिन्दी कहानियों में आधी से ज्यादा इन्हीं की होंगी। इनका साहित्य तथ्य और कथ्य का विपुल विस्तार लिए है।

तिरिछ पाठ के सारांश

‘तिरिछ’ कहानी का कथानक लेखक के पिताजी से सम्बन्धित है। इसका संबंध लेखक के सपने से भी है। इसके अतिरिक्त, कहानी में शहर के प्रति जो जन्मजात भय होता है उसकी विवेचना भी इस कहानी में की गई है। गाँव एवं शहर की जीवन-शैली का इसमें तुलनात्मक अध्ययन अत्यन्त सफलतापूर्वक किया गया है। गाँव की सादगी तथा शहर का कृत्रिम आचरण इसमें प्रतिबिम्बित होता है।

लेखक के पिताजी जो पचपन साल के वयोवृद्ध व्यक्ति हैं, उनकी विशिष्ट जीवन शैली है। वह मितभाषी हैं। उनका कम बोलना, हमेशा मुँह में तम्बाकू का भरा रहना भी है। बच्चे उनका आदर करते थे तथा उनकी कम बोलने की आदत के कारण सहमे भी रहते थे। घर की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं थी।

एक दिन शाम को जब वे टहलने निकले तो एक विषैले जन्तु तिरिछ ने उन्हें काट लिया। उसका विष साँप की तरह जहरीला तथा प्राणघातक होता है। रात में झाड़-फूंक तथा इलाज चला दूसरे दिन सुबह उन्हें शहर की कचहरी में मुकदमे की तारीख के क्रम में जाना था। घर से वे गाँव के ही ट्रैक्टर पर सवार होकर शहर को रवाना हुए। तिरिछ द्वारा काटे जाने की घटना का वर्णन ट्रैक्टर पर सवार अन्य लोगों से करते हैं। ट्रैक्टर पर सवार उनके सहयात्री पं. रामऔतार ज्योतिषी के अलावा वैद्य भी थे। उन्होंने रास्ते में ट्रैक्टर रोककर उनका उपचार किया। धतूरे की बीज को पीसकर उबालकर काढ़ा बनाकर उन्हें पिलाया गया। ट्रैक्टर आगे बढ़ा तथा शहर पहुँचकर लेखक के पिताजी ट्रैक्टर से उतरकर कचहरी के लिए रवाना हुए।

यह समाचार पं. रामऔतार ने गाँव आकर बताया, क्योंकि वे (लेखक के बाबूजी) शाम को घर नहीं लौटे थे, विभिन्न स्रोतों से उनके विषय में निम्नांकित जानकारी प्राप्त हुई। ट्रैक्टर से उतरते समय उनके सिर में चक्कर आ रहा था तथा कंउ सूख रहा था। गाँव के मास्टर नंदलाल, जो उनके साथ थे, उन्होंने बताया। इस बीच वे स्टेट बैंक की देशबन्धु मार्ग स्थित शाखा, सर्किट हाउस के निकट वाले थाने में क्रमशः गए। उक्त स्थानों ने उन्हें अपराधी पवृत्ति तथा असामाजिक तत्व समझकर काफी पिटाई की गई और वे लहू-लुहान हो गए। अंत में वे इतवारी कॉलोनी गए।

वहाँ उनको कहते सुना गया, “मैं राम स्वारथ प्रसाद, एक्स स्कूल हेडमास्टर एंड विलेज हेड ऑफ….. ग्राम बकेली …।” किन्तु वहाँ उन्हें पागल समझकर कॉलोनी के छोटे-बड़े लड़कों ने उनपर पत्थर बरसाकर रही-सही कसर निकाल दी। उनका सारा शरीर लहू-लुहान हो गया। घिसते-पिटते लगभग शाम छ: बजे सिविल लाइन्स की सड़क की पटरियों पर बनी मोचियों की दुकान में से गणेशवा मोची की दुकान के अन्दर चले गए। गणेसवा मोची उनके बगल के गाँव का रहनेवाला था। उसने उन्हें पहचाना। कुछ ही देर में उनकी मृत्यु हो गई।

इस प्रकार इस कहानी के द्वारा लेखक ने सांकेतिक भाषा शैली में आधुनिक शहरों में विकृतियों एवं विसंगतियों पर कटाक्ष किया है। दूषित मानसिकता से ग्रसित शहरी जीवन-शैली “तिरिछ” की तरह भयानक तथा विषैली हो गयी है। वास्तविकता की तह में गए बगैर हम दरिन्दगी तथा अमानवीय कृत्यों पर उतर आते हैं।

लेखक का मन्तव्य (उद्देश्य) निम्नांकित पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है, “इस समय पिताजी को कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा, क्योंकि वे अच्छी तरह से पूरी तार्किकता और गहराई के साथ विश्वास करने लग गए होंगे कि यह सब सपना है और जैसे ही वे जागेंगे, सब कुछ ठीक हो जाएगा।” लेखक पुनः कहता है-“इसके पीछे पहली वजह तो यही थी कि उन्हें यह बहुत अच्छी तरह से पता था कि वे ठेले सपने के भीतर जा रहे हैं और इससे किसी को कोई चोट नहीं आएगी।” इससे (इन पंक्तियों से) कहानी में लेखक का संदेश स्पष्ट परिलक्षित होता है।

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