Chapter 3 – जीव जनन कैसे करते हैं

जीव जनन कैसे करते हैं

जीव जिस प्रक्रम द्वारा अपनी संख्या में वृद्धि करते है, उसे जनन कहते हैं।

जनन के प्रकार- जीवों में जनन मुख्यातः दो तरीके से संपन्न होता है– लैंगिक जनन तथा अलैंगिक जनन

अलैंगिक जनन

अलैंगिक जनन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है-
1. इसमें जीवों का सिर्फ एक व्यष्टि भाग लेता है।
2. इसमें युग्मक अर्थात शुक्राणु और अंडाणु कोई भाग नहीं लेते हैं।
3. इस प्रकार के जनन में या तो समसूत्री कोशिका विभाजन या असमसूत्री कोशिका विभाजन होता है।
4. अलैंगिक जनन के बाद जो संताने पैदा होती है वे आनुवंशिक गुणों में ठीक जनकों के समान होते हैं।
5. इस प्रकार के जनन से ज्यादा संख्या में एवं जल्दी से जीव संतानों की उत्पत्ति कर सकते हैं।
6. इसमें निषेचन की जरुरत नहीं पड़ती है।

जीवों में अलैंगिक जनन निम्नांकित कई विधियों से संपन्न होता है।

1. विखंडन- विखंडन के द्वारा ही मुख्य रूप से एक कोशिकीय जीव जनन करते हैं। जैसे- जीवाणु,अमीबा,पैरामीशियम, एक कोशिकीय शैवाल, युग्लीना आदि सामान्यतः विखंडन की क्रिया द्वारा ही जनन करते हैं।

विखंडन की क्रिया दो प्रकार से संपन्न होती है
1. द्विखंडन एवं
2. बहुखंडन

(क) द्विखंडन या द्विविभाजन- वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि से खंडित होकर दो या अधिक का निर्माण होता हो, उसे द्विखंडन या द्विविभाजन कहते हैं।
जैसे- जीवाणु, पैरामीशियम, अमीबा, यीस्ट, यूग्लीना आदि में द्विखंडन विधि से जनन होता है।

(ख) बहुखंडन या बहुविभाजन- वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि खंडित होकर अनेक व्यष्टियों की उत्पत्ति करता हो, उसे बहुखंडन या बहुविभाजन कहते हैं।
जैसे- अमीबा, प्लैज्मोडियम (मलेरिया परजीवी) आदि में बहुखंडन विधि से जनन होता है।

2. मुकुलन- मुकुलन एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जो जनक के शरीर से कलिका फुंटने या प्रवर्ध निकलने के फलस्वरूप संपन्न होता है। जैसे- यीस्ट

3. अपखंडन या पुनर्जनन- इस प्रकार के जनन में जीवों का शरीर किसी कारण से दो या अधिक टुकड़ों में खंडित हो जाता है तथा प्रत्येक खंड अपने खोए हुए भागों का विकास कर पूर्ण विकसित नए जीव में परिवर्तित हो जाता है। जैसे- स्पाइरोगाइरा, प्लेनेरिया आदि में जनन अपखंडन विधि से होता है।

4. बीजाणुजनन- इस प्रकार के जनन में सामान्यतः सूक्ष्म थैली जैसी बीजाणुधानियों का निमार्ण होता है। हवा के द्वारा इनका प्रकीर्णन दूर-दूर तक होता है। अनुकूल जगह मिलने पर बीजाणु अंकुरित होते हैं तथा उनके भीतर की कोशिकीय रचनाएँ बाहर निकलकर वृ़द्धि‍ करने लगती है। जब ये विकसित होकर परिपक्व हो जाती है तो इनमें पुनः जनन करने की क्षमता पैदा हो जाती है। जैसे- राइजोपस में बीजाणुजनन होता है।

पौधों मे कायिक प्रवर्धन

जनन की वह प्रक्रिया जिसमें पादप शरीर का कोई कायिक या वर्धी भाग जैसे जड़, तना, पत्ता आदि उससे विलग और परिवर्द्धित होकर नए पौधे का निर्माण करता है, उसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।

लैंगिक जनन- जनन की वह विधि जिसमें नर और मादा भाग लेते हैं, उसे लैंगिक जनन कहते हैं।

लिंग के आधार पर जीवों को दो वर्गों मे बाँटा गया है-
1. एकलिंगी और 2. द्विलिंगी

2. एकलिंगी- वे जीवजिनमें नर और मादा लिंग अलग-अलग जीवों में पाया जाता है, उसे एकलिंगी कहते हैं। जैसे- पपीता, तरबूज, मनुष्य, घोड़ा, बंदर, कबूतर आदि।

3. द्विलिंगी- वे जीव जिसमें नर और मादा लिंग एक ही व्यष्टि में होता है, उसे द्विलिंगी कहते हैं। जैसे-सरसों, केंचुआ, हाइड्रा आदि।

पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन

लैंगिक जनन के लिए पुष्पी पौधों में फूल ही वास्तविक जनन भाग है। पौधों के पुष्पों में ही जनन अंग उपस्थित होते हैं।

फूल जिस तने से जुड़ा रहता है, वह वृंत कहलाता है। वृंत का ऊपरी फैला हुआ भाग पुष्पासन कहलाता है, जिस पर संपूर्ण पुष्प टिका रहता है।

पुष्प के चार भाग होते हैं-

1. बाह्य दल पुंज, 2. दलपुंज, 3. पुमंग और 4. जायांग

2. बाह्य दल पुंज- पुष्प का सबसे बाहरी भाग होता है। इसका रंग हरा होता है।

3. दलपुंज- बाह्य दल पुंज का ऊपरी भाग होता है। यह रंगीन होता है।

4. पुमंग- यह पुष्प का नर भाग है। इनमें लंबी-लंबी रचनाएँ पाई जाती है, जिसे पुंकेसर कहते हैं।

पुंकेसर के दो भाग होत हैं-

1. तंतु- यह लचीला, पतला, लंबा तथा डोरे के समान होता है और पुष्पासन से जुड़ा होता है।

2. परागकोश- तंतु के अग्रभाग परागकोश कहलाता है। इसके अंदर परागकण होते हैं, जो निषेचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

3. जायांग- यह पौधों का मादा भाग है। यह कई स्त्रीकेसर से मिलकर बना होता है। स्त्रीकेसर अंडाशय, वर्तिका और वर्तिकाग्र में बँटे होते हैं।

निषेचन- नर युग्मक और मादा युग्मक के संगलन को निषेचन कहा जाता हैं।

मनुष्य का प्रजनन अंग- मानव जननांग साधारणतः लगभग 12 वर्ष की आयु मे परिपक्व एवं क्रियाशिल होने लगते हैं। इस अवस्था में बालक-बालिकाओं के शरीर में कुछ परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता हैं। यह अवस्था किशोरावस्था कहलाता हैं।

लैंगिक जनन संचारित रोग- यौन संबंध से होनेवाले संक्रामक रोग को लैंगिक जनन संचारित रोग कहते हैं।

बैक्टीरिया-जनित रोग- गोनोरिया, सिफलिस, यूरेथ्राइटिस तथा सर्विसाइटिस आदि।

वाइरस-जनित रोग- सर्विक्स कैंसर, हर्पिस तथा एड्स आदि।

प्रोटोजोआ-जनित रोग-स्त्रियों के मूत्रजनन नलिकाओं में एक प्रकार के प्रोटोजोआ के संक्रमन से होने वाले रोग ट्राइकोमोनिएसिस है।

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य—

  • मुकुलन द्वारा प्रजनन यीस्ट में होता है।
  • पूष्पी पौधे में लैंगिक जनन फूलों द्वारा होता है।
  • द्विखण्डन विधि द्वारा जनन अमीबा में होता है।
  • पुष्प में परागकरण पुंकेसर में बनते हैं।
  • पुष्प के अंडाश्य भाग से फल बनता है।
  • हाइड्रा में अलैंगिक जनन मुकुलन विधि द्वारा होता है।
  • पुष्प का नर जननांग पुंकेसर कहलाता है।
  • पपीता एकलिंगी पुष्प है।
  • पुनरुद्भवन का उदाहरण हाइड्रा है।
  • परागकोश में परागकण होते हैं।
  • हाइड्रा में प्रजनन मुकुलन विधि द्वारा होता है।
  • पौधे में जनन अंग पुष्प में पाए जाते हैं।
  • यीस्ट में द्विखण्डन नहीं होता है।
  • परागकण, परागकोष के अंदर होता है।
  • अंडाणु अंडाशय में निषेचित होता है।
  • शुक्रवाहिका मादा को जनन तंत्र नहीं है।
  • शुक्राणु का निर्माण वृषण में होता है।
  • स्त्रियों में लिंग गुणसुत्र का युग्म ग्ग् और पुरूष में लिंग गुणसुत्र का युग्म ग्ल् होता है।
  • केंचुआ एक उभयलिंगी जन्तु है।
  • अंडाणु अंडाशय में निषेचित होता है।
  • हाइड्रा में प्रजनन मुकुलन विधि से होता है।
  • अमीबा में अलैंगिक जनन विखंडन विधि से होता है।
  • सिफलिस, एड्स और गोनोरिया जनन संचारित रोग है।
  • गोनोरिया और सिफलिस जीवाणु जनित रोग है।
  • मस्सा जीवाणु जनित रोग है।
  • डेंगू उत्पन्न करने वाले मच्छर साफ जल में रहते हैं।
  • प्लैज्मोडियम मलेरिया परजीवी रोग है।
  • आयोडीन की कमी से घेघा रोग होता है।

Subjective Questions—

प्रश्‍न 1. कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर – ऐसे बहुत-से पौधे हैं, जिनमें कुछ भाग जैसे जड़, तना तथा पत्तियाँ उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित होकर नया पौधा उत्पन्न करते हैं। कलम अथवा रोपण जैसी कायिक प्रवर्धन की तकनीक का उपयोग कृषि में भी किया जाता है। जैसे – गुलाब, गन्ना अथवा अंगूर।

प्रश्‍न 2. परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर—परागण क्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें पुष्प के परागकणों के परागकोश से वर्तिकाग्र तक पहुँचता है। इसमें किसी प्रकार की दो कोशिकाओं में संलयन नहीं होता है। निषेचन में नर और मादा युग्मकों का संलयन होता है। युग्मनज का निर्माण होता है। यह परागण के बाद होता है।

प्रश्‍न 3. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उत्तर—निषेचन के पश्चात निषेचित अण्डा तथा युग्मनज गर्भाशय में स्थापित हो जाता है तथा विभाजित होने लगता है। भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है। इसके लिए एक विशेष संरचना होती है, जिसे प्लेसेंटा कहते हैं। यह एक तश्तरीनुमा संरचना है, जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर के ऊतकों में प्रवर्ध होते हैं। माँ के ऊतकों में रिक्त स्थान होते हैं, जो प्रवर्ध को आच्छादित करते हैं। यह माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों के स्थानान्तरण हेतु एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करते हैं।

प्रश्‍न 4. मानव में वृषण के क्या कार्य हैं ?
उत्तर—नर मानव में अण्डाकार आकृति वाला एक बाह्य अंग है, जिसमें एक जोड़ी वृषण उदर गुहा के बाहर छोटे अण्डाकार मांसल संरचना होते हैं। यह वृषण कोश कहलाता है। वृषण में शुक्राणु तथा टेस्टोस्टेरॉन की उत्पत्ति होती है। शुक्राणु बनने के लिए वृषणकोश ताप को नियंत्रित करता है।

प्रश्‍न 5. पुनर्जनन क्‍या होता है?
अथवापुनरूद् भवन (पुनर्जनन ) किसे कहते हैं ? प्‍लेनेरिया में पुनरूद् भवन की क्रिया चित्र द्वारा प्रस्‍तुत करें।
उत्तर—

शरीर के किसी कटे हुए भाग से नए जीव का निर्माण पुनरूद् भवन या पुनर्जनन कहलाता है। चित्र प्‍लै‍नेरिया में पुनरूद्भवन को दर्शाता है। इसके अंतर्गत प्‍लैनेरिया के चाहे जितने टुकडे हो जायें प्रत्‍येक टुकडा स्‍वतंत्र प्लैनेरिया के रूप में विकसित होता है।

प्रश्‍न 6. पराग‍ण किसे कहते हैं ? परागण पर वर्षा होने का क्‍या प्रभाव पडता हैं ?
उत्तर—पुंकेसर के परागकोश से स्‍त्रीकेसर के वर्तिकाग्र पर परागकणों के स्‍थानांतरण को परागण कहते हैं।

परागकणों का यह स्‍थानांतरण जब एक ही फूल के अथवा एक ही पौधे के दो फूल के बीच होता है तब इसे स्‍वपरागण कहते हैं।

स्‍वपरागण करने वाले फूल अधिकतर सफेद होते हैं। जब परागण क्रिया एक ही जाति के दो अलग-अलग पौधों के फूलों के बीच सम्‍पन्‍न होती है तब इसे पर-परागण कहते हैं।

पर-परागण करने वाले फूल रंगीन तथा चमकदार होते हैं। पर-परागण में परागकणों का स्‍थानांतरण, कीट द्वारा और पानी द्वारा होता है। परगण के फलस्‍वरूप बीज और फल बनते हैं।

वर्षा होने पर पर-परागण की क्रिया मंद हो जाती है।

प्रश्‍न 7. कायिक प्रवर्धन को परिभाषित करें।
उत्तर—जब पौधों के किसी भी अंग से नया पौधा तैयार हो, तो उसे कायिक प्रवर्धन क‍हते हैं।

प्रश्‍न 8. परागण किसे कहतें हैं ? स्‍वपरागण तथा परपरागण में क्‍या अंतर हैं ? कोई चार अंतर लिखें।
उत्तर—परागकोष से परागकण के स्‍त्रीकेसर में स्‍थानांतरण को परागण कहते हैं।

स्‍वपरागणपरपरागण
1. परागकण उसी फूल के या उसी पौधे के दूसरे फूल के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं।
2. परागकणों के नष्‍ट होने की सम्भावना कम होती है।
3. इस क्रिया से उत्‍पन्‍न बीज अधिक स्‍वस्थ नहीं होते।
4. इस क्रिया से नई जातियाँ उत्‍पन्‍न नहीं होतीं।
1. परागकण किसी दूसरे पौधे के फूल के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं।
2. परागकणों के नष्‍ट होने की सम्‍भावना अधिक होती है।
3. इस क्रिया से उत्‍पन्‍न बीज अधिक स्‍वस्‍थ होते हैं।
4. इस क्रिया से नई जातियाँ उत्‍पन्‍न होती है।

प्रश्‍न 9. एककोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन-पद्धति में क्‍या अंतर है ?
उत्तर—एक कोशिक प्राय: विखंडन, मुकुलन, पुनरूद्-भवन, बहुखंडन आदि विधियों से जनन करते हैं। उनमें केवल एक ही कोशिका होती है। वे सरलता से कोशिका विभाजन के द्वारा तेजी से जनन कर सकते हैं। बहुकोशिक जीवों में जनन क्रिया जटिल होती है और वह मुख्‍य रूप से लैंगिक जनन क्रिया ही होती है।

प्रश्‍न 10. नर-जनन तथा मादा-जनन हॉर्मोनों के नाम तथा कार्य लिखें।
उत्तर—नर-जनन हॉर्मोन के नाम – टेस्‍टोस्‍टेरॉन

टेस्‍टोस्‍टेरॉन के कार्य – शुक्राणुओं का निर्माण

मादा-जनन हॉर्मोन के नाम – एस्‍ट्रोजन एवं प्रोजेस्‍टरॉन

एस्‍ट्रोजन के कार्य – द्वितीय लैंगिक लक्षणों का विकास एवं जनन शक्ति का विकास

प्रोजेस्‍टरॉन के कार्य – भ्रूण के विकास में सहायक, भ्रूण के पोषण में सहायक ।

प्रश्‍न 11. एक-लिंगी और द्विलिंगी जीव की परिभाषा एक-एक उदाहरण के साथ दिजिए।
उत्तर—एकलिंगी जीव— जिस जीव में नर और मादा अलग-अलग होते हैं उसे एकलिंगी जीव कहते हैं। उदाहरण-मनुष्‍य

द्विलिंगी जीव—जिस जीव में नर और मादा दोनों उपस्थित होते है उसे द्विलिंगी जीव कहते हैं। उदारण-केंचुआ1

प्रश्‍न 12. लैंगिक तथा अलैंगिक जनन में कोई पाँच अन्‍तर लिखें।
उत्तर—

लैंगिक जननअलैंगिक जनन
1. लैंगिक जनन में नर और मादा दोनों की अवश्‍यकता पड़ती है।
2. उच्‍च स्‍तर के प्राणियों में ही इस प्रकार का जनन होता है।
3. लैंगिक जनन में निषेचन क्रिया के बाद जीवों का निर्माण होता है।
4. इस जनन द्वारा उत्‍पन्‍न संतान में नये-नये गुण विकसित हो सकते हैं।
5.‍ लैंगिक जनन में बीजाणु उत्‍पन्‍न नहीं होते हैं।
1. अलैंगिक जनन में नर तथा मादा दोनों की आवश्‍कता नहीं पडती है।
2. यह निम्‍न श्रेणी के जीवों में होता है।
3. अलैंगिक जनन में निषेचन क्रिया नहीं होती  है।
4. इस विधि द्वारा उत्‍पन्‍न संतान में नये गुण नहीं आ सकते  हैं।
5. इस क्रिया में एक कोशिकीय बीजाणु उत्‍पन्‍न हो सकते हैं।

प्रश्‍न 13. परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्‍न है ?
उत्तर—

परागणनिषेचन
1. वह क्रिया जिसमें परागकण स्‍त्री-केसर के वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं, परागण कहलाती    है।
2. यह जनन क्रिया का प्रथम चरण है।
3. परागण क्रिया दो प्रकार की होती है- स्‍व-परागण और पर-परागण।
1. वह क्रिया जिसमें नर युग्‍मक और मादा युग्‍मक मिलकर युग्‍मनज बनाते हैं, निषेचन कहलाती है।
2. यह जनन क्रिया का दूसरा चरण है।
3. निषेचन क्रिया भी दो प्रकार की होती है- बाह्रा निषेचन एवं आंतरिक निषेचन।

प्रश्‍न 14. यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन-से परिवर्तण दिखाई देते हैं ?
उत्तर—यौवनारंभ के समय लड़कियों में निम्‍न परिवर्तन दिखाई देते हैं—

(i) शरीर के कुछ नए भागों, जैसे- काँख और जाँघों के मध्‍य जननांगी क्षेत्र में बाल गुच्‍छ निकल आते हैं।
(ii) हाथ, पैर पर महीन रोम आ जाते हैं।
(iii) त्‍वचा तैलीय हो जाती है। कभी-कभी मुहाँसे निकल आते हैं।
(iv) वक्ष के आकार में वृद्धि होने लगती है।
(v) स्‍तनाग्र की त्‍वचा का रंग गहरा होने लगता है।
(vi) रजोधर्म होने लगता है।

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