सूरदास के पद
सूरदास के पद वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
प्रश्न 1.
सूरदास का जन्म कब हुआ था?
(क) 1478 ई. में
(ख) 1470 ई. में
(ग) 1475 ई. में
(घ) 1472 ई. में
उत्तर-
(क)
प्रश्न 2.
सूरदास की अभिरुचि किसमें थी?
(क) पर्यटन
(ख) गायन
(ग) नृत्य
(घ) लेखन
उत्तर-
(क)
प्रश्न 3.
सूरदास किस भक्ति के कवि हैं?
(क) कृष्ण भक्ति
(ख) रामभक्ति
(ग) देश भक्ति
(घ) मातृभक्ति
उत्तर-
(क)
प्रश्न 4.
इनमें से सूरदास की कौन-सी रचना है?
(क) कड़बक
(ख) छप्पय
(ग) पद
(घ) पुत्र-वियोग
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 5.
सूरदास जी के गुरु कौन थे?
(क) महाप्रभु वल्लभाचार्य
(ख) महावीर गौतम बुद्ध
(ग) महाप्रभु चौतन्य
(घ) महाप्रभु महावीर स्वामी
उत्तर-
(क)
प्रश्न 6.
‘साहित्य लहरी’ के रचनाकार कौन हैं?
(क) नन्ददास
(ख) सूरदास
(ग) नाभादास
(घ) तुलसीदास
उत्तर-
(ख)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1.
जागिए, ब्रजराज ……. कँवल-कुसुम फूले।
कुमुद-वृन्द संकुचित भए, भुंग लता भूले।।
उत्तर-
कुँवर
प्रश्न 2.
बिधु मलीन रवि ………. गावत नर नारी।
सूर-स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी।।
उत्तर-
प्रकाश
Surdas Class 12 Bihar Board प्रश्न 3.
तमचुर खर-रोर सुनहु, बोलत बनराई।
राँभति गो खरिकनि में,
………. हित धाई।।
उत्तर-
बछरा
प्रश्न 4.
बरी, बरा, बेसन बहु भाँतिनि, व्यंजन विविध अगनियाँ।
डारत, खात, लेत अपनैं कर, रूचि मानत ……… दोनियाँ।।
उत्तर-
दधि
प्रश्न 5.
जेंवत ……… नंद की कनियाँ
केछुक खात, कछू धरनि गिरावत,
उत्तर-
स्याम
सूरदास के पद अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सूरदास हिन्दी साहित्य के किस काल के कवि हैं
उत्तर-
भक्तिकाल के।
प्रश्न 2.
सूरदास का जन्म रुमकता नामक गाँव में किस सन् में हआ?
उत्तर-
1478 ई. में
प्रश्न 3.
सूरदास के काव्य की भाषा कौन-सी है?
उत्तर-
ब्रज भाषा।
प्रश्न 4.
सूरदास के काव्य में किस रस का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
वात्सल्य।
सूरदास के पद पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है?
उत्तर-
सूरदास रचित “प्रथम पद” में वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है। वात्सल्य रस के पदों की विशेषता यह है कि पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो उठता है। प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है।
प्रश्न 2.
गायें किस ओर दौड़ पड़ी?
उत्तर-
भोर हो गयी है, दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने का संकेत देते हुए जगाया जा रहा है। प्रथम पद में भोर होने के संकेत दिए गए हैं-कमल के फूल खिल उठे है, पक्षीगण शोर मचा रहे हैं, गायें अपनी गौशालाओं से अपने-अपने बछड़ों की ओर दूध पिलाने हेतु दौड़ पड़ी।
प्रश्न 3.
प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
प्रथम पद में विषय, वस्तु चयन, चित्रण, भाषा-शैली व संगीत आदि गुणों का प्रकर्ष दिखाई पड़ता है। इस पद में दुलार भरे कोमल स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की बात कहते हुए जगाया जा रहा है। कृष्ण को भोर होने के विभिन्न संकेतों जैसे-कमल के फूलों का खिलना, मुर्ग का बांग देना, पक्षियों का चहचहाना, गऊओं का रंभाना, चन्द्रमा का मलिन होना, रवि का प्रकाशित होना आदि के बारे में बताया जा रहा है। इन सबके माध्यम से कृष्ण को जगाने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रश्न 4.
पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
महाकवि सूर को बाल-प्रकृति तथा बाल-सुलभ अंतरवृत्तियों के चित्रण की दृष्टि से विश्व साहित्य में बेजोड़ स्वीकार किया गया है। उनके वात्सल्य वर्णन की विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
लाल भगवानदीन लिखते हैं, “सूरदास जी ने बाल-चरित्र का वर्णन में कमाल कर दिया है, यहाँ तक कि हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि गोस्वामी तुलसीदास जी भी इस विषय में इनकी समता नहीं कर सके हैं। हमें संदेह है कि बालकों की प्रकृति का जितना स्वाभाविक वर्णन सूर ने किया है, उतना किसी अन्य भाषा के कवि ने किया है अथवा नहीं।”
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं, “जितने विस्तृत और विशद् रूप से सूर ने बाल लीला का वर्णन किया है, उतने विस्तृत रूप में और किसी कवि ने नहीं किया। कवि ने बालकों की अन्त:प्रकृति में भी पूरा प्रवेश किया है और अनेक बाल भावों की सुन्दर स्वाभाविक व्यंजन की है।”
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं, “यशोदा के बहाने सूरदास ने मातृ हृदय का ऐसा स्वाभाविक सरल और हृदयग्राही चित्र खींचा है कि आश्चर्य होता है। माता संसार का ऐसा पवित्र रहस्य है जिसकी कवि के अतिरिक्त और किसी को व्याख्या करने का अधिकार नहीं है।”
यहाँ प्रस्तुत दोनों पद वात्सल्य भाव से ओतप्रोत हैं और ‘सूरसागर’ में हैं। इन पदों में सूर की काव्य और कला से संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है। प्रथम पद में बालक कृष्ण को सुबह होने के संकेत देकर जगाना, दूसरे पद में नंद द्वारा गोदी में बैठाकर भोजन कराना वात्सल्य भाव के ही उदाहरण हैं। बालक कृष्ण की क्रियाओं, सौन्दर्य तथा शरारतों का मार्मिक चित्रण इन पदों में है। अतः दोनों पदों में वात्सल्य रस की अभिव्यंजना है।
प्रश्न 5.
काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट करें
(क) कछुक खात कछु धरनि गिरावत छवि निरखति नंद-रनियाँ।
(ख) भोजन करि नंद अचमन लीन्है माँगत सूर जुठनियाँ।
(ग) आपुन खाक, नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के कवि सूरदासजी ने बालक कृष्ण के खाने के ढंग का अत्यन्त स्वाभाविक एवं सजीव वर्णन किया है। पद ब्रज शैली में लिखा गया है। भाषा की अभिव्यक्ति काव्यात्मक है। यह पद गेय और लयात्मक प्रवाह से युक्त है। अतः यह पक्ति काव्य-सौन्दर्य से परिपूर्ण है। इसमें वात्सल्य रस है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के साथ-साथ भक्ति रस की भी अभिव्यक्ति है। बालक कृष्ण के भोजन के बाद नंद बाबा श्याम का हाथ धोते हैं। यह देख सूरदास जी भक्तिरस में डूब जाते हैं। वे बालक कृष्ण की जूठन नंदजी से माँगते हैं। इस पद्यांश को ब्रज शैली में लिखा गया है। बाबा नंद का कार्य वात्सल्य रस को दर्शाता है तथा सूरदास की कृष्ण भक्ति अनुपम है। अभिव्यक्ति सरल एवं सहज है। इसमें रूपक अलंकार है।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश में बालक कृष्ण के बाल सुलभ व्यवहार का वर्णन है। कृष्ण स्वयं कुछ खा रहे हैं तथा कुछ नन्द बाबा के मुँह में डाल रहे हैं। इस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात् अनुपम है। इसे ब्रजशैली में लिखा गया है। इसमें वात्सल्य रस का अपूर्व समावेश है। इस पद्यांश में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 6.
कृष्ण खाते समय क्या-क्या करते हैं?
उत्तर-
बालक कृष्ण अपने बालसुलभ व्यवहार से सबका मन मोह लेते हैं। भोजन करते समय कृष्ण कुछ खाते हैं तथा कुछ धरती पर गिरा देते हैं। उन्हें मना-मना कर खिलाया जा रहा है। यशोदा माता यह सब देख-देखकर पुलकित हो रही है। विविध प्रकार के भोजन जैसे बड़ी, बेसन का बड़ा आदि अनगिनत प्रकार के व्यंजन हैं।
बालक कृष्ण अपने हाथों में ले लेते हैं, कुछ खाते हैं तथा जितनी इच्छा करती है उतना खाते हैं, जो स्वादिष्ट लगती है उसे ग्रहण करते हैं। दोनी में रखी दही में विशेष रुचि लेते हैं। मिश्री मिली दही तथा मक्खन को मुँह में डालते हुए उनकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। इस प्रकार कृष्ण खाते समय अपनी लीला से सबका मन मोह लेते हैं।
सूरदास के पद भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाएँ।
उत्तर-
- मलिन-मलिन हृदय से प्रभु स्मरण नहीं हो सकता।
- रस-काव्य में रस न हो तो व्यर्थ है।
- भोजन-भोजन एकान्त में करना चाहिए।
- रूचि-मेरी रुचि अध्ययन-अध्यापन की है।
- छवि-श्रीकृष्ण की छवि अत्यन्त मनोहारी है।
- दही-दही को भोजन में शामिल करना चाहिए।
- माखन-दूध को विलोने से माखन निकलता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दो के पर्यायवाची दें
उत्तर-
- धरनि-पृथ्वी, धरती, धरा, भू
- रवि-सूर्य, भास्कर, भानु
- अम्बुज-कमल, जलज, पंकज
- कमल-जलज, पंकज, अम्बुज
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें
उत्तर-
- शब्द – मानक रूप
- धरनी – धरती
- गो – गाय
- कँवल – कमल
- विधु – विधु
- स्याम – श्याम
- प्रकास – प्रकाश
- बनराई – वनराही
प्रश्न 4.
निम्नलिखित के विपरीतार्थक शब्द लिखें
उत्तर-
- शब्द – विपरीतार्थक शब्द
- मलिन – स्वच्छ (निर्मल)
- नार – नारायण
- संकुचित – विस्तृत
- धरणी – आकाश
- विधु – रवि
प्रश्न 5.
पठित पदों के आधा पर सूर के भाषिक विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर-
पठित पदों में सूरदास ने साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में माधुर्य, लालित्य तथा सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है। दोनों पदों में वात्सल्य रस की अभिव्यंजना हुई है जिसके लिए गेय शैली का प्रयोग किया गया है। अत: दोनों पदों में संगीतात्मकता व लयात्मकता विद्यमान है।
प्रश्न 6.
विग्रह करते हुए समास बताएँ।
उत्तर-
नंद जसोदा-नंद और जसोदा-द्वन्द्व समसस
ब्रजराज-ब्रज का राजा-तत्पुरुष समास खग
रोर-खग का शोर-तत्पुरुष समास
अम्बुजकरधारी-अम्बुज को हाथ में धारण करनेवाला (श्रीकृष्ण)-बहुव्रीहि समास।
सूरदास के पद कवि परिचय सुरदास (1478-1583)
जीवन-परिचय-
महाप्रभु बल्लभाचार्य के शिष्य तथा गोस्वामी विट्ठलनाथ द्वारा प्रतिष्ठित अष्टछाप के प्रथम कवि महाकवि सूरदास हिन्दी साहित्याकाश के सर्वाधिक प्रकाशमान नक्षत्र हैं। वस्तुतः कृष्ण भक्ति की रसधारा को समाज में बहाने का श्रेय सूरदास को ही जाता है।
महाकवि सूरदास के जन्मस्थान एवं काल के बारे में अनेक मत हैं। अधिकांश साहित्यकारों का मत है कि महाकवि सूरदास का जन्म 1478 ई. में आगरा और मथुरा के बीच स्थित रुमकता नाम गाँव में हुआ था। कुछ अन्य लोग बल्लभगढ़ के निकट सीही नामक ग्राम को उनका जन्मस्थान बताते हैं।
जब वे गऊघाट पर रहते थे तो एक दिन उनकी भेंट महाप्रभु बल्लभाचार्य से हुई। सूर ने अपना एक भजन बड़ी तन्मयता से महाप्रभु को गाकर सुनाया, जिसे सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सूरदास को अपना शिष्य बना लिया। बल्लभचार्य के आदेश से ही सूरदास ने कृष्ण लीला का गान किया। उनके अनुरोध पर ही सूरदास श्रीनाथ के मन्दिर में आकर भजन-कीर्तन करने लगे। वे निकट के गाँव पारसोली में रहते थे। वहीं से नित्य-प्रति श्रीनाथ जी के मन्दिर में आकर भजन गाते और चले जाते। उन्होंने मृत्युकाल तक इस नियम का पालन किया। 1583 ई. में पारसोली में ही इनका देहांत हो गया।
रचनाएँ-सूरदास द्वारा रचित तीन काव्य ग्रंथ मिलते हैं-
- सूरदास,
- सूर सारावली,
- साहित्य लहरी।
काव्यगत विशेषताएँ-सूरदास वात्यसल्य, प्रेम और सौंदर्य के अमर कवि हैं। उनके काव्य के प्रमुख विषय हैं-विनय और आत्मनिवेदन, बालवर्णन, गोपी-लीला, मुरली-माधुरी और गोपी विरह।
सूरदास के पद कविता का सारांश
प्रस्तुत दोनों पद वात्सल्य भाव से परिपूर्ण हैं जो सगुण भक्तिधारा की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘सूरसागर’ से उद्धृत है। इन पदों में कवि की काव्य और कला से संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है।
प्रथम पद में प्यार-दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक को यह कहते हुए जगाया जा रहा है कि व्रजराज कृष्ण उठो, सुबह हो गई है। प्रकृति के अनेक दृष्टांतों तथा गाय-बछड़ों के क्रियाकलापों का वर्णन कर माता यशोदा उन्हें बहुत प्यार से उठने के लिए कह रही हैं। – द्वितीय पद में पिता नंद बाबा की गोद में बैठकर बालक कृष्ण को भोजन करते हुए चित्रित किया गया है। इसमें अन्य बालकों की तरह ही कृष्ण के भोजन करने का अत्यंत स्वाभाविक वर्णन है। सूर वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए थे। वे बालकों की आदतों, मनोवृत्तियों तथा बाल मनोविज्ञान का गहरा ज्ञान रखते थे, यह उनके इस पद में स्पष्ट देखा जा सकता है। बच्चे के भोजन करने, कुछ खाने, कुछ गिराने, कुछ माता-पिता को खिलाने, खाते-खाते शरीर पर गिरा लेने आदि के इन सुपरिचित दृश्यों और प्रसंगा में कवि-हृदय का ऐसा योग है कि ये प्रसंग रिट बन गए हैं।
कविता का भावार्थ
जागिए, ब्रजराज कुँवर, कँवल-कुसुम फूले।
कुमुद-वृंद संकुचित भए, भुंग लता भूले।
तमचुर खग-रोर सुनहु, बोलत बनराई॥
राँभति गो खरिकनि में, बछरा हित धाई।
बिधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी।
सूर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी॥
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश मध्यकालीन सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि ‘सूरदास’ द्वारा रचित उनके विख्यात ग्रंथ ‘सूरसागर’ से उद्धृत है। इस पद में सोए हुए बालक कृष्ण को दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में भोर होने की बात कहते हुए जगाने का वर्णन है।
व्याख्या-बालक कृष्ण को जगाने के लिए माँ यशोदा सुबह होने के बहुत से प्रमाण देती है। वह बहुत ही दुलार से उसे कहती है, हे ब्रजराज कुँवर, अर्थात् ब्रज के छोटे राजकुमार! जाग जाओ, उठ जाओ। उठकर देखो-कितने सुन्दर कमल के फूल खिल गए हैं। रात को खिलने वाली कुमुदनियाँ सकुचा गई हैं, अर्थात् रात्रि समाप्त हो गई है क्योंकि भोर में कुमुदनियाँ मुरझा जाती हैं। चारों ओर भँवरे मंडरा रहे हैं और मुर्गा आवाज (बाँग) दे रहा है। हर तरफ पक्षियों की चहचहाहट फैली है। पेड़-पौधों पर बैठे पक्षियों का मधुर संगीत गूंज रहा है। गाएँ भी बाड़ों में जाने के लिए रंभा रही हैं, वे अपने बछड़ों सहित जाना चाहती हैं। चन्द्रमा के प्रकाश की काँति क्षीण हो गई है अर्थात् रात्रि समाप्त हो गई है, वहीं सूर्य का प्रकाश चारों ओर फैल गया है। नर-नारी मधुर स्वर में गा रहे हैं कि हे श्याम! सुबह हो गई है इसलिए उठ जाओ। वे अंबुज करधारी अर्थात् कमल को हाथ में धारण करने वाले कृष्ण को सुबह होने का संकेत देकर जगाना चाहते हैं।
पद-2
2. जेंवत स्याम नंद की कनियाँ।
कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छबि निरखति नंद-रनियाँ।
बरी, बरा बेसन, बहु भाँतिनि, व्यंजन बिविध, अगानियाँ।
डारत, खात, लेत अपनैं कर, रुचि मानत दधि दोनियाँ।
मिस्त्री, दधि, माखन मिम्रित करि मुख नावत छबि धनियाँ।
आपुन खात नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ।
जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सो नहिं, तिहूँ भुवनियाँ।
भोजन करि नंद अचमन लीन्हौ, माँगत सूर जुठनियाँ॥
व्याख्या-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक दिगन्त भाग-2 के “पद” शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूरदास हैं। सूरदासजी भक्तिधारा के अन्यतम कवि हैं। उपरोक्त ‘पद’ में इन्होंने बालक कृष्ण की बाल सुलभ चपलता तथा चिताकर्षक लीलाओं का दिग्दर्शन कराते हुए उनके (कृष्ण) द्वारा भोजन करते समय का रोचक विवरण प्रस्तुत किया है।
बालक कृष्ण नंदबाबा की गोद में बैठकर खा रहे हैं। कुछ खा रहे हैं, कुछ भूमि पर गिरा देते हैं। इस प्रकार उनके भोजन करने का ढंग से प्राप्त होनेवाली शोभा को माँ यशोदा (नंद की अत्यन्त प्रभुदित भाव से देख रही हैं। बेसन से बनी बरी-बरा विभिन्न प्रकार के अनेक व्यंजन को अपने हाथों द्वारा खाते हैं, कुछ छोड़ देते हैं। दोनी (मिट्टी के पात्र) में रखी हुई दही में विशेष रुचि ले रहे हैं उन्हें दही अति स्वादिष्ट लग रहा है। मिश्री मिलाया हुआ दही तथा माखन (मक्खन) को अपने मुख में डाल लेते हैं, उनकी यह बाल सुलभ-लीला धन्य है। वे स्वयं भी खा रहे हैं तथा नंद बाबा के मुँह में भी डाल रहे हैं। यह शोभा अवर्णनीय हैं अर्थात् इस शोभा के आनंद का वर्णन नहीं किया जा सकता। जिस रस का पान नंद बाबा और यशोदा माँ कर रही हैं, जो प्रसन्नता उन दोनों को हो रही है वह तीनों लोक में दुर्लभ हैं। नंदजी भोजन करने के बाद कुल्ला करते हैं। सूरदासजी जूठन माँगते हैं, उस जूठन को प्राप्त करना वे अपना सौभाग्य मानते हैं।