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Chapter 2 – नियंत्रण और समन्वय

नियंत्रण और समन्वय

जीवों में किसी कार्य को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए अंगतंत्रों (जैसे, पाचन तंत्र, श्‍वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, परिसंचरण तंत्र आदि।) के विभिन्न अंगों के बीच समन्वय (ताल-मेल) स्थापित करने के लिए नियंत्रण की आवश्यकता होती है। बिना नियंत्रण के अंग व्यवस्थित ढंग से कार्य नहीं कर सकेंगे। इसलिए जीवों के विभिन्न अंगों और अंगतंत्रों के बीच समन्वय एवं नियंत्रण उनके कुशल कार्यों के लिए अनिवार्य है।

एककोशीकीय जीवों जैसे क्लैमाइडोमोनास, अमीबा आदि में सभी जैव क्रियाओं का संचालन, समन्वय तथा उनका नियंत्रण एक कोशिका के द्वारा होता है।

बहुकोशीकीय जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय के लिए अलग-अलग अंग एवं अंगतंत्र होते हैं।

अनुवर्तन- पौधों द्वारा बाह्य उद्दीपनों को ग्रहण कर उसके अनुसार गति को अनुवर्तन या अनुवर्तनी गति कहते हैं।

अनुवर्तन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं—

1. प्रकाश-अनुवर्तन- पौधे के अंगों द्वारा प्रकाश की ओर गति को प्रकाशानुवर्तन कहते हैं।
2. गुरुत्वानुवर्तन- पौधे के अंगों द्वारा गुरुत्वाकर्षण की दिशा में गति को गुरुत्वानुवर्तन कहते हैं।
3. जलानुवर्तन- पौधे के अंगों द्वारा जल की ओर गति को जलानुवर्तन कहते हैं।

पादप हार्मोन- पौधों की जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करनेवाले रासायनिक पदार्थ को पादप हार्मोन या फाइटोहॉर्मोन कहते हैं।

रासायनिक संघटक तथा कार्यविधि के आधार पर पादप हार्मोन को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है- 1. ऑक्जिन, 2. जिबरेलिन्स, 3. साइटोकाइनिन, 4. ऐबसिसिक एसिड और 5. एथिलीन।

ऑक्जिन के कार्य- यह कोशिका विभाजन और कोशिका दिर्घन में सहायक होता है। ऑक्जिन तने के वृद्धि में भी सहायक होते हैं। यह प्रायः बीजरहित फलों के उत्पादन में भी सहायक होते हैं। यह पौधों के ऊपरी भाग में पाया जाता है। यह प्रकाशानुवर्तन के लिए उतरदयी है।

जिबरेलिन्स के कार्य- यह पौधे के स्तंभ की लंबाई में वृद्धि करते हैं। इनके उपयोग से बड़े आकार के फलों एवं फूलों का उत्पादन किया जाता है। बीजरहित फलों के उत्पादन में ये ऑक्जिन की तरह सहायक होते हैं।

साइटोकाइनिन के कार्य-ये पौधों में जीर्णता को रोकते हैं एवं पर्णहरित को काफी समय तक नष्ट नहीं होने देते हैं। इससे पित्तयाँ अधिक समय तक हरी और ताजी बनी रहती है।

ऐबसिसिक एसिड के कार्य- यह ऐसा रासायनिक यौगिक है, जिसे किसी भी पौधे पर छिड़कने पर शीघ्र ही पित्तयों का विलगन हो जाता है। यह पित्तयों के मुरझाने और विलगन होने में सहायक होते हैं।

एथिलीन के कार्य- यह पौधे के तने के अग्रभाग में बनता है और विसरित होकर फलों के पकाने में सहायता करता है। अतः इसे फल पकानेवाला हार्मोन भी कहा जाता है। कृत्रिम रूप से फलों को पकाने में इसका उपयोग किया जाता है।

जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय

जंतुओं में विभिन्न क्रियाओं के बीच समन्वय और नियंत्रण निम्नांकित दो प्रकार के होते हैं।

1. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय

जंतुओं के शरीर में एक विशेष प्रकार का ऊतक पाया जाता है, जिसे तंत्रिका ऊतक कहते हैं। तंत्रिका ऊतक जिस कोशिका का बना होता है, उसे तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहते हैं। तंत्रिका ऊतक से तंत्रिका तंत्र का निर्माण होता है। तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा विभिन्न प्रकार की तंत्रिकाओं से बना होता है।

तंत्रिका तंत्र आंतरिक संवेदना या उद्दीपन जैसे प्यास, भूख, रोग इत्यादि तथा बाह्य संवेदना जेसे भौतिक, रासायनिक, यांत्रिक या विद्युतीय प्रभाव को ग्रहण करने, शरीर के विभिन्न भागों में उनका चालन करने तथा संवेदनाओं का प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए अंगों को प्रेरित करने का कार्य करता है।

तंत्रिका कोशिका- यह मानव शरीर की सबसे लम्बी कोशिका होती है। प्रत्येक न्यूरॉन में एक ताराकार कोशिकाकाय होता है जिसे साइटॉन कहते हैं। साइटॉन से अनेक पतले तंतु निकले होते हैं। इन तंतुओं में से जो अधिक लंबा होता है, उसे एक्सॉन कहते हैं।

एक्सॉन बहुत लंबा होता है तो वह तंत्रिका तंतु कहलाता है। कई तंत्रिका तंतुओं के मिलने से तंत्रिका बनता है।

मनुष्य की मस्तिष्क- मस्तिष्क एक अत्यंत महŸवपूर्ण कोमल अंग है। तंत्रिका तंत्र के द्वारा शरीर की क्रियाओं के नियंत्रण और समन्वय में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इसी की होती है। मस्तिष्क क्रेनियम नामक हड्डी से सुरक्षित रहता है। इन हड्डीयों के अंदर मस्तिष्क मेनिंजीज झिल्ली से ढ़का होता है। मेनिंजीज और मस्तिष्क के बीच सेरीब्रोस्पाइनल द्रव्य भरा होता है।

इसका औसतन आयतन लगभग 1650 ml तथा औसत भार करीब 1.5 kg होता है। मस्तिष्क को प्रमुख तीन भागो में बाँटा गया है-
1. अग्रमस्तिष्क
2. मध्यमस्तिष्क
3. पश्चमस्तिस्क

1. अग्रमस्तिष्क – यह दो भागों (क) प्रमस्तिष्क या सेरिब्रम तथा (ख) डाईएनसेफ़्लॉन में बाँटा होता है।

(क) प्रमस्तिष्क या सेरिब्रम- यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है। यह मस्तिष्क का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। यह बुद्धि और चतुराई का केंद्र है। मानव में किसी बात को सोचने-समझने की शक्ति, स्मरण शक्ति, कार्य को करने की प्रेरणा, घृणा, प्रेम,भय,हर्ष,कष्ट के अनुभव जैसी क्रियाओ का नियंत्रण और समन्वय सेरीब्रम के द्वारा ही होता है। यह मस्तिष्क के अन्य भागों के कार्यो पर भी नियंत्रण रखता है। जिस व्यक्ति में यह औसत से छोटा होता है। वह व्यक्ति मंदबुद्धि होता है।

(ख) डाइएनसेफ्लोन- यह कम या अधिक ताप के आभास तथा दर्द और रोने जैसी क्रियाओ का नियंत्रण करता है।

2. मध्यमस्तिष्क- यह संतुलन एवं आँख की पेशियों को नियंत्रित करने के केंद्र होते हैं।

3. पश्चमस्तिस्क- यह दो प्रकार के होते हैं।
(क) अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम
(ख) मस्तिष्क स्टेम

(क) अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम- अनुमस्तिष्क मुद्रा समन्वय,संतुलन, ऐक्षिक पेशियों की गति इत्यादि का नियंत्रण करता है। यदिमस्तिष्क से सेरीबेलम  को नष्ट कर दिया जाय तो सामान्य ऐच्छिक गतियाँ असंभव हो जाएगी। उदहारण के लिए हाथों का परिचालन ठीक से नहीं होगा, अर्थात वस्तुओं को पकड़ने में हाथों को कठिनाई होगी। पैरों द्वारा चलना मुश्किल हो जायेगा आदि। इसका कारण यह है की हाथों और पैरों की ऐक्षिक पेशियों का नियंत्रण सेरीबेलम के नष्ट होने से समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार, बातचीत करने में कठिनाई होगी, क्यूंकि तब जीभ और जबरों की  पेशियों के कार्यों का समन्वय नहीं हो पायेगा इत्यादि।

ख. मस्तिष्क स्टेम –
1. पॉन्स बैरोलाई
2. मेडुला आब्लांगेटा

1. पॉन्स बैरोलाई – यह श्‍वसन को नियंत्रित करता है।

2.  मेडुला आब्लांगेटा- मेडुला द्वारा आवेगो का चालन मस्तिष्क और मेरुरज्जु के बीच होता है। मेडुला में अनेक तंत्रिका केंद्र होते है जो हृदय स्पंदन या हृदय की धड़कन, रक्तचाप और श्‍वसन गति की दर का नियंत्रण करते है। मस्तिष्क के इसी भाग द्वारा विभिन्न प्रतिवर्ती क्रियाओ जैसे खाँसना,छींकना,उलटी करना पाचक रसो के स्त्राव इत्यादि का नियंत्रण होता है।

मस्तिष्क के कार्य

1. आवेग ग्रहण- मस्तिष्क सभी संवेदी अंगों से आवेगो को ग्रहण करता है। मस्तिष्क में ही ग्रहण किये गए आवेगों का विश्लेषण भी होता है।

2. ग्रहण किये गए आवेगों की अनुक्रिया- विभिन्न संवेदी अंगों से जो आवेग मस्तिष्क में पहुँचते हैं, विश्लेषन के बाद मस्तिष्क उनकी अनुक्रिया के लिए उचित निर्देश निर्गत करता है।

3. विभिन्न आवेगों का सहसम्बन्ध- मस्तिष्क को भिन्न-भिन्न संवेदी अंगो से एक साथ कई तरह के आवेग या संकेत प्राप्त होते है। मस्तिष्क इन आवेगों को सहसंबंधित कर विभिन्न शारीरिक कार्यों का कुशलतापूर्वक समन्वय करता है।

4. सूचनाओं का भण्डारण- मानव मस्तिष्क का यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य सूचनाओं को भंडार करना है। मस्तिष्क में विभिन्न सूचनाएं चेतना या ज्ञान के रूप में संचित रहती है। इसलिए मस्तिष्क को ‘चेतना का भंडार‘ या ज्ञान का भंडार कहा जाता है।

प्रतिवर्ती चाप

न्यूरोनों  में आवेग का संचरण एक निश्चित पथ में होता है। इस पथ को प्रतिवर्ती चाप कहते है।

हार्मोन- ये विशिष्ट कार्बनिक यौगिक है जो बहुत कम मात्रा में अन्तः स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित होते है। इनकी बहुत थोड़ी मात्रा ही विभिन्न प्रकार के शारीरिक क्रियात्मक कार्यों के नियंत्रण और समन्वय के लिए पर्याप्त होती है।

हार्मोन रक्त-परिसंचरण के माध्यम से विभिन्न अंगों तक पहुँचते हैं।

मनुष्य के अंतःस्त्रावी तंत्र
मनुष्य के शरीर में पाई जानेवाली अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ निम्नलिखित हैं-
1. पिट्युटरी ग्रंथि, 2. थाइरॉइड ग्रंथि, 3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि, 4. एड्रिनल ग्रंथि, 5. अग्न्याशय की लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ और 6. जनन ग्रंथियाँ : अंडाशय तथा वृषण

1. पिट्युटरी ग्रंथि-
पिट्युटरी ग्रंथि कई अन्य अंतःस्त्रावी ग्रंथियों का नियंत्रण करती है, इसलिए इसे मास्टर ग्रंथि कहते हैं।
पिट्युटरी ग्रंथि दो भागों में बँटा होता है- अग्रपिंडक और पश्चपिंडक
अग्रपिंडक द्वारा स्त्रावित वृद्धि हार्मोन है तथा पश्चपिंडक द्वारा स्त्रावित हार्मोन शरीर में जल-संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है।

2. थाइरॉइड ग्रंथि- इस ग्रंथि से थाइरॉक्सिन हार्मोण प्रवाहित होता है। इस हार्मोन में आयोडीन अधिकमात्रा में रहता है।थाइरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसाके सामान्य उपापचय का नियंत्रण करता है। अतः यह शरीर के सामान्य वृद्धि, विशेषकर हड्डियों, बालों इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है।

आयोडिन की कमी से थाइरॉइड ग्रंथि द्वारा बननेवाला हॉर्मोन थाइरॉक्सिन कम बनता है। इस हार्मोन के बनने की गति को बढ़ाने के प्रयास में कभी-कभी थाइडॉइड ग्रंथि बढ़ जाती है,जिसे घेघा या गलगंड कहते है। थाइरॉक्सिन की कमी से शारीरिक तथा मानसिक वृद्धि प्रभावित होती है।

3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि- इसके द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन रक्त में कैल्सियम की मात्रा नियंत्रण करते हैं।

4. एड्रिनल ग्रंथि- एड्रीनल ग्रंथि के दो भाग होते हैं-बाहरी कॉर्टेक्स औरअंदरूनी मेडुला

एड्रीनल कॉर्टेक्स (बाहरी कॉर्टेक्स) द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन-

1. ग्लूकोकॉर्टिक्वायड्स- ये कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा-उपापचय का नियंत्रण करते हैं।

2. मिनरलोकॉर्टिक्वायड्स- इनका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुनः अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है। यह शरीर में जल संतुलन को भी नियंत्रित करता है।

3. लिंग हार्मोन- ये हार्मोन पेशियों तथा हड्डियों के परिवर्द्धन, बाह्यलिंगों बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन-आचरणका नियंत्रण करते हैं।

एड्रीनल मेडुला(अंदरूनी मेडुला) द्वारा स्त्रावित हार्मोन और उसके कार्य-

एड्रीनल ग्रंथि के इस भाग द्वारा निम्नलिखित दो हार्मोन स्त्रावित होते हैं-

1. एपिनेफ्रीन- अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव, डर, गुस्सा एवं उत्तोजना की स्थिति में इस हार्मोन का स्त्राव होता है।

2. नॉरएपिनेफ्रीन- ये समान रूप से हृदय-पेशियों की उत्तेजनशीलता एवं संकुचनशीलता को तेज करते है

3. अग्नयाशय की लैंगरहैंस की द्विपिकाएँ

इसके हार्मोन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करते है। ग्लूकोस का मात्रा का नियंत्रण इंसुलिन नामक हार्मोन के द्वारा होता है।

6. जनन ग्रन्थियाँ ( अंडाशय तथा वृषण )

अंडाशय के द्वारा कई हार्मोन का स्त्राव होता है बालिकाओ के शरीर में यौवनावस्था में होनेवाले सभी परिवर्तन इन हार्मोन के कारण होते है।

वृष्ण द्वारा स्त्रावित हार्मोन को टेस्टोस्टेरॉन कहते हैं।

अण्डाशय द्वारा स्त्रावित हार्मोन एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रॉन है।

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य—

  • मेरुरज्जु मेडुला से निकलता है।
  • मस्तिष्क का अनुमस्तिष्क भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है।
  • हृदय का धड़कना अनैच्छिक क्रिया है।
  • दो न्यूरॉन के मध्य खाली स्थान को सिनेप्स कहते हैं।
  • शरीर का संतुलन सेरीबेलम बनाए रखता है।
  • मस्तिष्क सोचने, हृदय धड़कन और शरी के संतुलन के लिए उत्तरदायी है।
  • पॉन्स, मेडुला और अनुमस्तिष्क पश्च मस्तिष्क का हिस्सा है।
  • दिमाग संवेदीग्राही अंग नहीं है।
  • तंत्रिका तंत्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को नेफ्रॉन कहते हैं।
  • मानव शरीर की सबसे लंबी कोशिका न्यूरॉन है।
  • मानव शरीर का औसत भार 4 ज्ञह होता है।
  • मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि यकृत या लीवर है।
  • रक्त में ग्लूकोज की मात्रा का नियंत्रण इंसुलिन के द्वारा होता है।
  • एड्रिनल गंथि रूधिर चाप का नियंत्रण करता है।
  • ग्वाइटर या घेघा रोग आयोडीन की कमी के कारण होता है।
  • अवटुग्रंथि को थायरॉक्सिन हार्मोन बनाने के लिए सोडियम, क्लोरिन तथा फॉस्फोरस की आवश्यता होती है।
  • टेस्टेस्टेरॉन वृषण द्वारा स्त्रावित होता है।
  • किशोरावस्था में होनेवाले शारीरिक परिवर्तन टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजेन के कारण होता है।
  • पिट्युटरी ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन वृद्धि हार्मोन है।
  • हार्मोन को रासायनिक दूत कहा जाता है।
  • एड्रिनलिन हार्मोन को आपातकाल का हार्मोन कहा जाता है।
  • नर जनन हार्मोन एंड्रोजन है।
  • इन्सुलीन की कमी से मधुमेह नामक रोग होता है।
  • जड़ का अधोगामी वृद्धि गुरुवानुवर्तन कहलाता है।
  • ऑक्जिन और जिबरेलिन्स पौधों के तनों की लंबाई में वृद्धि करता है।
  • ऐबसिसिक एसिड के प्रभाव से पित्तयाँ मुरझा जाती है।
  • फलों को पकाने का कार्य इथीलीन हार्मोन के द्वारा होता है।

Subjective Questions

प्रश्‍न 1. प्रतिवर्ती क्रिया तथा टहलने के बिच क्‍या अंतर है ?
उत्तर – प्रतिवर्ती क्रिया तथा टहलने की क्रिया में अंतर :

प्रतिवर्ती क्रियाटहलना
(i) यह मेरूरज्‍जु द्वारा संपादित किया जाता है।
(ii) यह क्रिया अवचेतन मस्तिष्‍क की अवस्‍था में होती है।
(iii)  य‍ह बदला नहीं जा सकता।
यह सोच-समझ कर किया जाता है।यह क्रिया प्रमस्तिष्‍क के नियंत्रण की अवस्‍था में होती है।यह बदला जा सकता है।

प्रश्‍न 2. मस्तिष्क का कौन-सा भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है ?
उत्तर—पश्चमस्तिष्क में स्थित अनुमस्तिष्क नामक भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है।

प्रश्‍न 3. हम एक अगरबत्ती की गंध का पता कैसे लगाते हैं ?
उत्तरअगरबत्ती या किसी भी गन्ध का पता हम अग्रमस्तिष्क से करते हैं। इसमें गन्ध का पता करने के लिए संवेदी केन्द्र होता है, जिससे गंध की सूचना प्राप्त होती है

प्रश्‍न 4. प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की क्या भूमिका है ?
उत्तर – मस्तिष्क शरीर का मुख्य समन्वय केन्द्र है। यह मेरुरज्जु से प्राप्त की गई सूचनाओं पर सोचने एवं उनका विश्लेषण करने का कार्य करता है। मस्तिष्क में प्रतिवर्ती क्रियाओं के संदेश भेजे जाते हैं। कुछ प्रतिवर्ती क्रियाएँ सीधे मस्तिष्क द्वारा ही नियंत्रित होती हैं। तीव्र प्रकाश में हमारे नेत्र की पुतली का संकुचित होना इसका उदहारण है।

प्रश्‍न 5. जंतुओं में रासायनिक समन्वय कैसे होता है ?
उत्तर—जंतुओं में रासायनिक समन्वय कुछ रासायनिक पदार्थों, जिन्हे हॉर्मोन कहते हैं, के द्वारा होता हैं। ये अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्त्रावित होते हैं। स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन के समय और मात्रा का नियंत्रण पुनभर्रण क्रिया विधि से किया जाता हैं।

प्रश्‍न 6. आयोडीनयुक्त नमक के उपयोग की सलाह क्यों दी जाती है ?
उत्तर—अवटु ग्रंथि को थायरॉक्सिन हॉर्मोन बनाने के लिए आयोडीन आवश्यक है। थायरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के उपापचय क्रिया को हमारे शरीर में नियंत्रित करता है। थायरॉक्सिन के संश्लेषण के लिए आयोडीन अनिवार्य है। आयोडीन की कमी से घेंघा रोग होता है। इसी कारण आयोडीनयुक्त नमक के उपयोग की सलाह दी जाती है।

प्रश्‍न 7. मधुमेह के कुछ रोगियों की चिकित्सा इंसुलिन का इंजेक्शन देकर क्यों किया जाता है?
उत्तर—मधुमेह के रोगी में अग्न्याशय ग्रंथि की कम सक्रियता के कारण इंसुलिन नामक हॉर्मोन कम मात्रा में स्रावित होती है, इसलिए रक्त में शर्करा बढ़ता जाता है। अतः इंसुलिन का इंजेक्शन देकर रोगी के रक्त की शर्करा को नियंत्रित किया जाता है।

प्रश्‍न 8. पादप में प्रकाशानुवर्तन किस प्रकार होता है ?
उत्तर—पादप में प्रकाशानुवर्तन प्रकाश के उद्दीपन के प्रभाव से प्रकाश की ओर होता है। प्रकाशानुवर्तन में पादप प्रकाश की ओर मुड़ता है जबकि जड़ उसके विपरीत दिशा अर्थात् जमीन की ओर में मुड़ती है।

प्रश्‍न 9. पादप में रासायनिक समन्वय किस प्रकार होता है ?
उत्तर—पादपों में कोशिकाओं द्वारा कुछ रासायनिक पदार्थ स्रावित होते हैं। वे पादप हॉर्मोन कहलाते हैं। पादप हॉर्मोन पौधों में वृद्धि और विकास के साथ उनमें समन्वय स्थापित करते हैं। ये पादप हॉर्मोन क्रिया स्थान से दूर कहीं स्रावित होकर विसरण द्वारा उस स्थान तक पहुँचकर काम करते हैं।

प्रश्‍न 10. आयोडीन युक्‍त नमक के उपयोग की सलाह क्‍यों दी जाती है? अथवा, आयो‍डीन की कमी से कौन-सी बीमारी होती है?
उत्तर—अवटुग्रंथि को थायरॉक्सिन हॉमोन बनाने के लिए आयो‍डीन आवश्‍यक होता है। हमारे शरीर में प्रोटीन और वसा के उपापचय की थॉयरॉक्सिन कार्बोहाईड्रेट नियंत्रित करता है। यह वद्धि के संतुलन के लिए आवश्‍यक होता है। यदि हमारे भोजन में आयोडीन की कमी रहेगी तो हम गॉयटर से ग्रसित हो सकते हैं। इस बीमारी का लक्षण फूली हुई गर्दन या बाहर की ओर उभरे हुए नेत्र-गोलक हो सकते हैं। इस रोग से बचने तथा आयोडीन की शरीर में कमी दूर करने के लिए आयोडीन युक्‍त नमक के उपयोग की सलाह दी जाती है।

प्रश्‍न 11. मधुमेह से आप क्‍या समझते हैं?
उत्तर—जब हमारे शरीर के अग्‍नयाश्‍य में इन्‍सुलिन का पहुँचना कम हो जाता है तो खून में ग्‍लूकोज का स्‍तर बढ़ जाता है। इस स्थिति को मधुमेह (डायबिटीज) कहा जाता है। इन्‍सुलिन एक हॉर्मोन है, जो कि पाचक ग्रं‍थि द्वारा बनता है। इसका कार्य शरीर के अन्‍दर भोजन को एनर्जी में बदलने का होता है। यहीं वह हॉर्मोन होता है जो हमारे शरीर में शुगर की मात्रा को कण्‍ट्रोल करता है।

प्रश्‍न 12. तंत्रिका उत्तक कैसे क्रिया करता है ?
उत्तर—तंत्रिका ऊतक सूचनाओं को संग्रह करते हैं, उन्‍हें पूरे शरीर में भेजते हैं, सूचनाओं को व्‍यवस्थित करते हैं, सूचनाओं के आधार पर निर्णय लेते हैं एवं निर्णय को मांसपेशियों तक भेजते हैं ताकि क्रिया हो सके। संदेश पाने के बाद पेशियाँ अपना आकार बदलती हैं। इससे वे छोटी हो जाती हैं। इनमें विशिष्‍ट प्रो‍टीन पाये जाते हैं। ये प्रोटीन पेशियों के आकारों को बदल सकते हैं तथा तंत्रिकाओं से प्राप्‍त होने वाले विद्युत-तंत्रिकीय आवेग के अनुसार उनमें अनुक्रिया उत्‍पन्‍न कर सकती हैं।

प्रश्‍न 13. प्रतिवर्ती क्रिया एवं प्रतिवर्ती चाप में अन्‍तर स्‍पष्‍ट करें।
उत्तर—

प्रतिवर्ती क्रियाप्रतिवर्ती चाप
किसी घटना की अनुक्रिया के फलस्‍वरूप अचानक हुई क्रिया है जिसमें मस्तिष्‍क द्वारा किसी प्रक्रम की आवश्‍यकता नहीं होती है।तंत्रिका आवेग द्वारा प्रतिवर्ती क्रिया हेतु लिया गया मार्ग प्रतिवर्ती चाप कहलाता है।

प्रश्‍न 14. प्रतिवर्ती क्रिया और टहलने के बीच क्‍या अंतर है ?
उत्तर—

प्रतिवर्ती क्रियाटहलना
यह क्रिया हमारी इच्‍छा से नियंत्रित नहीं होती है।हम इसके विषय में सोच नहीं सकते 1मेरूरज्‍जू इसको नियंत्रित करता है।यह क्रिया हमारी इच्‍छा से नियंत्रित होती है।हम इसके विषय में सोच सकते हैं। मस्तिष्‍क इसे नियंत्रित   करता है।

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