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Chapter 13 – हाइड्रोकार्बन्स

हाइड्रोकार्बन्स

अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 13.1
मेथेन के क्लोरीनीकरण के दौरान एथेन कैसे बनती है? आप इसे कैसे समझाएँगे?

उत्तर:
मेथेन का क्लोरीनीकरण मुक्त मूलक क्रियाविधि द्वारा किया जाता है। मेथिल मूलक श्रृंखला समापन पद के योग एथेन में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 13.2
निम्नलिखित यौगिकों के I. U. P. A. C नाम लिखिए –

उत्तर:

प्रश्न 13.3
निम्नलिखित योगकों, जिनमें द्विआबन्ध तथा त्रिआबन्ध की संख्या दर्शाई गई है, के सभी सम्भावित स्थिति समावयवों के संरचना सूत्र एवं I. U. P.A. C नाम दीजिए –
(क) C4H8 (एक त्रिआबन्ध)
(ख) C5H8 (एक त्रिआबन्ध)

उत्तर:
(क) C4H8 (एक द्विआबन्ध)

(ख) C5H8 (एक त्रिआबन्ध)

प्रश्न 13.4
निम्नलिखित यौगिको के ओजोनीअपघटन के पश्चात् बनने वाले उत्पादों के नाम लिखिए –

  1. पेन्ट-2-ईन
  2. 3, 4-डाइमेथिल-हेप्ट-3-ईन
  3. 2-एथिल ब्यूट-1-ईन
  4. 1-फेनिल ब्यूट-1-ईन

उत्तर:

प्रश्न 13.5
एक ऐल्कीन ‘A’ के ओजोनी अपघटन से पेन्टेन-3-ओन तथा एथेनॉल का मिश्रण प्राप्त होता है। ‘A’ का I. U. P. A. C नाम तथा संरचना दीजिए।

उत्तर:
ऐल्कीन ‘A’ 3 – एथिल पेन्ट – 2 – ईन है। इसकी संरचना तथा होने वाली ओजोनी अपघटन अभिक्रिया निम्नलिखित है –

प्रश्न 13.6
एक ऐल्केन A में तीन C – C आठ C – H सिग्मा आबन्ध तथा एक C – C पाई आबन्ध हैं। A ओजोनी अपघटन से दो अणु ऐल्डिहाइड, जिनका मोलर द्रव्यमान 44 है, देता है। A का आई०यू०पी०ए०सी० का नाम लिखिए।

उत्तर:
44 मोलर द्रव्यमान वाला ऐल्डिहाइड (ओजोन अपघटन का उत्पाद) CH3CHO है। चूँकि ऐल्कीन ‘A’ एक ही ऐल्डिाइड के दो अणु बनाता है, अत: ऐल्कीन का संरचना सूत्र निम्नवत् हैं –

प्रश्न 13.7
एक ऐल्कीन, जिसके ओजोनी अपघटन से प्रोपेनल तथा पेन्टेन-3-ओन प्राप्त होते हैं, का संरचनात्मक सूत्र क्या है?

उत्तर:
ऐल्कीन का नाम 3-एथिल हेक्स-3-ईन है। जिसका संरचनात्मक सूत्र तथा ओजोनी अपघटन अभिक्रिया निम्नवत् है –

प्रश्न 13.8
निम्नलिखित हाइड्रोकार्बनों के दहन की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए –

  1. ब्यूटेन
  2. पेन्टीन
  3. हेक्साइन
  4. टॉलूईन

उत्तर:
1. ब्यूटेन:

2. पेन्टीन:

3. हेक्साइन:

4. टॉलूईन:

प्रश्न 13.9
हेक्स-2-ईन की समपक्ष (सिस) तथा विपक्ष (ट्रांस) संरचनाएँ बनाइए। इनमें से कौन-से समावयव का क्वथनांक उच्च होता है और क्यों?

उत्तर:

समपक्ष (सिम)-हेक्स-2-ईन का क्वथनांक उच्च होता है; अतः इसमें उच्च द्विध्रुव-आघूर्ण होता है। अतः इसमें वान्डर-वाल्स आकर्षण बल अधिक होता है।

प्रश्न 13.10
बेन्जीन में तीन द्वि-आबन्ध होते हैं, फिर भी यह अत्यधिक स्थायी है, क्यों?

उत्तर:
बेन्जीन विभिन्न अनुनादी संरचनाओं का संकर है। केकुले द्वारा दो मुख्य संरचनाएँ (क) तथा (ख) दी गईं। अनुनाद संरचना को षट्भुजीय संरचना में वृत्त या बिन्दु-वृत्त द्वारा (ग) में प्रदर्शित किया गया है।

वृत्त, बेन्जी वलय के छह कार्बन परमाणु पर विस्थानीकृत (delocalised) छह इलेक्ट्रॉनों को दर्शाता है। अनुनाद के कारण द्विबन्धों को प्रदर्शित करने वाले इलेक्ट्रॉनों की कार्बन परमाणुओं के मध्य उपस्थिति निश्चित नहीं होती, जैसा कि साधारण ऐल्कीनों में होता है। ये एक बड़े क्षेत्र में वितरित रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप आवेश-घनत्व घटता है। इसके अतिरिक्त अनुनादी संकर की ऊर्जा भी घटती है। बेन्जीन की अनुनादी ऊर्जा, जो सम्मिलित संरचनाओं की ऊर्जा तथा अनुनादी संकर की ऊर्जा का अन्तर होती है, का मान 150kJmol-1 पाया गया है। यह दहन की ऊष्मा तथा हाइड्रोजनीकरण की ऊष्मा के उपलब्ध आँकड़ों से पुन: निश्चित होता है। अत: बेन्जीन तथा ऐरीन परिवार के अन्य सदस्य स्थायी यौगिकों की भाँति व्यवहार करते हैं तथा योगात्मक अभिक्रियाओं के स्थान पर प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में भाग लेते हैं।

प्रश्न 13.11
किसी निकाय द्वारा ऐरोमैटिकता प्रदर्शित करने के लिए आवश्यक शर्ते क्या हैं?

उत्तर:
सामान्यतः एक यौगिक ऐरोमैटिक कहलाता है, जबकि वह निम्नलिखित शर्तों का पालन करता है –

  1. यौगिक आवश्यक रूप से चक्रीय होना चाहिए तथा वलय में एक या अधिक द्विबन्ध होने चाहिए।
  2. असंतृप्तता के विपरीत, जैसा कि आण्विक सूत्र से सिद्ध होता है, इन्हें संतृप्त यौगिकों की भाँति व्यवहार करना चाहिए अर्थात् इन्हें योगात्मक अभिक्रियाओं का विरोध करना चाहिए तथा इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में भाग लेना चाहिए।
  3. यौगिक अनुनाद प्रदर्शित करने में सक्षम होना चाहिए।
  4. ऐरोमैटिकता प्रदर्शित करने के लिए सबसे आवश्यक शर्त यह है कि यौगिक को हकल के नियम का अनुसरण करना चाहिए। इसके अनुसार यदि एक चक्रीय यौगिक के पास (4n + 2) π – इलेक्ट्रॉन हों तो वह ऐरोमैटिक यौगिक की भाँति व्यवहार करेगा। यहाँ n = 0, 1, 2, 3 ….. आदि हो सकते हैं।

प्रश्न 13.12
इनमें से कौन से निकाय ऐरोमैटिक नहीं हैं? कारण स्पष्ट कीजिए –

उत्तर:

  1. इसमें (4n+2) π – इलेक्ट्रॉन हैं अर्थात् 6-2 इलेक्ट्रॉन हैं जो कि विस्थानीकृत नहीं हैं। अतः यह ऐरोमैटिक नहीं
  2. इसमें 4-1 इलेक्ट्रॉन हैं। जिससे हकल के नियम का पालन नहीं होता है। अतः यह ऐरोमैटिक नहीं है।
  3. इसमें 8-7 इलेक्ट्रॉन हैं जिससे हकल के नियम का पालन नहीं होता है। अतः यह ऐरोमैटिक नहीं है।

प्रश्न 13.13
बेन्जीन को निम्नलिखित में कैसे परिवर्तित करेंगे –

  1. P – नाइट्रोनोमोबेन्जीन
  2. m – नाइट्रोक्लोरोबेन्जीन
  3. p – नाइट्रोटॉलूईन
  4. ऐसीटोफीनोन

उत्तर:
1. बेन्जीन से p – नाइट्रोनोमोबेन्जीन:

2. बेन्जीन से p – नाइट्रोटॉलूईन:

3. बेन्जीन से p – नाइट्रोबोमोबेन्जीन:

4. बेन्जीन से ऐसीटोफीनोन:

प्रश्न 13.14
ऐल्केन H3C – CH2 – C(CH3)2 – CH2 – CH(CH3)2 में 1,2° तथा 3°कार्बन परमाणुओं की पहचान कीजिए तथा प्रत्येक कार्बन से आबन्धित कुल हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या भी बताइए।

उत्तर:

  1. एक हाइड्रोजन परमाणु से जुड़ा 3° कार्बन परमाणु होता
  2. दो हाइड्रोजन परमाणुओं से जुड़ा 2° कार्बन परमाणु होता है।
  3. तीन हाइड्रोजन परमाणुओं से जुड़ा 1° कार्बन परमाणु होता है।

प्रश्न 13.15
क्वथनांक पर ऐल्केन की श्रृंखला के शाखन का क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:
ऐल्केनों के क्वथनांकों में आण्विक द्रव्यमान में वृद्धि के साथ नियत वृद्धि होती है। यह इस तथ्य पर आधारित है कि आण्विक आकार अथवा अणु का पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ने के साथ-साथ उनमें अन्तराण्विक वान्डरवाल्स बल बढ़ते हैं। शाखित श्रृंखलाओं की संख्या के बढ़ने के साथ-साथ अणु की आकृति लगभग गोल हो जाती है, जिससे गोलाकार अणुओं में कम आपसी सम्पर्क स्थल दुर्बल अन्तराण्विक बल होते हैं।

इसलिए इनके क्वथनांक कम होते हैं। उदाहरणार्थ-पेन्टेन के तीन समावयव ऐल्केनों (पेन्टेन, 2 – मेथिल ब्यूटेन तथा 2, 2 – डाइमेथिल प्रोपेन) के क्वथनांकों को देखने से यह पता चलता है कि पेन्टेन में पाँच कार्बन परमणुओं की एक सतत श्रृंखला का उच्च क्वथनांक (309.1K) है, जबकि 2, 2 – डाइमेथिल प्रोपेन 282.5K पर उबलती है।

प्रश्न 13.16
प्रोपीन पर HBr के संकलन से 2 – ब्रोमोप्रोपेन बनता है, जबकि बेंजॉयल परॉक्साइड की उपस्थिति में यह अभिक्रिया 1 – ब्रोमोप्रोन देती है। क्रियाविधि की सहायता से इसका कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
प्रथम स्थिति:

इस स्थिति में क्रियाविधि निम्नानुसार दर्शाई जा सकती है –

द्वितीय स्थिति –

प्रश्न 13.17
1, 2 – डाइमेथिलबेन्जीन (o – जाइलीन) के ओजोनी अपघटन के फलस्वरूप निर्मित उत्पादों को लिखिए। यह परिणाम बेन्जीन की केकुले संरचना की पुष्टि किस प्रकार करता है?

उत्तर:
1, 2 डाइमेथिल बेन्जीन (o – जाइलीन) के ओजोनी अपघटन के फलस्वरूप ब्यूटेन – 2,3 – डाइऑन तथा एथेन डाइ-अल (ग्लाइआक्सिल) बनते हैं।

ये सभी उत्पाद वलय में तभी सम्भव होते हैं यदि एकान्तर क्रम में तीन द्विबन्ध हों। ओजोनी अपघटन के उत्पाद केकुल संरचना की पुष्टि करते हैं।

प्रश्न 13.18
बेन्जीन, हैक्सेन तथा एथाइन को घटतें हुए अम्लीय व्यवहार के क्रम में व्यवस्थित कीजिए और इस व्यवहार का कारण बताइए।

उत्तर:
अम्लीय व्यवहार का घटता क्रम –
एथाइन > बेन्जीन > n – हेक्सेन

एथाइन में, ‘C’ sp – संकरित है जो सर्वाधिक विद्युत-ऋणी होता है, यह इलेक्ट्रॉनों के साझे युग्म को अपनी ओर आकर्षित करता है तथा सरलतापूर्वक H+ मुक्त कर देता है। बेन्जीन में, प्रत्येक ‘C’ sp2 संकरित है अर्थात् कम विद्युत-ऋणी है, यह कम सरलता से H+ मुक्त करता है। हेक्सेन में, प्रत्येक ‘c sp3 संकरित है अर्थात् न्यूनतम विद्युत-ऋणी है, यह सरलता से H+ मुक्त नहीं करता। इसलिए सबसे कम अम्लीय व्यवहार दर्शाता है।

प्रश्न 13.19
बेम्जीन इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ सरलतापूर्वक क्यों प्रदर्शित करती हैं, जबकि उसमें नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन कठिन होता है?

उत्तर:
बेन्जीन में द्विआबन्ध व्यक्त करने वाले तीन π – इलेक्ट्रॉनों के युग्मों की उपस्थिति के कारण इलेक्ट्रॉन घनत्व उच्च होता है। यद्यपि इलेक्ट्रॉन-घनत्व अनुनाद के कारण बहुत अधिक विस्थानीकृत हो जाता है, परन्तु फिर भी इलेक्ट्रॉनस्नेही इस पर सरलता से आक्रमण करके इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करते हैं। यद्यपि बेन्जीन नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन प्रदर्शित नहीं करता; क्योंकि नाभिकस्नेही कम इलेक्ट्रॉन घनत्व केन्द्र पर आक्रमण को प्राथमिकता देते हैं।

प्रश्न 13.20
आप निम्नलिखित यौगिकों को बेन्जीन में कैसे परिवर्तित करेंगे?

  1. एथाइन
  2. एथीन
  3. हेक्सेन

उत्तर:
1. एथाठन से बेन्जीन:

2. एथीन से बेन्जीन:

3. हेक्सेन से बेन्जीन:

प्रश्न 13.21
उन सभी एल्कीनों की संरचनाएँ लिखिए, जो हाइड्रोजेनीकरण करने पर 2 – मेथिल ब्यूटेन देती हैं।

उत्तर:

प्रश्न 13.22
निम्नलिखित यौगिकों को उनकी इलेक्ट्रॉनस्नेही (E+) के प्रति घटती आपेक्षिक क्रियाशीलता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए –
(क) क्लोरोबेन्जीन, 2, 4 – डाइनाइट्रोक्लोरो-बेन्जीन, p – नाइट्रोक्लोरोबेन्जीन
(ख) टॉलूईन, P – H3C – C6H4 – NO2, P-O2N – C6H4 – NO2

उत्तर:
इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन की ओर क्रियाशीलता का घटता क्रम निम्नवत् है –
(क) क्लोरोबेंजीन > p – नाइट्रोक्लोरोबेन्जीन > 2,4 – डाइनाइट्रोक्लोरो बेन्जीन
(ख) टॉलूईन > p – नाइट्रोटॉलूईन > p – डाइनाइट्रो-बेन्जीन

प्रश्न 13.23
बेन्जीन, m – डाइनाइट्रोबेंजीन तथा टालूईन में से किसका नाइटीकरण आसानी से होता है और क्यों?

उत्तर:
चूँकि – CH3 समूह इलेक्ट्रॉन विमुक्तन समूह होता है, अत: टालूईन का नाइट्रीकरण आसानी से हो जाता है। – CH3 समूह में +I प्रभाव होता है जो कि वलय को सक्रिय कर देता है।

प्रश्न 13.24
बेन्जीन के एथिलीकरण में निर्जल AlCl3 के स्थान पर कोई दूसरा लूईस अम्ल सुझाइए।

उत्तर:
निर्जल AlCl3 के स्थान पर फेरिक क्लोराइड अन्य लुईस अम्ल है, को प्रयोग कर सकते हैं। यह इलेक्ट्रॉन स्नेही (C2H5+) उत्पन्न करने में सहायक है।

प्रश्न 13.25
क्या कारण है कि वुर्ट्स अभिक्रिया से विषम संख्या कार्बन परमाणु वाले विशद्ध ऐल्केन बनाने के लिए प्रयुक्त नहीं की जाती? एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
वु अभिक्रिया से विषम संख्या कार्बन परमाणु वाले विशुद्ध ऐल्केन बनाने के लिए दो भिन्न हैलोऐल्केनों की आवश्यकता होती है, इनमें से एक विषम संख्या तथा दूसरा सम संख्या कार्बन परमाणु होना चाहिए। उदाहरणार्थ-ब्रोमोएथेन तथा 1-ब्रोमोप्रोपेन अभिक्रिया के परिणामस्वरूप पेन्टेन देते हैं।

परन्तु सहउत्पाद भी बनेंगे जबकि अभिक्रिया में भाग ले रहे सदस्य पृथक् रूप में भी अभिक्रिया करेंगे। उदाहरणार्थ-ब्रोमोएथेन, ब्यूटेन देता है तथा 1 – ब्रोमोप्रोपेन हेक्सेन देता है।

अत: ब्यूटेन, पेन्टेन तथा हेक्सेन का मिश्रण प्राप्त होगा। इस मिश्रण से प्रत्येक घटक को पृथक् करना अत्यधिक कठिन कार्य होगा।

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