Chapter 14 – वणिजः कृपणता

वणिजः कृपणता

कस्मिंश्चत् ग्रामे कश्चन् वणिक् आसीत् । सः अतीव कृपणः।

कदाचित् सः वाणिज्यनिमित्तं पावस्थं नगरं गतवान् आसीत् । तत्र वाणिज्यं समाज्य गृहं प्रत्यागतः सः यदा स्वस्य कोष्णं पश्यति तदा तेन ज्ञातं यत् तत्र स्थापितः धनस्यूत: एव न आसीत् । तस्मिन् दिने वाणिज्यतः प्राप्रानि चतुस्सहस्ररूण्वकाणि तत्र आसन् । सः सम्यक् स्मृप्तवान् यत् ग्रामप्राप्तिपर्यन्तमपि कोषे स घनस्यूतः आसीदेव इति । अतः ग्रामे एवं सः पतितः केनापि प्राप्तः स्यात् इति । सः ग्रामप्रमुखस्य समीपं गत्वा तं निवेदितवान् यत् एतद्विषये ग्रामे घोषणा कारणीय इति।

तदनुसार ग्रामे सडिण्डिमं घोषणा कारित । यत् ‘यः तं धनस्यूतम अन्यिष्य आनीय ददाति तस्मै चतुश्शतं रूप्यकाणि पारितोषिकरूपेण दीयो’ इति।

संयोगेन काचित् वृद्धा तं धनस्यूतं प्राप्तवती आसीत् । किन्तु भीता सा चिन्तिवती यत् यदि एतं विचारम् अन्यान् वदामि तर्हि जनाः मया एव चौर्यं कृतम् इति चिन्यन्ति इति । तदा एव सा घोषणां श्रुतवती । निश्चिन्तभावेन ग्रामप्रमुखस्य समीपं गत्वा तस्मै धनस्यूतं समर्पितवती । उक्तवती च यत् “देवालयतः आगमनमार्गे मया एषः घनस्यूतः प्राप्तः । मया अत्र किमस्ति इत्यपि न दृष्टम् । घोषणां श्रुत्वा झटिति आगतवती अस्मि । एतस्य स्वामिने एतं ददातु इति ।

ग्रामप्रमुखः तस्याः सत्यनिष्ठया सन्तुष्टः अभवत् । सः वृद्धाम् अभिननद्य तं वणिजम् आनेतुं सेवकं प्रेषितवान्। एतां वार्ताः ज्ञात्वा नितरां सन्तुष्टः वणिक् धावन् एव तत्र आगतवान्।

तस्मै स्यूतं समर्पयन् ग्रामप्रमुखः अवदत्-“एषा महोदया धन्यवादाऱ्या । इदानीं भवदीय कर्तव्यम् अस्ति यत् एतस्यै चतुश्शतरूण्यकाणि दातव्यानि इति ।

एतत् श्रुत्वा कृपण: चिन्तिवान् – “मदीयं धनं प्राप्तमेव । तन्मध्ये ना कुतः दातव्यानि ……..? केनापि उपायेन तानि अपि सञ्चिनोमि इति।

तस्य मनसि एकः उपायः स्फुरितः । सः तं धनस्यूत उद्धाटय मते गणितवान् । अनन्तरम् उक्तवान् यत्-अस्मिन् धनस्यूते चतुश्शताधिकचतुस्‍सहस्‍त्ररूप्‍यकाणि आसन्। इदानीं तु चतुस्सहस्त्ररूण्यकाणि एव सन्ति । आवयम् एतया न रूण्यकानि स्वीकृतानि सन्ति । उपायनराशिं सा स्वयमेव स्वीकृतवती अस्ति इति।

वणिजः मिथ्यारोपेण हतप्रभा जाता सा वृद्धा। दुःखेन सा उक्तवती” असत्यं वदामि । धनस्यूतः न मया उद्घाटितः । यदि तत् धनं चोरणीयम इति पर तर्हि किमर्थम् अत्र आगत्य धनस्यूतं दद्याम् ……..” इति।

ग्रामप्रमुखः ज्ञातवान् यत् ‘अयं वणिक् न केवलं कृपणः, अपित असर अपि’ इति । अतः सः किञ्चित् वचिन्त्य उक्तवान्-“भवता पूर्वमेव वक्तव्यमा अन्नस्यूते 4,400 रूपण्काणि आसन् इति” इति ।

वणिक् उक्तवान्- “अहं विस्मृतवान् तदा” इति । एतत् श्रुत्वा ग्रामप्रमुख: कोन “एवं चेत् भवान् अस्य धनस्यूतस्य स्वामी नैव । अद्य एव ममापि धनस्यतः नष्टः ।  तत्र तु 4000 रूप्यकाणि एव आसन् । अतः एषः मम एव धनस्यूतः” इति उक्त्वा तं धनमा स्वीकृतवान् ।

स्वीयया: दुराशया प्राप्तमपि धनं पुनः हस्तच्युतं ज्ञात्वा सः लुब्ध वणिक विलापम् अकरोत्।

अर्थ : किसी गाँव में कोई बनिया था। वह अत्यन्त कंजूस था।

कभी वह व्यापार के लिए निकट के नगर में गया था। वह व्यापार समाप्त कर लौट गया। वह जब अपने खजाना को देखता है तो उसे लगा कि वहाँ रखा हुआ धन का थैला ही नहीं है। उस दिन व्‍यापार से प्राप्त चार हजार रुपये उसमें थे। वह याद किया गाँव में आने तक खजाना में वह थैला था ही। अतः गाँव में ही वह गिर गया है। कोई पाया होगा। वह गाँव के प्रधान के समीप जाकर उससे निवेदन किया कि- इस बारे में गाँव में घोषणा करवायी जाय।

उसके अनुसार गाँव में ढोल के साथ घोषणा की गयी कि- “जो उस थैला को खोजकर लाकर देगा उसको चार सौ रुपये इनाम के रूप में दिया जायेगा।”

संयोग से कोई बुढ़िया उस थैला को पाई थी। किन्तु डरी हुई वह सोची कि- यदि यह बात अन्य से कहती हूं तो लोग समझेंगे कि- मेरे द्वारा ही चराया गया है। उसी समय वह घोषणा सुना। निश्चिंत भाव से ग्राम प्रमुख के समीप जाकर उसको थैला दे दी और बोली कि- “देवालय से आगमन समय रास्ते में मैंने इस थैला को पाई है। इसमें क्या है मैंने देखी भी नहीं। घोषणा सुनकर जल्दी में आ गई हूँ। इसके मालिक को यह दे दें।

ग्राम प्रमुख उसकी सत्यनिष्ठा से संतुष्ट हो गया। वह बुढि़या को अभिनन्दन कर उस व्यापारी को लाने के लिए सेवक को भेजा। यह समाचार जानकर अत्यन्त खुश होकर बनिया दौड़ता हुआ वहाँ आ गया । उसको थैला देते हुए ग्राम प्रमुख ने कहा “यह महोदया धन्यवाद के पात्र है समय आपका कर्तव्य है कि इनको चार सौ रुपये दें।

यह सुनकर कंजूस ने सोचा… “मुझे धन तो मिल ही गया। इसमें से चार सौ रुपये क्‍युँ दुँ  क्या कोई उपाय सोचता हूँ।”

उसके मन में एक उपाय आया । वह उस थैला को खोलकर सबों के सामने धन की गिनती की। उसके बाद बोला कि इस थैले में चार हजार चार सौ रुपये थे। इस समय चार हजार ही हैं। अवश्य इसी बुढि़या के द्वारा ही वह रुपय निकाले गये हैं। उपहार राशि वह स्वयं ही प्राप्‍त कर ली।

बनिया के झूठा आरोप से उस बुढ़िया के होश ही उड़ गये । दुःख से वह बोली- ”ओ मैं झूठ नहीं बोल रही है। थैला मेरे द्वार नहीं खोला गया है। यदि इस धन को चुराने की मेरी इच्छा होती तो क्यों यहाँ आकर पैसे का थैला देती।

ग्राम प्रमुख समझ गया कि यह बनिया केवल कंजूस ही नहीं बल्कि झूठा बदमाश भी है। इसलिए वह कुछ विचार कर बोला- “आपको पहले ही बोलना चाहिए था कि थैला में 4,400 रुपये थे।

बनिया ने कहा  “मैं भूल गया था।” यह सुनकर ग्राम प्रमुख गुस्सा से बोला— आप इस थैला के मालिक नहीं हैं। आज ही मेरा भी थैला खो गया है। उसमें तो 4000 रुपये ही थे। इसलिए यह मेरा ही थैला है।” यह कहते हुए थैला को ले लिया।

अपनी ही गलत नीति के कारण मिला हुआ भी धन पुन: अपने हाथ से निकलते जानकर वह लोभी बनिया रोने लगा।

अभ्यास प्रश्न:

1. अनया कथया का शिक्षा प्राप्यते ?
उत्तरम्- अनया कथवा शिक्षा प्राप्यते यत्-लोभो न कर्तव्यः।

प्रश्नः 2. कृपणता करणीय न करणीया वा?
उत्तरम्- कृपणता न करणीया।

प्रश्नः 3. वणिक् कीदृशः आसीत् ?
उत्तर- वणिक् कृपणः लुब्धक: च आसीत् ।

प्रश्न: 4. ग्रामप्रमुखः कीदृशः आसीत् ?
उत्तरम्– ग्रामप्रमुख; यथायोग्यः कर्तारः आसीत् ।

हिन्दी में वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कंजूस कौन था?
(A) बनिया
(B) पूजारी
(C) छात्र :
(D) कर्मचारी
उत्तर :
(A) बनिया

प्रश्न 2.
बनिया के थैले में कितना रुपया था?
(A) 1,000
(B) 2,000
(C) 3,000
(D) 4,000
उत्तर :
(D) 4,000

प्रश्न 3.
झूठा और धूर्त कौन था?
(A) छात्र
(B) पूजारी
(C) बनिया
(D) कर्मचारी
उत्तर :
(C) बनिया

प्रश्न 4.
बनिया के धन को कौन जब्त कर लिया?
(A) सरपंच
(B) मुखिया
(C) वकील
(D) न्यायाधीश
उत्तर :
(B) मुखिया

प्रश्न 5.
बनिया का खोया हुआ थैला कौन लाकर दिया?
(A) बुढ़िया
(B) जवान
(C) बच्चा
(D) कोई नहीं
उत्तर :
(A) बुढ़िया

प्रश्न 6.
ग्रामप्रमुख कैसा व्यक्ति था?
(A) सत्यनिष्ठ
(B) न्यायी
(C) उदार
(D) पराक्रमी
उत्तर :
(B) न्यायी

संस्कृत में वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कसिमश्चित् ग्रामे कश्चन् … आसीत्।
(A) जनाः
(B) कृषकः
(C) वणिक्
(D) कृपणः
उत्तर :
(C) वणिक्

प्रश्न 2.
कः न्यायप्रियः आसीत्?
(A) वणिक्
(B) वैद्यनाथ
(C) ग्रामप्रमुखः
(D) वृद्धमहिलाः
उत्तर :
(C) ग्रामप्रमुखः

प्रश्न 3.
कः लुब्धकः असत्यवादी, कृपणः, शठः आसीत् ?
(A) ग्रामप्रमुखः
(B) शिष्यः
(C) वणिक्
(D) वृद्धमहिलाः
उत्तर :
(C) वणिक्

प्रश्न 4.
मिथ्यारोपेण का हतप्रभा जाता?
(A) वणिक्
(B) कृपणः
(C) ग्रामप्रमुखः
(D) वृद्धमहिलाः
उत्तर :
(D) वृद्धमहिलाः

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