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Chapter 25 – धुवोपाख्यानत्

धुवोपाख्यानत्

पुरा उत्तानपादो नाम राजा आसीत् । तस्य द्वे पल्यौ आस्ताम्-सुनीतिः सुरुचिश्च । सनीति: ज्येष पत्नी आसीत्, सुरुचिः तु कनिष्ठा आसीत् । सुरुचिः पत्युः अतीव प्रियासीत् । सुनीतेः पुत्रस्य नाम ध्रुवः सुरूचे पुत्रस्य च नाम उत्तमः आसीत् । तयोः सुरुचेः पुत्रः उत्तमः नृपस्य प्रियतरः आसीत् ।

एकदा राज्ञः उत्तानपादस्य क्रोडे उत्तमः आसीनः आसीत् । उत्तमं दृष्ट्वा शुवास्यापि इच्छा पितुः अङ्कम् आरोढुं सजाता । किन्तु तत्र स्थिता विमाता सुरुचिः तं न्यवारयत् अवदत् च-कुमार ! त्वं पितुः अङ्कमारोढुं योग्यः नासि यतो हि त्वं मम पुत्रः नासि । मम पुत्र एव अस्य योग्यः ।

विमात्रा अनादृतः धुवः दुःखितः अभवत् । असी स्वमातुः सुनीतेः सपीमप् अगच्छत् । तं दुःखितं दृष्ट्वा सुनीतिः दुःखस्य कारणम् अपृच्छत् । धुवः सर्वं वृत्तान्तम् अकथयत् । पुत्रस्य वचनं श्रुत्वा सुनीति अवदत् -पुत्र ! तव विमाता सत्यं वदति । तथापि दुःखितः मा भद। तपसा पितुरडू लभस्व । वनं गच्छ, भक्तवत्सलं भगवन्तं सेवस्य इति । अम्ब, भक्तवत्सलं भगवन्तं सेविष्ये अभीष्टं च प्राप्स्यामि इत्युक्त्वा मातरं प्रणम्य च पञ्चवर्षीय: बालकः धुवः तपोवनम् अगच्छत् । मार्गे देवर्षिः नारदः तम् अपृच्छत्-वत्स, त्वं कुत्र किमर्थञ्च गच्छ? ध्रुवोऽवदत्-भगवन्, तपसा भगवन्तं तोषयितुं वनं गच्छामि । अहम् ऐश्वर्य राज्यसुखानि वा न अभीप्सामि । अहं पितुरई इच्छामि । कृपया तपोमार्गम् उपदिशतु भवान्। वस्य दृढ निश्चयं दृष्ट्वा देवर्षिः नारदः अवदत्-वत्स, यमुनातदस्थितं मधुसंज्ञं वनं गच्छ, तत्र वासुदेवम् आराधय । हरिः एव तव मनोरथ पूरयिष्यति । इत्युक्त्वा नारदः ततोऽगच्छत्।              अथ ध्रुवः मधुकाननं प्राप्य विष्णुं ध्यातुम् आरब्धवान् । प्रथमं तु अनेके देवाः इन्द्रेण सह तस्य ध्यानभङ्ग कर्तुं प्रयासमकुर्वन् । किन्तु सर्वे ते विफलप्रयलाः जाताः । षट् मासानन्तरं छुवस्य तपसः भीताः विष्णोः समीपमयच्छन् अवदन् च-प्रभो, ध्रुवस्य तपसा तप्ताः भीताश्च ययं त्वां शरणमागताः । तं तपसः निवर्तय इति । हरिः अवदत्-सुरा, धूवः इन्द्रत्वं धनाधिक्यं वा नेच्छति । भवन्तः स्वस्थानं गच्छत” इति । तदनन्तरं श्रीहरिः धुवस्य पुरः आविरभवत् तं करेण अस्पृश्यत् च। श्रीहरिः अवदत्-पुत्र, वरं वरय । ध्रुवोऽवदत्भगवन्, मे तपसा यदि परमं तोषं गतोऽसि तदा मे प्रज्ञां देहि पितुरङ्कञ्च प्रयच्छ । सन्तुष्टः हरिः तस्मै प्रज्ञां दुर्लभं ध्रुवपदञ्च प्रायच्छत् । गृहं प्रतिनिवृत्तं ध्रुवं प्रति पितुः उत्तानपादस्य विमातुः सुरुचैः च चित्ते निर्मले अभवताम् । इत्थं पञ्चवर्षीयोऽपि बालकः ध्रुवः भगवतः प्रसादात् अचलम् उच्‍चस्‍थानम् ध्रुवपदं प्राप्‍नोत्।

दृढेन मनसा कार्य चिन्तयित्वा नरो व्रती।

कठोरतपसा सिद्धिं लभते नात्र संशयः ॥

अर्थ : पुराने जमाने में उत्तानपाद नामक राजा थे। उनकी दो पत्‍नीयाँ थीं सुनीति और सुरुचि । सुनीति बड़ी पत्‍नी थी, सुरुचि छोटी पत्नी थी। सुरुचि पति का बहुत प्रिय थी। सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था। उन दोनों में सुरुचि का पुत्र उत्तम राजा का अत्यन्त प्रिय था।

एक दिन राजा उत्तानपाद की गोद में उत्तम बैठा था। उत्तम को देखकर ध्रुव की भी इच्छा पिता की गोद में चढ़ने की हुई। किन्तु वहाँ पर बैठी सौतेली माता सुरुचि उसको मना करते हुए बोली कुमार ! तुम पिता की गोद में चढ़ने योग्य नहीं हो क्योंकि तुम मेरा बेटा नहीं हो । मेरा बेटा ही इसके योग्य है।

सौतेली माता के द्वारा अनादर पाकर ध्रुव दुःखी हो गया । वह अपने माता सुनीति के निकट गया । उसको दुःखी देखकर सुनीति दुःख का कारण पूछती है। ध्रुव ने सारी कहानी सुना दी। पुत्र के वचन को सुनकर सुनीति बोली- पुत्र ! तुम्हारी सौतेली माँ सत्य बोली। इसके बाद भी दु:ख मत करो। तपस्या से पिता की गोद प्राप्त करो। वन जाओ। भक्तवत्सल भगवान को सेवा करो । माँ. भक्तवत्सल भगवान की सेवा करूँगा और अपने अभीष्ट को प्राप्त करूँगा, यह कहकर माता को प्रणाम कर पाँच वर्ष का बालक ध्रुव तपस्या के लिए वन चला गया। रास्ते में देवर्षि नारद ने उससे पूछा- वत्स तुम कहाँ और क्यों जा रहे हो? ध्रुव ने कहा-भगवन् तपस्या से भगवान को प्रसन्न करने जा रहा हूँ। मैं ऐश्वर्य या राज्य सुख की अभिलाषा नहीं रखता हुँ। मैं पिता की गोद पाना चाहता हूँ। कृपया आप मुझे तपस्या के विषय में उपदेश दें। ध्रुव का दृढ निश्चय देखकर देवर्षि नारद ने कहा- वत्स ! यमुना नदी के किनारे का स्थित मधु नामक वन में जाओ और वहाँ भगवान विष्णु की आराधना करो। भगवान विष्णु ही तुम्हारा मनोरथ पूरा करेंगे। यह कहकर नारद वहाँ से चले गये।

इसके बाद ध्रुव मधु नामक जंगल में जाकर विष्णु का ध्यान लगाना प्रारम्भ कर दिया । पहले तो अनेक देवता लोग इन्द्र के साथ होकर उसका ध्यान भंग करने का प्रयास किया। लेकिन वे सभी विफल हो गये। वे सभी छ: मास के अन्दर ध्रुव की तपस्या से भयभीत होकर विष्णु के समीप गये और बोले— प्रभु, ध्रुव की तपस्या से दग्ध होकर और भयभीत होकर हम सभी आपकी शरण में आये हैं। उसको तपस्या से अलग करें। भगवान हरि ने कहा-देवता लोग, ध्रुव इन्द्र के पद के लिए या अधिक धन की इच्छा नहीं रखता है। आप लोग अपने-अपने स्थान को जाइये। इसके बाद श्रीहरि ध्रुव के सामने आ गये और उसको अपने हाथ से स्पर्श किया। श्रीहरि ने कहा- पुत्र, वरदान माँगो । ध्रुव ने कहा- भगवान्, मेरी तपस्या से यदि आप बहुत संतुष्ट हैं तो मुझको बुद्धि और पिता की गोद दें। सन्तुष्ट भगवान हरि ने उसको बुद्धि और दुर्लभ ध्रुवपद प्रदान किया । घर लौटकर आने पर ध्रुव ने देखा कि पिता उत्तानपाद और विमाता सुरुचि का चित्त निर्मल हो गया है। इस प्रकार पाँच साल का बालक ध्रुव भगवान की कृपा से अचल और उच्च स्थान ध्रुव पद को प्राप्त किया।

जो व्यक्ति मनसे दृढ़तापूर्वक कार्य का चिन्तन करता है वही व्यक्ति कठोर तपस्या से सिद्धि प्राप्त करता है, इसमें संशय नहीं।

अभ्यास प्रश्न:

1. ध्रुवोपाख्यानं का शिक्षा ददाति?
उत्तरम्- ध्रुवोपाख्यानं शिक्षा ददाति यत्-मनुष्य दृढ़ संकल्पेन सर्व प्राप्नोति ।

प्रश्न: 2. स्वदृढ़निश्चयेन पञ्चवर्षीयः ध्रुवः किं लब्धवान् ?
उत्तरम्– स्वदृढ निश्चयेन पञ्चवर्षीयः ध्रुव: प्राज्ञां अचलपदं च ध्रुवपदं लब्धवान् ।

प्रश्न: 3. सुरुचेः पुत्रः कः आसीत् सुनीतेः पुत्रः कः आसीत् ?
उत्तरम्- सुरुचेः पुत्रः उत्तमः आसीत् । सुनीतेः पुत्रः ध्रुवः आसीत् ।

हिन्दी में वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उत्तानपाद कौन था?
(A) राजा
(B) मंत्री
(C) भिखारी
(D) संन्यासी
उत्तर :
(A) राजा

प्रश्न 2.
उत्तानपाद की कितनी रानियाँ थी?
(A) चार
(B) तीन
(C) दो
(D) एक
उत्तर :
(C) दो

प्रश्न 3.
ध्रुव किसका पुत्र था?
(A) सुरुचिं
(B) सुषमा
(C) लक्ष्मी
(D) सुनीति
उत्तर :
(D) सुनीति

प्रश्न 4.
उत्तम किसका पुत्र था?
(A) सुषमा
(B) सुरुचि
(C) लक्ष्मी
(D) सुनीति
उत्तर :
(B) सुरुचि

प्रश्न 5.
ध्रुव पद को कौन प्राप्त किया?
(A) उत्तम
(B) मोहन
(C) सोहन
(D) ध्रुव
उत्तर :
(D) ध्रुव

संस्कृत में वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दृढनिश्चयेन ध्रुवः किं लब्धवान्?
(A) राज्यम्
(B) सम्मानम्
(C) प्रतिष्ठाम्
(D) ध्रुव पदम्
उत्तर :
(D) ध्रुव पदम्

प्रश्न 2.
ध्रुवस्य मातुः नाम किम् आसीत्?
(A) सुनीतिः
(B) सुरूचिः
(C) सुनीतः
(D) सुप्रीतः
उत्तर :
(A) सुनीतिः

प्रश्न 3.
ध्रुवः तपः कर्तु कुत्र गतवान्?
(A) दण्डकारण्ये
(B) महावने
(C) मधुसंज्ञक वने
(D) चित्रवने
उत्तर :
(C) मधुसंज्ञक वने

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