उषा
उषा वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
प्रश्न 1.
ऊषा’ कविता के कवि कौन हैं?
(क) रघुवीर सहाय
(ख) शमशेर बहादुर सिंह
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) अशोक वाजपेयी
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 2.
शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कब हुआ था?
(क) 13 जनवरी, 1911 ई.
(ख) 15 जनवरी, 1910 ई.
(ग) 20 फरवरी, 1920 ई.
(घ) 20 जनवरी, 1915 ई.
उत्तर-
(क)
प्रश्न 3.
शमशेर की ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ नामक काव्य कृति का संपादन किसने किया है?
(क) डॉ. नामवर सिंह
(ख) डॉ. काशीनाथ सिंह
(ग) डॉ. दूधनाथ सिंह
(घ) डॉ. बच्चन सिंह
उत्तर-
(क)
प्रश्न 4.
शमशेर बहादुर सिंह को हिन्दी साहित्य में क्या कहा जाता है?
(क) कवियों के कवि
(ख) कवि शिरोमणि
(ग) कवि भूषण
(घ) कवि रत्न
उत्तर-
(क)
प्रश्न 5.
काल तुझसे होड़ है मेरी, टूटी हुई बिखरी हुई, कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ, सुकून की तलाश आदि किनकी रचनाएँ हैं?
(क) शमशेर बहादुर सिंह
(ख) नामवर सिंह
(ग) मैनेजर पाण्डेय
(घ) विश्वनाथ तिवारी
उत्तर-
(क)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1.
स्लेट पर या लाल खड़िया……….. मल दी हो किसी ने
उत्तर-
चाक
प्रश्न 2.
बहुत काली सिल जरा से लाल……….. से कि जैसे घुल गई हो।
उत्तर-
केसर
प्रश्न 3.
राख से लीप हुआ…………. अभी गीला पड़ा है।
उत्तर-
चौका
प्रश्न 4.
नील जल में या किसी की गौर…….. देह जैसे हिल रही हो।
उत्तर-
झिलमिल
प्रश्न 5.
प्रात नभ था बहुत नीला……… जैसे मोर का नभ।
उत्तर-
शंख
प्रश्न 6.
और………… जादू टूटता है इस…….. का अब सूर्योदय हो रहा है।
उत्तर-
उषा गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट
उषा अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उषा का जादू कब टूट जाता है?
उत्तर-
सूर्योदय होने पर।
प्रश्न 2.
शमशेर बहादुर सिंह की कविता का क्या नाम है?
उत्तर-
उषा।
प्रश्न 3.
प्रातःकाल का नभ कैसा था?
उत्तर-
नीले राख के समान।
प्रश्न 4.
शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर-
13 जनवरी, 1911, देहरादून, उत्तराखण्ड।
प्रश्न. 5.
शमशेर बहादुर सिंह ने किस स्थान से बी.ए. किया?
उत्तर-
इलाहाबाद।
प्रश्न 6.
शमशेर बहादुर सिंह ने निम्नलिखित में से किस कोण का संपादन कार्य किया?
उत्तर-
उर्दू–हिन्दी कोष।
प्रश्न 7.
शमशेर बहादुर सिंह की रचना किस सप्तक में आनी शुरू हुई?
उत्तर-
दूसरा सप्तक।
प्रश्न 8.
शमशेर बहादुर सिंह का संबंध किस विश्वविद्यालय से रहा है?
उत्तर-
विक्रम विश्वविद्यालय से।।
उषा पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
प्रातःकाल का नभ कैसा था?
उत्तर-
प्रात:काल का नभ पवित्र, निर्मल और उज्ज्वल था। उसका रंग अत्यधिक नीला था और वह शंख जैसा प्रतीत हो रहा था ! उस समय नभ देखने में.ऐसा लग रहा था जैसे लीपा हुआ चौका हो। पूरब से बिखरी सूर्योदय के पहले की लालिमा के कारण नभ ऐसा लग रहा था मानो किसी ने काली सिल को लाल केसर से धो दिया हो।
प्रश्न 2.
‘राख से लीपा हुआ चौका’ के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर-
‘राख से लीपा हुआ चौका’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि प्रातः कालीन नभ पवित्र एवं निर्मल है। जिस प्रकार लीपने के तुरंत बाद गीले चौके में किसी को इसलिए नहीं चलने– फिरने दिया जाता कि उससे चौके में पैरों के निशान पड़ जाएंगे और वह पवित्र तथा निर्मल नहीं रह पाएगा, उसी प्रकार भोर के नभ में भी प्रात: की ओस के कारण गीलापन है और वह बिल्कुल पवित्र एवं निर्मल है।
प्रश्न 3.
बिम्ब स्पष्ट करें–.
‘बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’..
उत्तर-
यहाँ दो तरह का बिम्ब दिखाई पड़ता है। पहला जीवन का बिम्ब है. जिसमें सुबह चौका लीपने के बाद गृहिणी सिलवट पर मशाला पीसती है और केसर पीसने के बाद सिलवट धुल जाने के बाद भी उसमें थोड़ी देर तक लाली बनी रहती है। दूसरा यह कि समस्त दिगंत सूर्य की लाली से भर गया है जो लगता है कि बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से धुल गई हो। आकाश की थोड़ी लालिमा ऐसी लगती है जैसे जिस समय सर्योदय की शुरूआत हुई हो।
प्रश्न 4.
उषा का जादू कैसा है?
उत्तर-
उषा का उदय आकर्षक होता है। नीले गगन में फैलती प्रथम सफेद लाल प्रात:काल की किरणें हृदय को बरबस अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। उसका बरबस आकृष्ट करना ही जादू है। सूर्य उदित होते ही यह भव्य प्राकृतिक दृश्य सूर्य की तरुण किरणों से आहत हो जाता है। उसका सम्मोहन और प्रभाव नष्ट हो जाता है।
प्रश्न 5.
‘लाल केसर’ और ‘लाल खड़िया चाक’ किसके लिये प्रयुक्त है?
उत्तर-
लाल केसर–सूर्योदय के समय आकाश की लालिमा से कवि ने लाल केसर से तुलना की है। रात्रि की उन्होंने काली सिलवट से तुलना की है। काली सिलवट को लाल केसर से मलने पर सिलवट साफ हो जाता है। उसी प्रकार सूर्योदय होते ही अंधकार दूर हो जाता है एवं आकाश में लालिमा छा जाती है।
लाल खड़िया चाक–लाल खड़िया चाक उषाकाल के लिये प्रयुक्त हुआ है। उषाकाल में हल्के अंधकार के आवरण में मन का स्वरूप ऐसा लगता है मानो किसी ने स्लेट पर लाल खली घिस दी हो।
प्रश्न 6.
व्याख्या करें
(क) जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है।
(ख) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ नयी कविता के कवि शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित हैं। कवि उषा का जादू उषाकाल नभ की प्राकृतिक सुन्दरता के रूप में वर्णन करता है। कवि को यह दृश्य बहुत मोहित करता है परन्तु उषा का जादू सूर्योदय होने पर टूट जाता है। तब सूर्योदय का होना कवि के लिए उषा का जादू टूटना है। सूर्योदय के पूर्व तक ही आकाश को गोद में सौन्दर्य के जादू का यह खेल चलता रहता है। सूर्योदय होने पर उससे निकले प्रकाश से सारा दृश्य बदल जाता है। यहाँ उषा के जादू का टूटना है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ नयी कविता के कवि शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित हैं। कवि ने प्रात:कालीन उषा के सौन्दर्य में अभिभूत होकर उसे भिन्न–भिन्न उपमानों की सहायता से चित्रित किया है। कवि सूर्योदय होने से पूर्व आकाश में सूर्य की लाली छिटकने पर कहता है कि आकाश मानो काला पत्थर थोड़े से लाल केसर से धूल गया है। उषाकालीन आकाश के प्राकृतिक सौन्दर्य का प्रभावपूर्ण चित्रण है। कवि ने बड़ा ही सहज सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया है। कवि की मुख्य चिन्ता उषाकालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण से है। इसलिए कवि उपमानों द्वारा बिम्ब की रचना करता है। इस तरह उषा का सौन्दर्य और बढ़ जाता है।
प्रश्न 7.
इस कविता की बिम्ब योजना पर टिप्पणी लिखें। उत्तर-सारांश देखें।। प्रश्न 8. प्रातः नभ की तुलना बहुत नीला शंख से क्यों की गई है?..
उत्तर-
प्रातः नभ की तुलना बहुत नीला शंख से की गयी है क्योंकि कवि के अनुसार प्रात:कालीन आकाश (नभ) गहरा नीला प्रतीत हो रहा है। वह नीले शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। नीला शंख पवित्रता का प्रतीक है। प्रांत:कालीन नभ भी पवित्रता का प्रतीक है।
लोग उषाकाल में सूर्य नमस्कार करते हैं। शंख का प्रयोग भी पवित्र कार्यों में होता है। अतः यह तुलना युक्तिसंगत है।
प्रश्न 9.
नील जल में किसकी गौर देह हिल रही है?..
उत्तर-
नीले आकाश में सूर्य की प्रात:कालीन किरण झिलमिल कर रही है मानो नीले जल में किसी गौरांगो का गौर शरीर हिल रहा है।
उषा भाषा की बात
प्रश्न 1.
कविता से संयुक्त क्रियाओं को चुनें।
उत्तर-
कविता में प्रयुक्त संयुक्त क्रियाएँ निम्नलिखित हैं–लीपा हुआ, धुल गई, मल दी हो, हिल रही हो, हो रहा आदि।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाएँ नभ, राख, चौका, देह, उषा।
उत्तर-
शब्द – वाक्य प्रयोग
नभ अतुल, बाहर देखना नभ को काली घटाओं ने ढंक लिया है।
राख सूखी मालाएँ तथा राख फेंककर हमें नदियों को और अधिक प्रदूषित नहीं करना चाहिए।
जूते पहनकर चौके में मत आना। संत कबीर ने मानव देह को पानी के बुलबुले के समान क्षणभंगुर बताया है।
उषा हमें उषा काल में ही भ्रमण के लिए चल देना चाहिए।
प्रश्न 3.
व्युत्पत्ति की दृष्टि से इन शब्दों की प्रकृति बताएँ नीला, शंख, भोर, चौका, स्लेट, जल, गौर, देह, जादू, उषा।
उत्तर-
- शब्द – व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों की प्रकृति
- नीला – तद्भव
- शंख – तत्सम
- भोर – तद्भव
- स्लेट – विदेशी
- गौर – तत्सम
- जादू – तद्भव
- उषा – तत्सम
प्रश्न 4.
कविता में प्रयुक्त उपमानों को चुनें।
उत्तर-
नीला शंख, राख से लीपा हुआ चौका, काली सिल जरा से लाल केसर से, धुली काली सिल, खड़िया लगी स्लेट आदि।।
प्रश्न 5.
सूर्योदय का सन्धि–विच्छेद करें।
उत्तर-
सूर्योदय – सूर्य + उदय
उषा कवि परिचय शमशेर बहादुर सिंह (1911–1993)
जीवन–परिचय–
स्वच्छंद चेतना के प्रयोगशील कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 13. जनवरी, 1911 को देहरादून, उत्तराखण्ड में हुआ था। इनके पिता का नाम तारीफ सिंह तथा माता का नाम प्रभुदेई था। इनकी आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई। इन्होंने संन् 1928 में हाईस्कूल सन् 1931 में इंटर तथा. सन् 1933 में बी.ए. की परीक्षा इलाहाबाद से उत्तीर्ण की। सन् 1938 में एम.ए. (पूर्वार्द्ध) किया किन्तु आगे की शिक्षा पूरी न कर सके। इनका विवाह सन् 1929 में धर्म देवी से हुआ, जिनकी मृत्यु सन् 1933 में हो गई। इनका विवाह सन् 1929 में धर्म देवी से हुआ, जिनकी मृत्यु सन् 1933 में हो गई।
श्री सिंह रूपाभ, कहानी, माया, नया साहित्य, नया पथ एवं मनोहर कहानियाँ के संपादन कार्य से जुड़े रहे। इसके अलावा इन्होंने उर्दू–हिन्दी कोश का संपादन किया। ये सन् 1981–85 तक ‘प्रेमचन्द सृजनपीठ’ विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते रहे। इनकी मृत्यु सन् 1993 में हुई।
रचनाएँ–सन् 1932–33 में लेखनकार्य शुरू करने वाले शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ सन् 1951 के आसपास प्रकाशित शुरू हुई। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
दूसरा सप्तक (1951), कुछ कविताएँ (1959), कुछ और कविताएँ (1961),चुका भी नहीं हूँ मैं (1975), इतने पास अपने (1980), उदिता (1980), बात बोलेगी (1981), काल तुझसे होड़ है मेरी (1982) टूटी हुई बिखरी हुई, कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ, सुकून की तलाश (गजलें)। इसके अलावा इन्होंने डायरी, विविध प्रकार के निबन्ध एवं आलोचनाएँ भी लिखीं।
उषा कविता का सारांश
शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ में प्रात:काल के प्राकृतिक सौन्दर्य का. गतिशील चित्रण बिंबों द्वारा प्रस्तुत किया गया है। यह चित्रण एक प्रभाववादी चित्रकार की तरह किया गया है। प्रभाववादी चित्रकार वस्तु या दृश्य के मन और संवेदना पर पड़े प्रभावों का उनकी विशिष्ट रंग–रेखाओं के सहारे चित्रित करता है।
‘उषा’ कविता में कवि ने प्रात:कालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता की विभिन्न उपमाओं से तुलना या समता की है। इसमें प्रात:कालीन नीले आकाश को शंख जैसा बताया गया है। सूर्योदय के पहले की लालिमा के प्रभाव से आकाश ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने काली सिल को केसर से धो दिया हो या काली स्लेट पर लाल खड़िया मल दी हो या नीले जल में किसी की उज्ज्वल गोरी देह (शरीर) हिल रही हो, किन्तु सूर्योदय हो जाने से उषा सुन्दरी का वह जादू धीरे–धीरे कम होता जाता है।
कविता का भावार्थ 1.
प्रातः नभ था बहुत नीला, शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल
जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
व्याख्या–प्रस्तुत काव्यांश सिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसमें कवि सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्र उकेरता है। इसमें पल–पल परिवर्तित होती प्रकृति का शब्द–चित्र है।
इस काव्यांश में कवि ने भोर के वातावरण का सजीव चित्रण किया है। प्रात:कालीन आकाश. गहरा नीला प्रतीत हो रहा है। वह शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। भोर (सूर्योदय) के समय आकाश में हल्की लालिमा बिखर गई है। आकाश की लालिमा अभी पूरी तरह छंट भी नहीं पाई है, पर सूर्योदय की लालिमा फूट पड़ना चाह रही है।
आसमान के वातावरण में नमी दिखाई दे रही है और वह राख में लीपा हुआ गीला चौड़ा सा लग रहा है। इससे उसकी पवित्रता झलक रही है। भोर का दृश्य काले और लाल रंग के अनोखे मिश्रण से भर गया है। ऐसा लगता है कि गहरी काली सिल को केसर से अभी–अभी धो दिया गया हो अथवा काली स्लेट पर लाल खड़िया मल दी गई हो।
कवि ने सूर्योदय से पहले के आकाश को राख से लीपे चौके के समान इसलिए बताया है ताकि वह उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त कर सके। राख से लीपे चौके में कालापन एवं सफेदी का मिश्रण होता है और सूर्योदय की लालिमा बिखरने से पूर्व आकाश ऐसा प्रतीत होता है। गीला चौका पवित्रता को दर्शाता है। इस काव्यांश में प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया गया है। इसमें ग्रामीण परिवेश भी साकार हो गया है।
2. नील जल में या किसी की
गौर, झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और ………………
जादू टूटता है उस उषा का अब
सूयोदय हो रहा है।
व्याख्या–प्रस्तुत काव्यांश प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। यहाँ कवि प्रात:कालीन दृश्य का मनोहारी चित्रण कर रहा है। प्रात:काल आकाश में जादू होता–सा प्रतीत होता है जो पूर्ण सूर्योदय के पश्चात् टूट जाता है।
कवि सूर्योदय से पहले आकाश के सौन्दर्य में पल–पल होते परिवर्तनों का सजीव अंकन करते हुए कहता है कि ऐसा लगता है कि मानो नीले जल में किसी गोरी नवयुवती का शरीर झिलमिला रहा है। नीला आकाश नीले जल के समान है और उसने सफेद चमकता सूरज सुन्दरी की गोरी देह प्रतीत होता है। हल्की हवा के प्रवाह के कारण यह प्रतिबिंब हिलता–सा प्रतीत होता है।
इसके बाद उषा का जादू टूटता–सा लगने लगता है। उषा का जादू यह है कि वह अनेक रहस्यपूर्ण एवं विचित्र स्थितियाँ उत्पन्न करता है। कभी पुती स्लेट, कभी गीला चौका, कभी शंख के समान आकाश तो कभी नीले जल में झिलमिलाती देह–ये सभी दृश्य जादू के समान प्रतीत होते हैं। सूर्योदय होते ही आकाश स्पष्ट हो जाता है और उषा का जादू समाप्त हो जाता है।
इस प्रकार कवि ने उषाकालीन वातावरण को हमारी आँखों के सम्मुख साकार कर दिया है। इसमें बिंब योजना हुई है। इसमें उत्प्रेक्षा एवं मानकीकरण का प्रयोग हुआ है। भाषा चित्रात्मक है।