विद्युत
विद्युत धारा– आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं।
चालक– ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक जाता है, चालक कहे जाते हैं। जैसे- धातु, मनुष्य या जानवर का शरीर, पृथ्वी आदि।
विद्युतरोधी– ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक नहीं जाता है, विद्युत रोधी कहे जाते हैं। जैसे- काँच, प्लैस्टिक, रबर, लकड़ी आदि।
विद्युत विभव– किसी बिंदु पर विद्युत विभव कार्य का वह परिणाम है जो प्रति एकांक (इकाई) आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है।
यदि आवेश q को अनंत से किसी बिंदु p तक लाने में किया गया कार्य w हो, तो उस बिंदु p पर विद्युत विभव होता है-
V = W/q
विभवांतर– किन्ही दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर की माप उस कार्य से होती है जो प्रति एकांक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया जाता है।
यदि एक आवेश q को बिंदु B से बिंदु A तक लाने में किया गया कार्य VAB हो, तो A और B के बीच विभवांतर
VAB= W/q
सेल या बैटरी– सेल या बैटरी एक ऐसी युक्ति है, जो अपने अंदर हो रहे रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा सेल के दोनों इलेक्ट्रोडों के बीच विभवांतर बनाए रखती है।
विद्युत परिपथ– जिस पथ से होकर विद्युत-धारा का प्रवाह होता है, उसे विद्युत-परिपथ कहते हैं।
ऐमीटर– जिस यंत्र द्वारा किसी विद्युत-परिपथ की धारा मापी जाती है, उसे ऐमीटर कहते है।
वोल्टमीटर– जिस यंत्र द्वारा किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभ्वांतर को मापा जाता है, उसे वोल्टमीटर कहते हैं।
ऐमीटर और वोल्टमीटर में अंतर–
ऐमीटर–
1. यह किसी विद्युत-परिपथ में धारा की प्रबलता को मापता है।
2. यह किसी विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
3. इसका स्केल ऐम्पियर (A) में अंकित होता है।
वोल्टमीटर–
1. यह किसी विद्युत परिपथ में किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर को मापता है।
2. यह किसी विद्युत परिपथ में समांतरक्रम में जोड़ा जाता है।
3. इसका स्केल वोल्ट (V) में अंकित होता है।
ओम का नियम
1826 में जर्मन वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम ने किसी चालक के सिरों पर लगाए विभवांतर तथा उसमें प्रवाहित होनेवाली विद्युत-धारा का संबंध एक नियम द्वारा व्यक्त किया। इस नियम को उन्हीं के नाम पर ‘ओम का नियम’ कहा जाता है।
ओम के नियम के अनुसार,
यदि किसी चालक के ताप में परिवर्तन न हो, तो उसमें प्रवाहित विद्युत-धारा उसके सिरों के बीच आरोपित विभवांतर के समानुपाती होती है।
जहाँ, R एक नियतांक है जिसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं।
ओम का नियम का सत्यापन–
ओम का नियम के सत्यापन के लिए एक शुष्क सेल, एक ऐमीटर A, एक वोल्टमीटर V, एक स्विच S तथा एक नाइक्रोम तार के टुकड़े PQ को संयोजित किया जाता है।
स्विच S को बंद करने पर परिपथ में धारा प्रवाहित होने लगती है। ऐमीटर A परिपथ में प्रवाहित होनेवाली धारा I को मापता है तथा वोल्टमीटर V नाइक्रोम के तार PQ के सिरों P एवं Q के बीच का विभवांतर V मापता है।
अब एक के स्थान पर दो सेल लगाकर पुनः ऐमीटर तथा वोल्टमीटर के पठन नोट करते हैं। इस प्रयोग को बारी-बारी से तीन, चार और पाँच सेलों को परिपथ में जोड़कर दुहराते हैं। हम पाते हैं कि प्रत्येक बार अनुपात V/I का मान लगभग समान आता है।
अब यदि विभवांतर V को X-अक्ष पर तथा धारा I को Y-अक्ष पर लेकर V तथा I के बीच एक ग्राफ खींचा जाए, तो प्राप्त ग्राफ एक सरल रेखा होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि विद्युत-धारा I विभवांतर V के समानुपाती होती है।
प्रतिरोध– किसी पदार्थ के वह गुण जो उससे होकर धारा के प्रवाह का विरोध करता है, उस पदार्थ का विद्युत प्रतिरोध या केवल प्रतिरोध कहलाता है।
प्रतिरोध का SI मात्रक ओम Ω होता है। एक ओम एक वोल्ट प्रति ऐम्पियर होता है।
प्रतिरोधक– उच्च प्रतिरोध वाले पदार्थों को प्रतिरोधक कहा जाता है।
प्रतिरोधक एक युक्ति है और प्रतिरोध उसका एक गुण है।
किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
1. तार की लंबाई पर–किसी तार का प्रतिरोध R उसकी लंबाई l के समानुपाती होता है।
2. तार की मोटाई पर–किसी तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
3. चालक के पदार्थ पर–यदि विभिन्न पदार्थों के तार समान लंबाई और समान मोटाई के हों, तो उनके प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होंगे।
4. चालक के ताप पर–ताप बढ़ने से चालक का ताप बढ़ता है।
जहाँ, ρ दिए गए ताप पर तार के पदार्थ के लिए नियतांक है। इसे चालक तार के पदार्थ की प्रतिरोधकता कहते हैं। प्रतिरोधकता का SI मात्रक Ωm ओम मीटर होता है।
प्रतिरोधकों का समुहन–
दो या दो से अधिक प्रतिरोधकों को एक-दूसरे से कई विधियों द्वारा जोड़ा जा सकता है। इसमें दो विधियाँ मुख्य हैं-
1. श्रेणीक्रम समूहन तथा
2. समांतरक्रम समूहन
1. श्रेणीक्रम समूहन–जब प्रतिरोधकों को एक सिरे से दूसरा सिरा मिलाकर जोड़ा गया है। तो प्रतिरोधकों के इस संयोजन को श्रेणीक्रम संयोजन कहा जाता है।
श्रेणीक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
R = R1 + R2 + R3
2. समांतरक्रम समूहन– जब प्रतिरोधकों एक ही बिंदू पर आकर जुड़े हो, तो इस प्रकार का संयोजन समांतर क्रम संयोजन कहलाता है।
पार्श्वक्रम या समांतरक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।
प्रतिरोधकों के श्रेणीक्रम तथा समांतरक्रम समुहन में अंतर–
श्रेणीक्रम समुहन–
1. सभी प्रतिरोधकों में एक ही धारा प्रवाहित होती है, परन्तु उनके सिरों के बीच विभवांतर उनके प्रतिरोधकों के अनुसार अलग-अलग होता है।
2. प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
3. समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोधकों के प्रतिरोध के मान से अधिक होता है।
समांतरक्रम समुहन–
1. सभी प्रतिरोधकों के सिरों के बीच एक ही विभवांतर होता है, परंतु उनके प्रतिरोधों के मान के अनुसार उनमें भिन्न-भिन्न धारा प्रवाहित होती है।
2. प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम सभी प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है।
3. समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोधक के प्रतिरोध के मान से कम होता है।
विद्युत-शक्तिः किसी विद्युत-परिपथ में विद्युत ऊर्जा के व्यय की दर को उस परिपथ की विद्युत-शक्ति कहते हैं।
Note: विद्युत-शक्ति का मात्रक वाट होता है। इसे संकेत में W से सुचित किया जाता है।
- बिजली के उपकरणों की सुरक्षा के लिए फ्यूज का उपयोग किया जाता है।
- फ्यूज के तार ऐसे पदार्थ के बने होते हैं जिनकी प्रतिरोधकता अधिक होती है और गलनांक कम।
महत्वपूर्ण तथ्य—
- विद्युत धारा का SI मात्रक एम्पियर, विभ्वांतर का SI मात्रक वोल्ट, विद्युत विभव का SI मात्रक वोल्ट, विद्युत शक्ति का SI मात्रक वाट तथा आवेश का SI मात्रक कुलॉम होता है।
- विद्युत चुम्बक बनाने के लिए नर्म लोहा का उपयोग किया जाता है।
- स्थायी चुम्बक बनाने के लिए इस्पात का उपयोग किया जाता है।
- विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले युक्ति को जनित्र कहते हैं।
- आमीटर को विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
- धातुओं में धारा का प्रवाह मुक्त इलेक्ट्रॉन के कारण होता है।
- एक बल्ब से एक मिनट में 120 कूलम्ब आवेश प्रवाहित हो रहा है, तो विद्युत धारा का मान 2 एम्पियर का होता है।
- आमीटर से धारा मापा जाता है।
- गैल्वेनोमीटर विद्युत धारा की उपस्थिति को दर्शाता है।
- ऐम्पियर-घंटा ऊर्जा का मात्रक है।
- ऊर्जा का SI मात्रक जूल होता है।
- 1 वोल्ट 1 जूल/कूलॉम होता है।
- विभवांतर मापने वाले यंत्र को वोल्टमीटर कहा जाता है।
- हाइड्रो का अर्थ जल होता है।
- बैट्री से दिष्ट धारा प्रवाहित है।
- ताप बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध बढ़ता है। वैद्युत प्रतिरोधकता का SI मात्रक ओम-मीटर होता है।
- विद्युत का सबसे अच्छा चालक चाँदी है।
- वोल्ट मीटर को विद्युत परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ा जाता है।
- इलेक्ट्रीक हीटर में नाइक्रोम का प्रयोग किया जाता है।
- आमीटर का प्रतिरोध नगण्य होता है।
- विद्युत बल्ब का फिलामेंट टंगस्टन का बना होता है।
- 1 Hp (हॉर्स पावर) 746 वाट के बराबर होता है।
- एक वाट, एक जुल/सेकेंड के बराबर होता है।
Subjective Questions & Answers
प्रश्न 1. विद्युत बल्ब का नामांकित चित्र खींचिए।
उत्तर—
प्रश्न 2. विद्युत-धारा की प्रबलता की परिभषा दें।
अथवा, विद्युत-धारा क्या है ? इसका समीकरण एवं मात्रक लिखें।
उत्तर—किसी चालक से प्रवाहित विद्युत-धारा की प्रबलता उस चालक के किसी अनुप्रस्थ काट से एकांक समय में प्रवाहित आवेश का परिमाण है। यदि 1 सेकण्ड में 1 कुलॉम आवेश प्रवाहित होता है तो उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित धारा का मान 1 ऐम्पियर होता है।
ऐम्पियर, विद्युत-धारा का मात्रक है।
प्रश्न 3. प्रत्यावर्ती धारा में कौन-सी दो कमियाँ होती हैं ?
उत्तर—प्रत्यवर्ती धारा में निम्नलिखित दो कमियाँ हैं—
(1) प्रत्यवर्ती धारा से विद्युत-लेपन तथा बैटरियों का आवेशन नहीं किया जा सकता है।
(2) इस धारा से विद्युत-विच्छेदन नहीं किया जा सकता हैं।
प्रश्न 4. ऐम्पियर की परिभाषा दें।
उत्तर—किसी चालक से प्रवाहित विद्युत-धारा की प्रबलता उस चालक के किसी अनुप्रस्थ काट से एकांक समय में प्रवाहित आवेश का परिमाण है। यदि 1सेकण्ड में 1 कुलॉम आवेश प्रवाहित होता है, तो उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित धारा का मान 1 ऐम्पियर होता है।
प्रश्न 5. ओम के नियम को लिखें।
उत्तर—यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएँ जैसे ताप आदि में कोई परिवर्तन न हो तो उसके सिरों पर लगाया गया विभवान्तर उससे प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है।
प्रश्न 6. प्रत्यावर्ती धारा एंव दिष्ट धारा में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर—
दिष्ट धारा | प्रत्यावर्ती धारा |
(1) इस धारा का परिमाण एंव दिशा समय के साथ स्थिर रहता है। (2) इसे एक स्थान से दुसरे स्थान तक प्रेषित करने पर अधिक ऊर्जा का व्यय होता है। (3) ट्रांसफॉर्मर की मदद से इस धारा के विभवान्तर को बढाना-घटाना संभव नहीं है। (4) इस धारा की सहायता से संचायक सेल को र्चाज किया जाता है। (5) यह कम वोल्टेज के कारण अपेक्षाकृत कम खतरनाक है। | (1) इस धारा का परिमाण एंव दिशा समय के साथ बदलता है। (2) इसे एक स्थान से दुसरे स्थान तक प्रोषित करने पर कम ऊर्जा व्यय होता है। (3) ट्रांसफॉर्मर की सहायता से इस धारा के विभवांतर को घटाना-बढाना संभव है। (4) इस धारा की सहायता से संचायक सेल को चार्ज नहीं किया जा सकता है। (5) यह अधिक वोल्टेज के कारण बहुत खतरनाक है। |
प्रश्न 7. प्रतिरोध किसे कहते हैं ? प्रतिरोध का SI मात्रक लिखें। किसी चालक का प्रतिरोध किन कारकों पर निर्भर करता है।
अथवा, प्रतिरोध क्या है ? इसका SI मात्रक लिखें।
उत्तर—
प्रतिरोध- चालक का वह गुण जिसके द्वारा विद्युत-धारा के प्रवाह का विरोध किया जाता है, उसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं।
प्रतिरोध बढ़ाने से विद्युत-धारा कम हो जाती है तथा प्रतिरोध घटाने से विद्युत-धारा बढ़ जाती है।
प्रतिरोध के SI मात्रक— प्रतिरोध का मान किसी चालक के दो सिरों के मध्य के विभवांतर और उसमें बह रही विद्युत-धारा की मात्रा के अनुपात के बराबर होता है। प्रतिरोध का SI मात्रक ओम होता है।
किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित तीन बातों पर निर्भर करता है—
(1) चालक की लंबाई- चालक का प्रतिरोध R चालक की लंबाई के समानुपाती होता है।
इसका अर्थ है कि अगर लंबाई दो गुनी करेंगे तो प्रतिरोध भी दोगुना हो जाएगा और अगर लंबाई को आधा करेंगे तो प्रतिरोध भी आधा हो जाएगा।
(2) अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल— चालक का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
यहाँ A अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल है।
इसका अर्थ है जब क्षेत्रफल दोगुना होगा तो प्रतिरोध आधा हो जाएगा।
(3) पदार्थ की प्रकृति— प्रतिरोध इस बात पर भी निर्भर करता है कि चालक जिस पदार्थ का बनाया गया है उसकी प्रकृति क्या है।
(4) चालक का तापमान।
प्रश्न 8. उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवान्तर बनाये रखने में सहायता करती है।
उत्तर—किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने के लिए सेल अपनी संचित रासायनिक ऊर्जा नियमित रूप से खर्च करता है, जिससे विद्युत-धारा निश्चित रहती है और चालकों के सिरों के बीच विभवांतर बना रहता है। यह परिवर्ती प्रतिरोध द्वारा सम्पन्न होती है।
प्रश्न 9. विद्युत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है। क्यों?
उत्तर—विद्युत बल्ब में टंगस्टन का फिलामेंट (तंतु) इसलिए बनाया जाता है, क्योंकि इसका गलनांक बहुत अधिक (लगभग 34000 ब्) होता है। अतः यह बिना गले 27000 ब् का श्वेेत-तप्त प्राप्त कर सकता है। चुँकि टंगस्टन की प्रतिरोधकता कम है, इसलिए पतला और लंबा तार (कुंडली के रूप् में) लेना पड़ता है ताकी प्रतिरोध अधिक हो और ऊष्मा अधिक उत्पन्न हो।
प्रश्न 10. घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है ?
उत्तर—श्रेणीक्रम में समान विद्युत धारा, सभी उपकरणों में प्रवाहित होती है। श्रेणीक्रम से अधिक उपकरण लगाने से धीरे-धीरे धारा का मान घटता जाता है। क्योंकि सभी प्रतिरोध श्रेणीक्रम में हैं और कुल प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिती में प्रत्येक उपकरण के सिरों पर विभवांतर भिन्न होता है।
प्रश्न 11. भूसंपर्क तार का क्या कार्य है ? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर—किसी भी विद्युत उपकरण के लिए दो तारों की आवश्यकता होती है-
एक जिसमें धारा गुजरती है और दूसरी उदासीन। अधिक ऊष्मा उत्पत्ति या टुट-फूट के कारण कभी-कभी धारा युक्त तार उपकरण को सीधा स्पर्श कर लेती है जिससे उपकरण को छू जाने पर शॉक लगता है। इससे बचने के लिए उपकरण के धात्विक भाग का सम्बन्ध धरती से कर दिया जाता है। तीन पिन वाले प्लग के साथ इसे जोड़ दिया जाता है। इसे धरती में बहुत गहराई में दबाई गई तार से संम्बन्धित किया जाता है। लघु पथन के समय धारा उपकरण से धरती में चली जाती है। इससे फ्यूज पिघल जाता है। लघुपथन और विद्युत शॉक से बचने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है।
प्रश्न 12. विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रधातु के बनाए जाते हैं, क्यों ?
उत्तर—विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रधातु के बनाए जाते हैं, क्योंकि मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता उनकी अवयवी धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है और उनका उच्च ताप पर शीघ्र ही उपचयन (दहन) नहीं होता है।
प्रश्न 13. ऐमिटर और वोल्टमीटर को विद्युत परिपथ के साथ क्रमशः श्रेणी एंव समांतर क्रम में जोड़ा जाता है ?
उत्तर—ऐमीटर धारा मापने की एक युक्ति है। अतः इसे विद्युत-परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है ताकि कुल धारा इससे होकर प्रवाहित हो। इसका प्रतिरोध कम होने के कारण प्रवाहित धारा का परिमाण नहीं बदलता है।
वोल्टमीटर विद्युत-परिपथ में किन्हीं दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने की युक्ति है। अतः इसे उन दो बिंदुओं के समांतर क्रम में जोड़ा जाता है। इसका प्रतिरोध बहुत अधिक होने के कारण यह परिपथ से नगण्य धारा लेता है।
प्रश्न 14. विद्युत आवेश क्या है ? विद्युत आवेश कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर—इलेक्ट्रॉन के सतत प्रवाह को विद्युत आवेश कहते हैं। आवेश का SI मात्रक कूलंब (कूलॉम) है। एक इलेक्ट्रॉन पर 1.6 × 10-19 कूलंब (C) ऋण आवेश होता है।
विद्युत आवेश दो प्रकार का होता है-
(1) धनात्मक आवेश और (2) ऋणात्मक आवेश
प्रश्न 15. प्रतिरोधों का संयोजन (समूहन) क्या है ? यह कितने प्रकार से होता है ? किसी एक समतुल्य प्रतिरोध के लिये व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर—विद्युत परिपथ में दो या दो से अधिक प्रतिरोधों (चालकों) को एक साथ जोड़ना, प्रतिरोधों का संयोजन या समूहन कहते हैं।
संयोजन दो प्रकार से होता है-
(1) श्रेणीक्रम (2) समांतरक्रम
समतुल्य प्रतिरोध-
श्रेणीक्रम के लिए समतुल्य प्रतिरोध का व्यंजक- श्रेणीक्रम में प्रतिरोध के मान के अनुसार विभवांतर कर वितरण [V= V1, V2, V3, ………. ] होता है जबकि धारा (I) का मान रूप से प्रवाहित होता है।
यदि समतुल्य प्रतिरोध = R , विभ्वांतर = V
यहीं व्यंजक प्राप्त हुआ।
प्रश्न 16. विद्युत बल्ब में निष्क्रिय गैस क्यों भरी जाती है ?
उत्तर—विद्युत बल्ब में टंग्स्टन का फिलामेंट (तंतु) से हवा-माध्यम में विद्युत-धारा प्रवाहित की जाए तो यह हवा के ऑक्सीजन से ऑक्सीकृत होकर भंगुर हो जाएगा और टूट जाएगा। इसलिए फिलामेंट को टूटने से बचाने के लिए काँच के बल्ब के अंदर की हवा को निकालकर निष्क्रिय गैस भर दी जाती है। गैसों को निम्न दाब पर भरा जाता है जिससे कि संवहन द्वारा ऊष्मा की हानि न्यूनतम हो।
प्रश्न 17. घरों के विद्युत परिपथ में विद्युत उपकरण समान्तरक्रम में क्यों जोड़े जाते हैं ?
उत्तर—पार्श्वक्रम में संयोजित करने के लाभ होते है-
(1) प्रतिरोधों को पार्श्वक्रम में जोड़ने से किसी भी चालक में स्विच की सहायता से विद्युत-धारा स्वतंत्रतापूर्वक भेजी अथवा रोकी जा सकती है।
(2) ऐसा करने से सभी समांतर शाखाओं के सिरो के बीच का विभ्वांतर बराबर होता है। इसलिए लैंप, बिजली की प्रैस, रेफ्रीजरेटर, रेडियो आदि को एक ही विभव पर प्रचलन के योग्य बनाया जा सकता है।
प्रश्न 18. विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है ?
उतर- विद्युत परिपथ चालकों तथा विद्युत-स्रातों का संयोजन है। इन चालकों तथा विद्युत स्रातों को कम प्रतिरोध के संयोजक तारों से इस प्रकार जोड़ा जाता है कि कोई लघुपथन न हो।
प्रश्न 19 . विद्युत-धारा के मात्रक की परिभाषा लिखिए।
उतर– विद्युत धारा का मात्रक ऐमपियर है। किसी चालक के अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल से प्रति सेकेण्ड होने वाले आवेश की मात्रा एक कूलॉम हो तो विद्युत-धारा ऐमपियर कहलाती है।
प्रश्न 20. किसी तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में परिवर्तन के साथ किस प्रकार परिवर्तित होता है?
उतर- जब तार का पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होगा तो चालक में इलेक्ट्रॉन भी अधिक मुक्त रूप से बहेंगे। इस कारण चालक में धारा अधिक होगी तथा प्रतिरोध कम।
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प्रश्न 21. विद्युत संचारण के लिए प्राय: कॉपर तथा एल्युमिनियम के तारों का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर—कॉपर तथा ऐलुमिनियम विद्युत के अच्छे चालक हैं। जब ताँबा तथा ऐलुमिनियम तारों में विद्युत प्रेषित होती है, तो उष्मा के रूप में शक्ति ह्रास बहुत कम होता है।
प्रश्न 22. विद्युत-तापन युक्तियों, जैसे ब्रेड-टोस्टर तथा विद्युत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्रधातुओं के क्यों बनाये जाते हैं?
उत्तर—मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता बहुत उच्च होती है तथा तापमान परिवर्तन से प्रतिरोधकता में विशेष कमी नहीं आ पाती, इसके साथ-साथ यह अधिक तापमान पर आक्सीकृत भी नहीं होती है।
प्रश्न 23. यह कहने का क्या तात्पर्य है कि दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1 V है ?
उत्तर—किसी धारावाही विद्युत परिपथ के दो बिदुंओं के बीच विद्युत विभवांतर को हम उस कार्य द्वारा परिभाषित करते हैं जो एकांक आवेश की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया जाता है।
प्रश्न 24. श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वैद्युत युक्तियों को पार्श्वक्रम में संयोजित करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर—पार्श्वक्रम में संयोजित करने के लाभ होते हैं—
1. प्रतिरोधों को पार्श्वक्रम में जोडने से किसी भी चालक में स्विच की सहायता से विद्युत-धारा स्वतंत्रतापूर्वक भेजी अथवा रोकी जा सकती है।
2. ऐसा करने से सभी समांतर शाखाओं के सिरों के बीच का विभवांतर बराबर होता है। इसलिए लैंप, बिजली की प्रैस, रेफ्रीजरेटर, रेडियो आदि को एक ही विभव पर प्रचलन के योग्य बनाया जा सकता है।
प्रश्न 25. कूलॉम का नियम क्या है ?
उत्तर—दो आवेशित वस्तुओं के बीच का विद्युत बल उनके गुणनफल का समानुपाती और उनके बीच की दुरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है।
जहाँ k स्थिरांक है।
प्रश्न 26. किसी विद्युत हीटर की डोरी उत्तप्त नहीं होती जबकि उसका तापन अवयव उत्तप्त हो जाता है।
उत्तर—विद्युत हीटर में लगे तापन अवयव का प्रतिरोध, विद्युत हीटर की डोरी के प्रतिरोध की अपेक्षा काफी अधिक होता है। चूँकि किसी चालक में विद्युत-धारा के प्रवाह के कारण चालक में उत्पन्न उष्मा, चालक के प्रतिरोध के समानुपाती होती है, इसलिए हीटर का तापन अवयव तो उत्तप्त हो जाता है, परंतु हीटर की डोरी उत्तप्त नहीं होती है।
प्रश्न 28. विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है ?
उत्तर—वैसी व्यवस्था, जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित होती है, उसे विद्युत परिपथ कहते हैं। इसमें बैटरी, चालक, प्रतिरोध, स्विच तथा अनेक उपकरण जुड़े होते हैं।
प्रश्न 29. विद्युत धारा के मात्रक की परिभाषा लीखिए।
उत्तर – विद्युत धारा का मात्रक ऐम्पियर होता है। इसे ‘A’ द्वारा सूचित किया जाता है। जब किसी चालक से 1 सेकेण्ड तक 1 कूलम्ब धारा प्रवाहित होती है तब उस प्रयुक्त विद्युत धारा की मात्रक को 1 ऐम्पियर कहते हैं।
प्रश्न 30. उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है।
उत्तर – उस युक्ति का नाम ‘सेल या बैट्री’ है, जो विभवान्तर बनाए रखने में सहायता करती है।
सी विद्युत् परिपथ के दो बिंदुओं के बीच विभवांतर,1V का तात्पर्य यह है कि एक कूलोम आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में 1 जूल कार्य किया जाता है।
प्रश्न 31. यह कहने का क्या तात्पर्य है कि दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1 V है ?
उत्तर – किसी विद्युत् परिपथ के दो बिंदुओं के बीच विभवांतर,1V का तात्पर्य यह है कि एक कूलोम आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में 1 जूल कार्य किया जाता है।
प्रश्न 32. विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रातु के क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर—विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रातु के बनाए जाते हैं क्योंकि मिश्र धातुओं का संक्षारण जल्दी नहीं होता, मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता, अवयवी धातुओं की अपेक्षा उच्च होती हैं। उच्च तापमान पर, मिश्र धातु आसानी से नहीं पिघलती हैं।
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- Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण
- Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण
- Chapter 3 धातु एवं अधातु
- Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक
- Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण
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- Chapter 1 जैव प्रक्रम
- Chapter 2 नियंत्रण एवं समन्वय
- Chapter 3 जीव जनन कैसे करते है
- Chapter 4 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
- Chapter 5 उर्जा के स्रोत
- Chapter 6 हमारा पर्यावरण
- Chapter 7 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन