Chapter 7 – प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन

प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन

हमारे चारों ओर की भूमि, जल और वायु से मिलकर बना यह पर्यावरण, हमें प्रकृति से विरासत में मिला है जिसे सहेज कर रखना हम सबों का दायित्व है। अनेक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय नियम व कानून पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए बने हैं। अनेक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ भी हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने में कार्यरत हैं। जैसे- क्योटो प्रोटोकॉल तथा उत्सर्जन मानदंड

क्योटो प्रोटोकॉल- 1997 में जापान के क्योटो शहर में भूमंडलीय ताप वृद्धि रोकने के लिए एक अंतराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में विश्व के 141 देशों ने भाग लिया। इस क्योटो प्रोटोकॉल के अनुसार सभी औद्योगिक देशों को 2008 से 2012 तक के पाँच वर्षों की अवधि में 6 प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के स्तर में 1990 के स्तर से कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

उत्सर्जन संबंधी मानदंड
वाहनों से उत्सर्जित धुएँ में कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन तथा अन्य हानिकारक पदार्थ होते हैं। 1988 में इन प्रदूषकों को नियंत्रित करने हेतु सर्वप्रथम यूरोप में उत्सर्जन संबंधी मानदंड (यूरो-Ι, यूरो-ΙΙ) लागू किया गया।
इसी प्रकार, भारत में भी वाहनों की भारी संख्या और अधिक यातायात के कारण बढ़ते प्रदुषण को कम करने के लिए उत्सर्जन संबंधी मानदंड को सख्त कर लागू कर दिया जाता है। 2005 में भारत में स्टेज- ΙΙ लागू किया गया। वर्तमान में भारत में स्‍टेज- VI लागू है।

गंगा कार्यान्वयन योजना
गंगा कार्यान्वयन योजना की घोषणा 1986 में हुई थी जिसके लिए 300 करोड़ रुपयों से भी अधिक का प्रावधान था और ऋषिकेश से कालकाता तक गंगा नदी को स्वच्छ बनाने की योजना थी।

वन का महत्त्व-  वनों का निम्नलिखित महत्व है।
1. वन पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ मनुष्यों की मूल आवश्यकताओं, जैसे आवास निर्माण सामग्री, ईंधन, जल तथा भोजन का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप् से आपूर्ति करता है।
2. पेड़-पौधों की जड़े मिट्टी के कणों को बाँधकर रखती हैं, जिससे तेज वर्षा तथा वायु के झोकों से होनेवाला भूमि अपरदन रूकता है। वन मिट्टी के कटाव को रोकने में सहायक होता है।
3. यहां जल चक्र के पूर्ण होने में वनों का महत्वपूर्ण योगदान है।
4. वनों द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि होती है।
5. वनों द्वारा वातावरण के ताप में कमी आती है।
6. वनों के ह्रास से कई प्रकार के प्रजातियाँ लुप्त हो जाती है।
7. वनों से हमें दुर्लभ औसधियाँ, पौधे, रेजिन, रबर, तेल आदि मिलते है।
8. वनों से पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता है।
9. वनों में पेड़ों से गिरने वाले वाले पत्ते मिटटी में सड़कर ह्युमस उत्पन्न करते है जिससे मिट्टी की उर्वरा सकती बढ़ती है।

वन प्रबंधन के प्रयास
भारत सरकार ने राष्ट्रीय वन निति बनाकर वैन संरक्षण के प्रयास किये हैं।
1. बचे हुए वन क्षेत्रों का संरक्षण
2. वनों की कटाई को विवेक पूर्ण बनाना
3. बंजर तथा परती भूमि पर सघन वृक्षारोपण के कायर्क्रम का संचालन।
4. जनता में जागरूकता पैदा कर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना।
5. ग्रामीण क्षेत्रों में बायोगैस संयंत्र लगाने को प्रोत्साहन जिसमें जलावन के लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई पर रोक लग सके।
6. रसोई गैस के कनेक्शन उपलब्ध कराना।
7. बांधों के तटबंधों तथा आसपास के क्षेत्र को वनाच्छादित बनाना।
8. सवयंसेवी संस्थानों को प्रोत्साहन आदि।

टिहरी बांध परियोजना- टिहरी बांध का निर्माण उत्तराखंड के टिहरी जिले के भगीरथी तथा भिलंगना नदियों के संगम के निचे गंगा नदी पर किया गया है।

टिहरी बांध निर्माण का उद्देश्य–
1. बिजली का उत्पादन
2. पशिचमी उत्तर प्रदेश के 2 लाख 70 हजार हेक्टेअर भूमि की सिंचाई
3. दिल्ली महानगर को जल की आपूर्ति

सौर ऊर्जा- सूर्य ऊर्जा का निरंतर स्रोत है सूर्य की उष्मा एवं प्रकाश से प्रचुर मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है तथा सौर ऊर्जा से विभिन्न प्रकार प्रकार के उपयोगी कार्य किये जाते है। जैसे –
1. सौर कुकर से खाद्य पदार्थो को पकने में
2. सौर्य जल ऊष्मक से जल गर्म करने में
3. सौर्य शक्ति यंत्रण से, विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने में

वर्षा जल-संग्रहण— वर्षा के जल के संग्रह करने की प्रक्रिया को वर्षा जल संग्रहण कहा जाता है। राजस्‍थान में खेतों में गढ्ढा बनाकर वर्षा जल को संग्रह किया जाता है, जिसे खादिन कहा जाता है।

पवन ऊर्जा- पवन ऊर्जा का उपयोग नाव चलने में किया जाता है। पवन ऊर्जा का उपयोग कई औद्योगिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। डेनमार्क को पवनों का देश कहा जाता है। भारत विश्‍व का पाँचवा पवन उत्‍पादक देश है।

पवन ऊर्जा का उपयोग –
1. अनाज के पिसाई के लिए पवन चक्की
2. जल पम्प चलाने के लिए पवन चक्की

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य—

  • जैव विविधता का विशिष्‍ट स्‍थल वन है।
  • चिपको आंदोलन वन संरक्षण से संबंधित है।
  • कुआँ भूमिगत जल का एक उदाहरण है।
  • गंगा सफाई योजना 1985 ई० में प्रारंभ हुई थी।
  • टेहरी बाँध का निर्माण उत्तराखंड में किया गया है।
  • यूरो II का संबंध वायु प्रदुषण से है।

महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नोत्तर—

प्रश्‍न 1. पर्यावरण मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते हैं ?
उत्तर—(i) धुआ रहित वाहनों का प्रयोग करके।
(ii) पॉलीथीन का उपयोग न करके।
(iii) जल संरक्षण को बढ़ावा देकर।
(iv) वनों की कटाई पर रोक लगाकर।
(v) वृक्षारोपण करके।
(vi) तेल से चालित वाहनों का कम-से-कम उपयोग करके।
(vii) पेट्रोल, डीजल के स्थान पर CNG का प्रयोग करके।
(vi) ठोस कचर का कम-से-कम उत्पादन करके।
(ix) सोच-समझ कर विद्युत उपकरणों का उपयोग करके।
(x) पुनर्चक्रण हो सकने वाली वस्तुओं का उपयोग करके।
(xi) जैव निम्नीकरण और जैव अनिम्नीकरणीय कचरे को अलग-अलग फेंक कर।

प्रश्‍न 2. हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए ?
उत्तर—वन्य जीवन को निम्नलिखित कारणों से सुरक्षित रखना चाहिए-
(1) प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए।
(3) फल, मेवे, सब्ज़ियाँ तथा औषधियाँ प्राप्त करने के लिए।
(4) इमारती तथा जलाने वाली लकड़ी प्राप्त करने के लिए।
(5) पर्यावरण में गैसीय संतुलन बनाने के लिए।
(6) वृक्षों के वायवीय भागों से पर्याप्त मात्रा में जल का वाष्पन होता है जो वर्षा के स्रोत का कार्य करते हैं।
(7) मृदा अपरदन एवं बाढ़ पर नियंत्रण करने के लिए।
(8) वन्य जीवों को आश्रय प्रदान करने के लिए।
(10) स्थलीय खाद्य श्रृंखला की निरंतरता के लिए।
(12) वन्य प्राणियों से ऊन, अस्थियाँ, सींग, दाँत, तेल, वसा तथा त्वचा आदि प्राप्त करने के लिए।

प्रश्‍न 3. संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर – पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए वन्य जीवन का संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित दो उपाय किए जा सकते हैं-
(1) सरकार को ऐसे कानून बनाने चाहिएं जिससे शिकारियों को प्रतिबंधित वन्य पशु का शिकार करने पर दंड मिलना चाहिए।
(2) राष्ट्रीय पार्क और पशु-पक्षी विहार स्थापित किए जाने चाहिएं जहां पर वन्य पशु सुरक्षित रह सकें।

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