Chapter 1 – भवान्यष्टकम्ज

भवान्यष्टकम्ज

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥1॥

   अर्थ- हे भवानी। इस संसार में मेरा न तो पिता है, न माता है, न कोई भाई है और न ही दाता है, न बेटा है, न बेटी है, न नौकर है, न पालन-पोषण करनेवाला है, न पत्नी है, न विद्या (ज्ञान) है और न कोई पेशा (व्यवसाय) ही है। अर्थात् संसार में एकमात्र तुम्हीं मेरा सहारा हो।

भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहम् । गतिस्त्वं ॥2॥

अर्थ- मैं सांसारिक विषय-वासनाओं में डूबा अपार दुःख से पीड़ित हूँ। मैं अति नीच, अति कामी, महान लोभी, अति घमंडी हूँ। इस कारण मैं हमेशा सांसारिक बंधनों से जकड़ा हुआ रहता हूँ। हे जगदम्बा ! तुम ही मेरा सहारा हो। तुम्ही हमें संसार रूपी सगार से पार कर सकती हो।

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम् । गतिस्त्वं॥3॥

               अर्थ- हे भवानी ! मैं किसी को दान देना नहीं जानता हूँ और न ही ध्यान-योग का ज्ञान है। तन्त्र-मंत्र पूजा-पाठ भी नहीं जानता हूँ। इतना ही नहीं, तुम्हारी पूजा-अर्चना की विधि नहीं जानता हूँ तथा आसन-प्राणायाम भी नहीं जानता हूँ कि इसके माध्यम से तुम्हें पा सकूँ। इसलिए एकमात्र तुम्हीं मेरा सहारा हो।

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातः गतिस्त्वं ।।4।

               अर्थ- हे भवानी ! मैं पुण्य तथा तीर्थ-व्रत करना नहीं जानता हूँ। मुझे मोक्ष प्राप्ति की विधि का ज्ञान नहीं है। स्वर में इतनी मधुरता नहीं है कि मै अपने स्वर से तुम्हें खुश कर सकूँ। साथ ही, भक्ति-भाव का भी ज्ञान नहीं है। इसलिए, हे माँ! तुम्हीं मेरा सहारा हो।

कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कलाचारहीनः ।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम् । गतिस्त्वं ॥5॥

               अर्थ- हे माते ! मैं कुकर्मी, बुरे लोगों के साथ रहनेवाला, कुविचारी, कृतघ्न (अपने साथ हुआ उपकार न मानने वाला), अनुशासनहीन, बुरा कर्म करने वाला, ईर्ष्यालु तथा हमेशा कुवचन बोलने वाला हूँ। इसलिए हे माँ ! तुम्हीं इन दुष्कर्मो से मुझे छुटकारा दिला सकती हो । तुम्हारे सिवाय मेरा कोई सहारा नहीं है।

प्रजेशं रमेशं महेशः सुरेशः
दिनेशः निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये । गतिस्त्वं ॥6॥

               अर्थ- हे जगदम्बे! मैं प्रजा के स्वामी ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र, सूर्य तथा चन्द्रमा आदि किसी दूसरे को नहीं जानता। मैं तो सिर्फ तुम पर आश्रित हूँ कि तुम्हीं मुझे इस भवसागर से उद्धार कर सकती हो। इसलिए, हे माँ! तुम्हीं मेरा सहारा हो।

हिन्दी में वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि किससे प्रार्थना करता है?
(A) दुर्गा
(B) लक्ष्मी
(C) सरस्वती
(D) कोई नहीं
उत्तर :
(A) दुर्गा

प्रश्न 2.
कवि किसको अपना मानता है?
(A) माता
(B) दुर्गा
(C) पत्नी
(D) पुत्र
उत्तर :
(B) दुर्गा

प्रश्न 3.
सभी की गति को कौन जानता है?
(A) सरस्वती
(B) लक्ष्मी
(C) दुर्गा
(D) कोई नहीं
उत्तर :
(C) दुर्गा

प्रश्न 4.
ईश्वर का एक नाम लिखिए
(A) दीपक
(B) महेश
(C) सोहन
(D) कोई नहीं
उत्तर :
(B) महेश

प्रश्न 5.
भवान्ष्टकम् पाठ में किसका वर्णन है ?
(A) दुर्गा
(B) लक्ष्मी
(C) सरस्वती
(D) कोई नहीं
उत्तर :
(A) दुर्गा

प्रश्न 6.
दुख से कौन ग्रसित है?
(A) छात्र
(B) शिक्षक
(C) कर्मचारी
(D) भक्त
उत्तर :
(D) भक्त

प्रश्न 7.
भक्त किसके शरण में है?
(A) दुर्गा
(B) लक्ष्मी
(C) सरस्वती
(D) कोई नहीं
उत्तर :
(A) दुर्गा

प्रश्न 8.
भवानी क्या है?
(A) गति
(B) मति
(C) भक्ति
(D) व्रती
उत्तर :
(A) गति

संस्कृत में वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सर्वेषां गतिः का अस्ति?
(A) शिवानी
(B) महारानी
(C) देवयानी
(D) भवानी
उत्तर :
(D) भवानी

प्रश्न 2.
महादुःखभीरूः कः अस्ति?
(A) भक्तः
(B) आसक्तः
(C) सन्तः
(D) महन्तः
उत्तर :
(A) भक्तः

प्रश्न 3.
‘भवान्यष्टकम्’ पाठे क्रस्याः वर्णनम् अस्ति?
(A) गुर्गायाः
(B) शिवायाः
(C) ईश्वरस्य
(D) भवान्याः
उत्तर :
(D) भवान्याः

प्रश्न 4.
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका ………।
(A) भर्ता
(B) भवानि
(C) विद्या
(D) दाता
उत्तर :
(B) भवानि

प्रश्न 5.
ईश्वरस्य एकः नाम ……………..।
(A) भृत्यः
(B) प्रबद्धः
(C) अन्यत्
(D) महेशः
उत्तर :
(D) महेशः

प्रश्न 6.
भक्तः कस्याः शरण्ये अस्ति?
(A) भृत्यः
(B) प्रबुद्धः
(C) भवान्याः
(D) अन्यत्
उत्तर :
(C) भवान्याः

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